कहीं जुमला न बन जाए ‘अमर रहे गणतंत्र हमारा’ नारा, इस बार पढ़ें संविधान की प्रस्तावना


हस्तक्षेप
– हरीश बी. शर्मा
गणतंत्र दिवस हमारी राष्ट्रीय संकल्पना का प्रतीक है। यह दिन इस बात का प्रमाण है कि हम उस व्यवस्था से संबद्ध हैं, जो हम ही ने बनाई है। हम यानी गण, व्यवस्था को तंत्र के रूप में देख सकते हैं। इस गणतंत्र के संचालन के लिए बनाए गए संविधान में ही हमारी आत्मा बसती है। इसलिए बहुत जरूरी हो जाता है कि हम इस दिन न सिर्फ संविधान के प्रति अपनी निष्ठा और श्रद्धा का प्रकट करें बल्कि हर उस व्यक्ति को जो इस देश का नागरिक है, उसे उसके अधिकारों के साथ-साथ कत्र्तव्यों का भी भान करावें।
अगर किसी को पता चलेगा कि उसके पास अधिकार क्या है तो उसके मन में यह भाव भी उमडऩा चाहिए कि इस देश के प्रति मेरे कत्र्तव्य क्या हैं। लेकिन सामान्यतौर पर यह देखा जाता है कि हम अपने अधिकारों के प्रति तो सावचेत रहते हैं, लेकिन कत्र्तव्यों की अवहेलना करते हैं। वस्तुत: यही हमारे द्वारा होने वाली संविधान की अवहेलना है, जिसे हम अनजाने में ही सही, कई-कई बार कर चुके हैं।
जरा सोचें, ऐसे लोगों को क्या गणतंत्र दिवस मनाने का अधिकार होना चाहिए? लेकिन आप यह जानकर हैरान होंगे कि हमारा गणतंत्र इस देश में रहने वाले प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार देता है कि उसके साथ किसी तरह का भेदभाव ऊंच-नीच, धर्म-जात, अमीरी-गरीबी, विद्वान-मूढ़ के स्तर पर नहीं होगा। इस देश में रहने वाले हर व्यक्ति के लिए सारे अधिकार समान है, लेकिन सारे अधिकार इस शर्त उसे दिए जाते हैं कि वह कत्र्तव्यों की पालना करे।
यहां यह सबसे अनिवार्य घटक है कि हर नागरिक को अपने कत्र्तव्यों की पालना करनी चाहिए। अगर कोई व्यक्ति अपने कत्र्तव्यों की पालना नहीं कर पाता है, तो उसे समझाया जाए। सिविक्स पढ़ाने वाले शिक्षक से लेकर वकील तक और पत्रकार से लेकर राजनेताओं तक से यह उम्मीद की गई कि वे हर आम और खास व्यक्ति को यह बताए कि इस गणतंत्रात्मक प्रणाली में रहने का अर्थ क्या है।
सिर्फ ‘मैं आजाद हूंÓ या ‘अमर रहे गणतंत्र हमाराÓ कहने से ही हमारे कत्र्तव्य पूर्ण नहीं होते हैं। अगर इन शब्दों की संवेदनाएं नहीं समझी तो यह जुमलों से अधिक कुछ नहीं रहेगा। अगर वाकई हमें आजाद होने का आनंद लेना है तो साथ खड़े व्यक्ति की आजादी के लिए भी सजग रहना होगा। अगर हम चाहते हैं कि हमारा गणतंत्र अमर रहे तो हमें यह संकल्प करना होगा कि हमारी व्यवस्था का आधार हमारा संविधान हो, न कि हमारी मनमर्जी।
इसके लिए इस गणतंत्र दिवस पर संकल्प करें कि हम अपने देश भारत के संविधान की प्रस्तावना का वाचन करें। हर देशवासी इस दिन तिरंगे झंडे की साक्षी में देश के संविधान की प्रस्तावना का न सिर्फ पाठन करे बल्कि इन शब्दों में अंतनिर्हित संविधान-निर्माताओं की संकल्पना को भी समझें।
इस बात पर चिंतन करें कि उन्होंने जिस गणराज्य की कल्पना की थी, क्या उसका स्वरूप साकार हो रहा है। क्या हमारा भारतीय गणतंत्र संविधान की आत्मा के अनुरूप साकार हो रहा है। अगर यह जवाब हां में आता है तो हमारा होना सार्थक है। अगर जवाब नहीं है तो हमें अभी काफी प्रयास करना है।
‘लॉयन एक्सप्रेस’ के संपादक हरीश बी.शर्मा के नियमित कॉलम ‘हस्तक्षेपÓ के संबंध में आपके सुझाव आमंत्रित हैं। आप 9672912603 नंबर पर वाट्स अप कर सकते हैं।