लॉयन न्यूज,बीकानेर,20 नवम्बर। राजस्थान में कांग्रेस के अंदर चल रही सियासी उठापटक लगातार तेज हो रही है। सितम्बर 25 के दिन एक लाइन का प्रस्ताव पास नहीं होने और आलाकमान द्वारा भेज गए दूतों का अपमान होने के बाद पायलट के बाद अब सीएम गहलोत सीधे-सीधे कांग्रेस आलाकमान के निशाने पर भी है। ऐसा बीते कुछ दिनों के सियासी घटनाक्रम को देखे तो पता चलता है। राजस्थान में जैसे हालात वर्तमान में है वैसे हालात तो शायद कांग्रेस में कम से कम राजस्थान में तो देखे नहीं है। कांग्रेस सरकार जैसे तैसे चल रही है लेकिन सभी की निगाहे और रूझान दिल्ली का और है।

 

फिर चाहे वो पायलट गुट या फिर सीएम गहलोत का गुट। हर कोई अपनी बात बताने सीधे दिल्ली जा रहा है। ऐसे में समझा जा सकता है कि अब राजस्थान में कुछ बचा नहीं है। सितम्बर 25 को हुए घटनाक्रम के बाद सीएम गहलोत की जमीन भी खिसकती नजर आती है। जब गहलोत गुट के समझे जाने वाले नेता उनके खिलाफ खुले आम बोल रहे है साथ ही पायलट को भी भविष्य का नेता बता रहे है। ऐसे लोगों की लिस्ट दिनोंदिन लम्बी होती जा रही है जो कि पायलट में ही राजस्थान का भविष्य देख रहे है। मंत्री प्रतापङ्क्षसह खाचरियावास,मंत्री राजेन्द्र गुढ्ढा,हेमाराम चौधरी,दिव्या मदेरणा,हरीश चौधरी सहित अनेक नेता है जो कि कहीं ना कहीं गहलोत और सरकार को कोस रहे है और आलाकमान के निर्णय का समर्थन का दावा भी कर रहे है।

 

गुजरात चुनाव के बाद राजस्थान में सियासत में बड़ा बदलाव होगा। ये बदलाव किस रूप में होगा। ये कहना तो फिलहाल जल्दबाजी होगा लेकिन राजस्थान के मंत्री और विधायकों के बयानो,दिनचर्या के देखे तो समझ सकते है कि अब राजस्थान का निर्णय यहां के किसी नेता का ना होकर आलाकमान का ही होगा। अशोक गहलोत भी आलाकमान को सर्वश्रेष्ठ साबित करने में जुटे है। वहीं सचिन पायलट कांग्रेस द्वारा दी जा रही जिम्मेवारियों को बखूबी से निभा रहे है और बता रहे कि संगठन के प्रति जिम्मेवार कौन है। जयपुर में डेरा जमाकर गहलोत की तारीफे करने वाले विधायक और मंत्री दिल्ली और सीधे राहुल गांधी के यात्रा में शामिल होकर ये संदेश भी दे रहे है कि हम किसी के साथ नहीं है बल्कि आलाकमान जो तय करेगा वो हमें स्वीकार्य है। प्रदेश के विधायकों और मंत्रियों का दिल्ली रूख समझने वालों के लिए काफी है कि जमीन खिसक रही है या फिर खिसक गई है।