इन दिनों हर कहीं #MeToo कैंपेन की चर्चा है। हर रोज इस कैंपेन के तहत नए-नए खुलासे हो रहे हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह कैंपेन आखिर है क्या? और इसका मकसद क्या है? यह कहां से और कब शुरू हुआ? आज इसी बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं। साथ ही इससे कानूनी पहलुओं को भी जानिए।
क्या है मी टू कैंपेन…
यह एक ऐसा कैंपेन है, जिसके जरिए महिलाएं वर्कप्लेस पर अपने साथ हुए यौन शोषण का खुलासा का रही हैं। इसमें ऐसी बातों को भी बताया जा रहा है, जिसके चलते किसी महिला को असुरक्षा महसूस हुई, उसे अपमानित महसूस हुआ और उसे शारीरिक या मानसिक तौर पर प्रताड़ित होना पड़ा।

पहली बार कब शुरू हुआ?
दरअसल मी टू कैंपने की शुरुआत हॉलीवुड से हुई है। 2006 में अमेरिकी सिविल राइट्स एक्टिविस्ट तराना बर्क ने पहली बार इसकी शुरुआत की। उनके खुलासे के 11 साल बाद 2017 में यह सोशल मीडिया में वायरल हुआ। अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने हॉलीवुड के दिग्गज प्रोड्यूसर हार्वी वाइंस्टीन को लेकर खुलासे किए थे। इसके बाद उन्हें कंपनी छोड़ना पड़ा। उनका करियर ही बर्बाद हो गया। इसके बाद से ही यह सिलसिला शुरू हो गया था।
अब तक, किन-किन पर लगाए गए आरोप…
– इंडिया में इसकी शुरुआत तनुश्री दत्ता ने की। उन्होंने 40 साल से एक्टिंग कर रहे और पद्मश्री पा चुके नाना पाटेकर पर 25 अक्टूबर को आरोप लगाए। इसके बाद विकास बहल, चेतन भगत, रजत कपूर, कैलाश खैर, जुल्फी सुईद, आलोक नाथ, सिंगर अभिजीत भट्टाचार्य, तमिल राइटर वैरामुथु और मोदी सरकार में मंत्री एमजे अकबर पर भी आरोप लगाए गए हैं। इस कैंपेन के तहत खुलासे लगातार जारी हैं।
कानून में इसे लेकर क्या प्रावधान…
– 1992 में हुए भंवरी देवी गैंगरेप मामले के बाद विशाखा और कई दूसरे ग्रुप कोर्ट गए थे। 13 अगस्त 1997 को विशाखा फैसला दिया गया। इसमें विशाखा गाइडलाइंस दी गईं। यह वर्कप्लेस पर यौन शोषण को रोकने के लिए था। कानून न बनने तक इसे लागू करने के निर्देश कोर्ट ने दिए थे। इसके तहत…गलत तरीके से शारीरिक संपर्क, सेक्शुअल फेवर्स, भद्दी टिप्पणियां, पोर्न या उससे जड़ी चीजें दिखाना, गैरमर्यादित शारीरिक संबंध को सेक्शुअल हैरेसमेंट माना गया।
– 2013 में सरकार ने इसे लेकर कानून बनाया। इसके बाद कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से महिलाओं का संरक्षण (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 अस्तित्व में आया।
– सीनियर एडवोकेट विशांशु जोशी ने बताया कि इसके तहत हर संस्था में एक आंतरिक परिवाद समिति होना चाहिए। ये महिलाओं के साथ उत्पीड़न होने पर उनकी शिकायत सुनेगी और आगे की कार्रवाई करेगी।
– कोई भी महिला अपने साथ हुए शोषण की शिकायत यहां कर सकती है। इसकी जांच को पूरी तरह से गोपनीय रखा जाना चाहिए। साथ ही दोषी पाए जाने पर सर्विस नियमों के तहत संबंधित व्यक्ति पर कार्रवाई होना चाहिए।
– आरोप ज्यादा गंभीर हैं तो पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाई जा सकती है।
– जो कंपनी यह समिति गठित नहीं करेगी, उसके खिलाफ 50 हजार रुपए जुर्माने का प्रावधान है। इसके बाद भी समिति गठित नहीं की गई तो उसकी मान्यता रद्द रकने की कार्रवाई की जा सकती है।
– जिला स्तर पर भी ऐसी समितियां गठित करने के निर्देश दिए गए हैं।
कितनी सजा का प्रावधान…
– किसी महिला का लैंगिग उत्पीड़न हुआ है तो वह आईपीसी की धारा 354(ए) के तहत शिकायत दर्ज करवा सकती है। इसमें 5 साल की सजा का प्रावधान है।
– इसी तरह ताकत के साथ लज्जाभंग करने जैसे कपड़े फाड़ना आदि पर आईपीसी की धारा 354 के तहत शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है। इसमें 3 साल की सजा का प्रावधान है।
– महिला की लज्जाभंग करने पर आईपीसी की धारा 509 के तहत केस दर्ज होता है। इसमें 3 साल तक की सजा का प्रावधान है।