हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा
कांग्रेस के नये प्रदेशाध्यक्ष के चुनाव की सुगबुगाहट के बीच एक बार फिर से कांग्रेस के नेताओं ने जोर-आजमाइश शुरू कर दी है। प्रदेश में छह महीने से चल रही भाजपा सरकार को चुनौती देने के लिए कोटा में कांग्रेस का बड़ा कार्यक्रम हुआ तो इधर राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली भी तेवर में नजर आ रहे हैं। इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कुशल क्षेम के लिए मुख्यमंत्री भजनलाल उनके घर पहुंचे हैं और कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट लोकसभा में कांग्रेस को बेहतर परिणाम दिलाने के बाद आलाकमान के फैसले का इंतजार कर रहे हैं।

हालांकि, इस बात की सबसे कम संभावना है कि राजस्थान में कांग्रेस सचिन पायलट को फिर से बागडोर थमाएगी। ठीक उसी तरह से गोविंद डोटासरा का कार्यकाल भी बढऩे की संभावना कम है। कांग्रेस के राजस्थान प्रदेशा प्रभारी रहे सुखविंदरसिंह रंधावा ने जाते हुए जो रिपार्ट बनाकर भेजी है, उसमें राजस्थान के कई बड़े नेताओं की कुंडलियां बनाई गई है, जिसकी वजह से राजस्थान में कांग्रेस कमजोर हुई है।
अगर इस रिपोर्ट पर काम हुआ तो कोरोना काल के बाद से लेकर लोकसभा चुनाव तक कांग्रेस को कमजोर करने में साथ देने वाले नेताओं पर भले ही कार्रवाई नहीं हो, लेकिन मिलना कुछ भी नहीं है। इस बीच लोकसभा चुनाव से पहले भगदड़ में इधर-उधर भागे कांग्रेस के कुछ नेताओं की वापसी वाले प्रस्ताव के लिए भी अंदरुनी घमासान जारी है। राहुल गांधी इस बात पर अड़े हुए हैं कि किसी को भी वापस नहीं लेना और उनका यह आदेश राष्ट्रव्यापी है, ऐसे में राजस्थान के नेताओं की पैरोकारी करने वालों के सामने संकट यह है कि वे कहीं कोपभाजन नहीं बन जाएं। साथ ही उपचुनाव की चुनौती भी सामने है।

कांग्रेस की रणनीति में पहले उपचुनाव कराने हैं और फिर पंचायत, पालिका-निगम चुनावों से पहले प्रदेशाध्यक्ष पद पर नियुक्ति करना है। लेकिन एक धड़ा इस बात पर दबाव बना रहा है कि जितना जल्द हो सके पहले संगठन को मजबूत किया जाए ताकि चुनाव में फायदा मिल सके। यह सच भी है कि कांग्रेस के साथ संगठन को मजबूत करने की बड़ी समस्या है। यह काम नहीं होने की वजह से ही गोविंद डोटासरा के नेतृत्त्व पर सवाल है। ऐसे में भले ही कांग्रेस ने दस साल बाद राजस्थान में बेहतर जनादेश प्राप्त किया है, लेकिन इसमें प्रदेशाध्यक्ष की बजाय कांग्रेस के प्रत्याशियों की मेहनत ज्यादा बोल रही है। जीते हुए प्रत्याशी भी अपने बयान या भाषणों में गोविंद डोटासरा का गुणगान नहीं करते नजर आ रहे हैं, जो सीधा संकेत है कि डोटासरा को विस्तार मिलना नहीं है।
ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या राजस्थान में कांग्रेस को ऐसा प्रदेशाध्यक्ष मिल जाएगा, जो अशोक गहलोत या सचिन पायलट सहित टीकाराम जूली या गोविंद डोटासरा की छाया से मुक्त होकर सिर्फ संगठन की मजबूती के लिए न सिर्फ सोचेगा बल्कि क्रियान्वयन भी करेगा। ऐसा नहीं हुआ तो कांग्रेस का प्रदेश की भाजपा सरकार को घेरने की योजना वाटर केनन की बौछारों में तितर-बितर होती ही नजर आएगी।

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