नेशनल हुक
लोकसभा के पिछले दो चुनावों में भारी सफलता व सर्वाधिक सीटें देने वाला उत्तर प्रदेश इस बार भाजपा के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। भाजपा के सामने अपना पुराना प्रदर्शन दोहराने की बड़ी चुनोती है। यूपी की ही बनारस सीट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बार भी लगातार तीसरा चुनाव लड़ रहे हैं। मगर इस बार भाजपा पिछले दो चुनावों जैसा प्रदर्शन दौहरायेगी, ये यक्ष प्रश्न बना हुआ है।
भाजपा ने इस बार काफी प्रयासों के बाद आरएलडी को सपा से अलग कर एनडीए में शामिल कर लिया, मगर उसका लाभ भाजपा को पूरे प्रदेश में मिलेगा, इस पर संशय बना हुआ है। चौधरी चरण सिंह की विरासत संभाल रहे जयंत चौधरी को भाजपा अपने साथ इसलिए लाई ताकि उसे जाट वोट मिल सके।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश को जाट बेल्ट माना जाता है और यहां आरएलडी की अच्छी पकड़ भी शुरू से रही है। मगर इस बार पश्चिम उत्तर प्रदेश का जाट जयंत चौधरी के इस समझौते से खुश नहीं है। जाट भले ही आरएलडी के दो उम्मीदवारों को समर्थन दे दे, मगर वो भाजपा उम्मीदवारों का भी साथ देगा, इस पर संशय है। किसान आंदोलन के कारण इस इलाके का जाट भाजपा से बहुत नाराज है। समझौते के अनुसार एमएसपी की गारंटी नहीं मिली। दूसरे अभी पंजाब के किसानों को जिस तरह दिल्ली जाने से रोका गया और उन पर बल प्रयोग हुआ, उससे भी किसान नाराज है। इसलिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश भाजपा के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है।
इसके अलावा भी एक नया राजनीतिक मोड़ आया है। सपा व कांग्रेस में इस बार सीटों का समझौता हो गया है। बसपा के मुस्लिम नेता लगातार पार्टी छोड़कर कांग्रेस या सपा में जा रहे हैं। इससे लगता है कि यूपी में पहली बार बड़े पैमाने पर मुस्लिम मतों का ध्रुवीकरण हो रहा है, जो कई सीटों पर भाजपा की गणित को बिगाड़ेगा। बसपा का कमजोर होना भी भाजपा को नुकसान देगा। हालांकि ओवैसी और पल्लवी पटेल ने गठबंधन किया है, किंतु उसका असर ज्यादा होता दिख नहीं रहा। भाजपा राम मंदिर के सहारे मतदाताओं के ध्रुवीकरण की कोशिश में है, यदि उसमें वो सफल रही तो परिणाम संतोषजनक रह सकते हैं। मगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बिगड़े जातीय समीकरण उसकी परेशानी बढ़ाने वाले हैं। इसलिए इस बार यूपी में भाजपा की प्रतिष्ठा दाव पर है।
— मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘