Mother’s Day – मां का नया ‘अवतार’ बच्चों के कॅरिअर की बनी खैवनहार
- बच्चों के कॅरिअर का क्या महत्व है यह महिलाओं से ज्यादा कोई नहीं जान सकता। उसके लिए मां दिन-रात एक कर रही है।बांसवाड़ा.। मां त्याग, मां तपस्या है, मां सेवा है, मां अनुष्ठान है, मांसाधना है, मां जीवनदात्री है। मां चूल्हा, धुआं, रोटी और हाथों का छाला है, मां जिन्दगी की कड़वाहट में अमृत का प्याला है….।कवि ओम व्यास ओम ने शब्दों में बयां मां की महिमा जो शब्दों में पिरोई है उसके बाद और कुछ बचता नहीं है, लेकिन मां का स्वभाव ऐसा है कि उसे किसी सीमा में बांधना मुश्किल ही है। अब देखो उसके सामने नए जमाने की नई चुनौतियां आई तो उसमें भी तपकर वह खरी उतरी।महिलाएं कल तक चूल्हे चौके, बच्चों की देखभाल की सीमित भूमिका थीं लेकिन नए जमाने में वह घर की दहलीज से निकलकर कितनी आगे निकल गई कोई सोच भी नहीं सकता। जीवन के तमाम क्षेत्रों मे उसकी अहमियत स्थापित हो गई है। वह हर दिन किसी न किसी न भूमिका में नजर आने लगी है। उसकी हर गतिविधि के केंद्र में ‘मां’ का भाव है और बच्चों के लिए समर्पण है।यही वजह है कि तमाम तरह की आर्थिक-सामाजिक चुनौतियों के बाद भी उसके इस स्वभाव ने बच्चों के साथ रिश्तों को तनिक भी आंच नहीं आने दी बल्कि यह रिश्ता गहरा और गहरा ही हुआ है। यह मां का हौसला है कि उसने नए युग की तमाम चुनौतियों में अपने वजूद को बनाए रखते हुए बच्चों की राह आसान बनाई है। समाज के बदलते परिवेश में जरूरतें काफी बढ़ गईं और पति की आय के जरिए ही परिवार चलने में अड़चनें आई तो उसने कामकाजी महिला का रूपधारण किया।बच्चों के कॅरिअर का क्या महत्व है यह महिलाओं से ज्यादा कोई नहीं जान सकता। उसके लिए मां दिन-रात एक कर रही है। मां घरों में बर्तन- कपड़े धोकर, ऑटो चलाकर या अन्य छोटे मोटे काम करके मेहनत से बच्चों के जीवन में खुशियों के रंग भरकर ‘मां’ शब्द को और पवित्र ही कर ही हैं।उसकी इस मेहनत से बच्चे किस तरह उनके सपनों को पूरा कर सफलता के झंडे गाड़ रहे हैं उसकी कहानियां रोज सुनने को मिल रही है। बच्चों के कॅरियर निर्माण की उड़ान में अकेलेपन को भी आत्मसात कर लिया। चंद मिनट की फोन पर बातचीत और चंद दिनों साथ बिताए क्षणों को यादों में अपना सुकून तलाश कर संतुष्ट है।
बेटा कहता हैं मां चिंता मत करो
शहर की चंद्रकांता पंड्या का बेटा शिवम पंड्या वायुसेना में सेवारत है। बकौल चंद्रकांता बेटे के बगैर घर में सूना सूना रहता हैं, लेकिन जब उसने लक्ष्य तय किया तो उसने पहले मुझे समझाया कि मां चिंता मत करना, मैं देश सेवा के लिए जा रहा हूं। एेसे में मैंने भी उसका हौसला बढ़ाना शुरू किया।बेटे की दूरी से उसकी याद में अक्सर आंखें तर हो जाती हैं, लेकिन उसकी बातें व बचपन यादकर तसल्ली कर ली जाती है। जब भी वह घर आता है तो पूरा समय उसके साथ एवं बातों में ही गुजरता है।
वो आते हैं तो उनकी पसंद पहले
खांदू कॉलोनी की साधना नायक परतापुर में हिन्दी की व्याख्याता है। दो बेटे हैं, जिसमें से एक यूएसए में पीएचईडी तो दूसरा आईआईएसईआर में मॉस्टर ऑफ साइंस कर रहा है। एक नौ तो दूजा 6 वर्षों से बाहर है। बकौल साधना बच्चों की कमी तो हरदम खलती है। उनकी पसंद का खाना, कपड़े और भी कई बातें अक्सर याद कर आंखें नम सी हो जाती है। बच्चों के दूर होने से कई बार तो खाने-पीने से लेकर अन्य पसंद पर भी विराम सा लग जाता है, लेकिन कॅरिअर के लिए घर से दूरी भी जरूरी है। बेटे जब भी आते हैं तो उनकी पसंद का हरदम ख्याल रखा जाता है।
मां से समझा मां का किरदार
हरिदेव जोशी कन्या महाविद्यालय की व्याख्याता आशा मेहता ने सरकारी सेवाओं के साथ ही बच्चों की परवरिश के साथ घर की जिम्मेदारियां भी बखूबी निभाई हैं। वे कहती हैं कि मैंने बचपन से ही मां को पूरे दिन बच्चों व परिवार के लिए खुशी-खुशी कष्ट उठाते देखकर यही समझा कि मां बनना यानि जीवनभर तपस्या करनी है।यह तपस्या बोझ नहीं वरन आनंद की सार्थक यात्रा है। दो बेटियों एवं एक बेटे को जीवन में निर्णय कैसे लिए जाए एवं जिम्मेदारियां कैसे पूरी की जाए इसकी सीख हमेशा देती हूं। मेहता मानती है कि किशोरावस्था में बच्चों को समझाना सबसे बड़ी चुनौती है।