लाॅयन न्यूज, नेटवर्क। आज का दिन साहित्यिक गतिविधियों के नाम रहा। जहां जयपुर में ग्रासरूट मीडिया फांउडेशन के कार्यक्रम ‘आखर’ में मुकुट मणिराज ने अपने गीतों से समा बांधा, वहीं साहित्य बीकानेर के कविता विशेषांक का आनलाईन लोकार्पण भी किया गया। सोजत के साहित्यकार अब्दुल समद राही को रावतसर की सरस्वती साहित्य संगम द्वारा सम्मानित किया गया।
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मां के संस्कार और ग्रामीण परिवेश से मिली प्रेरणा, आखर में कवि मुकुट मणिराज ने सुनाए गीत

जयपुर। गांव में बचपन से ही मां के संस्कार और ग्रामीण परिवेश में रहते हुए गीत और कविताएं रचना सीख गया। विशेषकर हाड़ौती के जनजीवन से जुड़े हुए गीतों की परंपराओं और परिवेश को आत्मसात करते हुए ग्रामीण जीवन को अभिव्यक्त किया। यह विचार कोटा के प्रसिद्ध कवि मुकुट मणिराज ने व्यक्त किए। विजय जोशी से संवाद में उन्होंने कहा कि मेरी मां को बहुत से लोकगीत कंठस्थ थे। मां के गीतों को सुर लहरियों के साथ सुनते सुनते ही बचपन से लिखने की आदत पड़ गई। कोटा में 1972 में आने के बाद वरिष्ठ कवियों और साहित्यकारों की रचनाएं सुनने को मिली। उसके बाद स्थानीय अखबारों में भी मेरी रचनाएं छपने लगी। उस समय साहित्य के कार्यक्रम भी अनौपचारिक होते थे और समीक्षा भी होती थी इससे सभी का मार्गदर्शन भी मिला।
उस समय सामाजिक सांस्कृतिक जीवन भी आडंबर से दूर और मनुष्यता से परिपूर्ण था। यहां तक कि मैंने बारात और दूल्हा दुल्हन को भी पैदल आते देखा है। उस समय के रसिया फाग गीतों को निरंतर सुना। हाडौती के प्रसिद्ध गीतकार दुर्गादान सिंह, रघुराज सिंह हाड़ा, गिरधारी लाल मालव और प्रेमजी प्रेम आदि की रचनाओं को भी काफी सुना।
अपने प्रसिद्ध गीत ओळमो के बारे में बताते हुए साहित्यकार मणिराज ने बताया कि यह गीत इतना प्रसिद्ध हुआ कि हर मंच पर सुनाना ही पड़ता है। इस पर पुस्तक भी लिखी है। इस गीत में शुद्ध ग्रामीण संस्कृति और आदर्शवादी जीवन का उजास है। गांव की लड़की ससुराल में अपने पीहर को याद करती है। गांव की जिंदगी अभी भी महिलाओं के लिए वैसी ही है केवल वस्तुएं बदली हैं। परिस्थितियां बदल गई है भारतीय पर्व और शादी-ब्याह भी औपचारिक हो गए हैं।
उन्होंने अपने गीत भी सुनाएं इनमें – याद आवे री म्हाने छोटो सो बीर, भावज को चीर, पनघट को नीर, चंबल को तीर – ओ म्हारो पीर सुनतो जावे तो दीजै ओळमो, दौड़े म्हारो रामल्यो, आदि गीतों को सुनाकर श्रोताओं को अभिभूत कर दिया।
आखर की ओर से आज दिवंगत हुई स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर को सादर श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि प्रमोद शर्मा ने कहा कि यह कार्यक्रम उनकी स्मृति को समर्पित है। साथ ही सभी का आभार व्यक्त किया।

साहित्य बीकानेर का यह कवितांक साहित्य में एक भागीरथी प्रयास : मधु आचार्य आशावादी

बीकानेर। रविवार को “साहित्य बीकानेर ” पत्रिका के चतुर्थ अंक का ऑनलाइन लोकार्पण किया गया जिसकी अध्यक्षता हिंदी और राजथानी के प्रख्यात साहित्यकार एंव केंद्रीय साहित्य अकादमी में राजस्थानी भाषा साहित्य संयोजक मधु आचार्य आशावादी ने की । लोकार्पण कार्यक्रम में प्रसिद्ध कवि समालोचक डॉ मदन गोपाल लड्ढा ने समीक्षा व डॉ मोनिका गौड़ ने प्रस्तावना प्रस्तुत की ।

कार्यक्रम का शुभारंभ साहित्य बीकानेर के संपादक पूनम चंद गोदारा ने साहित्य बीकानेर पत्रिका के अब तक प्रकाशित अंको एवं साहित्यिक गतिविधियों के साथ किया ।

लेखिका मोनिका गौड़ ने अंक की प्रस्तावना रखते हुए किताब के अहम पहलूओं को उजागर करते हुए कहा कि जब हम आज के दौर में यह कहते है कि आज का युवा सिर्फ ग्लेमर के पीछे भागता और शब्द का महत्व नही जानता है, ब्रह्म का महत्व नही जानता है ऐसे समय साहित्य बीकानेर के तीनों युवा संपादक साहित्य सृजन के साथ-साथ सदसाहित्य को बिना किसी जोड़-तोड़ और निष्पक्षता से पाठकों के सामने लाने का महत्वपूर्ण कार्य कर रहे है ।

डॉ मदन गोपाल लड्ढा ने कवितांक की समीक्षा करते हुए कहा कि इस कोरोना काल में जहां साहित्य के प्रकाशन और प्रिंट मीडिया पर संकट के बादल मंडराए हुए है, पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन एवं वितरण का कार्य प्रभावित हुआ है ऐसे में यह प्रयास हिंदी कविता के लिए बड़ा काम है । बीकानेर से प्रकाशित वातायन पत्रिका ने जिस तरह देश भर में ख्याति अर्जित की उसी कड़ी में साहित्य बीकानेर ने हिंदी पट्टी के 50 अहम रचनाकार जिनमें नगरीय, ग्रामीण एवम वंचित क्षेत्रों के रचनाकारों को शामिल कर उल्लेखनीय काम किया है ।

कार्यक्रम के अध्यक्ष मधु आचार्य आशावादी ने कहा कि जिस दौर में जब मानवीय संवेदनाओं पर एक बड़ा संकट है ऐसे दौर में इस पत्रिका के इस अंक से जो काम इन तीनों युवाओं ने किया है, वह साहित्य के लिए बीकानेर की धरा से एक बड़ा भागीरथी प्रयास है । पिछले तीन दशक में साहित्य हाशिए पर रहा है । साहित्य वह स्थान प्राप्त नही कर पाया जो उसे करना चाहिए था । ऐसे दौर में जब कोई इस तरह का कार्य करता है तो निश्चित ही दूषित हो चुके पर्यारण में एक शुद्ध शीतल झोंका सा देता है ।
आशावादी ने कहा कि अतीत में जब हम साहित्य का विवेचन करते है तो पाते हैं कि चाहे कहानी हो, नाटक हो, उपन्यास हो, कविता हो सभी को काव्य ही कहा जाता है । मैंने अपने 4 दशक के अध्ययन में यह महसूस किया है कि साहित्य विधाओं में सर्वाधिक दुष्कर विधा काव्य की है क्योंकि विराट को लघुता में रचने का कौशल काव्य में देखने को मिलता है ।

कार्यक्रम में किताब के सम्पादकीय का वाचन गीतकार, कवि देवीलाल महिया ने किया और संचालन की जिम्मेदारी सोनू लोहमरोड ने निभाई । कार्यक्रम में राजूराम बिजारणिया, अनिल अबूझ, देवेंद्र चौधरी, सतीश सम्यक, राजेन्द्र कुमार गरुवा, मनमीत सोनी, प्रियंका बेनीवाल सहित देश भर से अनेक रचनाकार एवं श्रोता इस इस आयोजन के साक्षी बने ।

राही को मिला स्वर्गीय अनिल कुमार पटिर पुरस्कार, सरस्वती साहित्य संगम द्वारा भव्य समारोह में किया सम्मानित

रावतसर। मेहंदी नगरी के ख्यातनाम शायर, कवि बाल साहित्य लेखक अब्दुल समद राही को रावतसर की साहित्यिक संस्था सरस्वती साहित्य संगम द्वारा गजल संग्रह ‘महें काईं कैऊँ’ के लिये ‘स्वर्गीय अनिल कुमार पटीर पुरस्कार से गुरु जममेश्वर महाविद्यालय में भव्य वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह में इक्यावन सौ की राशि,शाल,स्मृति चिन्ह व प्रशंसा पत्र व संस्था का प्रकाशित साहित्य भेंट कर पुरस्कृत किया गया। कार्यक्रम के मुख्यातिथि महेन्द्रगढ़ हरियाणा के साहित्यकार त्रिलोक चंद फतेहपुरी थे। अध्यक्षता रूपसिंह राजपुरी ने की व कार्यक्रम संयोजक शिक्षाविद ओम सिहाग रहे। । मंच संचालन रंग लाल विश्नोई व सुभाष सोनी ने किया। विजय कुमार पटिर ने राही साहित्य पर पत्र वाचन किया।
कार्यक्रम से पूर्व महाविद्यालय की ओर से अतिथियों का स्वागत किया गया। समारोह में शंकर दादा जांगिड़,रणवीर सिंह गोदारा,पत्रकार ओम पारीक,मदन पेंटर,सुनील पंवार,ओम झीलोइया,खुमा राम भाटी,प्रेम सोनी, ओम पाटोदिया, खुमाराम भाटी, सुनील पंवार, महावीर प्रसाद सोनी खाजू वाला, नीता अग्रवाल, सत्यप्रकाश सुथार,यश सोनी,पवन जोशी राजबाला,अंजू,जय सिंह,संजना,पूनम,कवियत्री सपना वर्मा ,अरुणा,भावना शिक्षक व कवि गण व नागरिक उपस्थित रहे ।