महायुति ध्रुवीकरण पर तो महा विकास अघाड़ी गारंटियों पर हुई महाराष्ट्र में सवार
नेशनल हुक
राजनीतिक दृष्टि से महाराष्ट्र देश का दूसरा बड़ा राज्य है। इसे देश की आर्थिक राजधानी भी माना जाता है। इस राज्य ने देश को बड़े नेता दिए हैं। इस कारण यहां के विधानसभा चुनाव खास है। ये राज्य खास है इसका अंदाजा तो इस बात से लग जाता है कि पिछली बार सरकार शिव सेना,कांग्रेस व एनसीपी ने मिलकर बनाई। जबकि चुनाव में भाजपा व शिव सेना मिलकर लड़े थे। चुनाव परिणामों के बाद सीएम पद को लेकर टकराहट हुई तब उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस व एनसीपी का साथ लेकर सीएम बन गये। भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया।
भाजपा खून का घूंट पीकर रह गई और समय का इंतजार करने लगी। शिव सेना के अति उत्साही नेता एकनाथ शिंदे को तोड़ा। सत्ता के लिए वे अधिक विधायक तोड़ लाये तो भाजपा ने अपना सीएम नहीं बनाया, शिंदे को सीएम बना दिया ताकि राज्य की राजनीति उसके पास रहे। पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस डिप्टी सीएम बनने को भी तैयार हो गये। उद्धव ठाकरे फिर से तोड़फोड़ न करे तो फिर एनसीपी के अजीत पंवार को भी भाजपा तोड़कर अपने साथ ले आई। वे भी अधिक विधायक साथ लाये। उनको भी डिप्टी सीएम बना दिया। इस तरह भाजपा ने साबित किया कि इस राज्य में उसका वर्चस्व जरुरी है। भाजपा हो या उद्धव, दोनों ने इसे साबित किया।
लोकसभा चुनाव में सत्ता के गठबंधन शिव सेना शिंदे, भाजपा व एनसीपी अजीत को करारी हार मिली। इस कारण उसने इस बार के विधानसभा चुनाव के लिए अलग रणनीति बनाई। भीतरी अंतर्विरोधों के बाद भी सहयोगियों को अलग नहीं किया। क्योंकि इससे नुकसान होता। अब महायुति की इस रणनीति का परिणाम क्या रहता है, यह तो आने वाला समय बतायेगा।
नाम वापसी का समय निकलने के बाद ये तो तय हो गया कि इस राज्य के विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला अब महायुति व महा विकास अघाड़ी के मध्य है। बस, दोनों को अपने बागियों व निर्दलीयों से थोड़ी परेशानी है। अब चुनावी बिसात दोनों गठबंधनों ने यहां बिछा दी है और लगभग चुनावी एजेंडे भी सेट कर लिए है। उस पर नेता सक्रिय भी हो गए हैं। महायुति ने जहां ध्रुवीकरण की नाव पर सवारी की है वहीं महा विकास अघाड़ी अपनी गारंटियों के रथ पर सवार हुई है।
महायुति ने आचार संहिता लगने से पहले कुछ जातियों को ओबीसी में शामिल कर तुरुप का पत्ता चला। वहीं युवाओं और महिलाओं के लिए ताबड़तोड़ कई योजनाएं आरंभ कर दी। इसके अलावा ध्रुवीकरण के लिए ‘ बंटेंगे तो कटेंगे ‘ पर भी ये गठबंधन एक्टिव मोड पर है। ध्रुवीकरण की एक भी कोशिश छोड़ी नहीं जा रही। इसके अलावा महायुति को महा विकास अघाड़ी की एकजुटता को ये गठबंधन कमजोर मानता है और उसका फायदा उठाने का पूरा जतन कर रहा है। सरकार की उपलब्धियों की फेहरिस्त तो उनके पास है ही। महायुति अब इन्हीं एजेंडों पर वोटर को आकर्षित करने में जुट गई है।
दूसरी तरफ कांग्रेस, शिव सेना उद्धव व एनसीपी शरद का गठबंधन महा विकास अघाड़ी भी अपने चुनावी एजेंडे सेट कर चुका। कल उसने उनको सार्वजनिक रूप से जारी भी कर दिया। गारंटियों के रथ पर ये गठबंधन सवार हुआ है। कर्नाटक व तेलंगाना की तरह कल्याण की गारंटी योजनाओं का वादा किया जा रहा है। ये गठबंधन मराठी अस्मिता का मुद्दा उठा भाजपा पर आरोप लगा रहा है कि संसाधन इस राज्य से बाहर ले जाये जा रहे हैं। शिंदे सरकार पर भ्रस्टाचार के संगीन आरोप लगाये गए हैं। 15 हजार करोड़ के भ्रस्टाचार के आरोप इस गठबंधन ने लगाये है। इसके अलावा ये गठबंधन जातिगत जनगणना, संविधान की रक्षा और मराठा आरक्षण के मुद्दे को हवा दे रहा है।
इस तरह दोनों गठबन्धन अब चुनावी एजेंडे सेट कर चुनावी समर में उतर गए हैं। मतदाता क्या सोच रहा है, ये तो परिणाम ही बतायेंगे। मगर इस राज्य में गठबंधनों की कांटे की लड़ाई है।
— मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘