लॉयन न्यूज, डेस्क। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ के रूप में मनाए जाने की परंपरा है। इस बार यह तिथि 17 अक्टूबर (गुरुवार) को है। कथा है कि प्राचीन समय में सावित्री ने अपने पति की मृत्यु हो जाने पर इसी व्रत के प्रभाव से यमराज से उनका जीवन वापस प्राप्त किया था। इस तरह यह व्रत स्त्रियों के तप की शक्ति का परिचायक है। यह स्मृति कराता है कि स्त्रियां जिस भी काम को ठान लें उसे पूरा कर सकती हैं। स्त्रियां इस दिन निर्जला व्रत रखकर पति के दीर्घायु होने की प्रार्थना करती हैं। स्त्रियां सुबह सूर्योदय से व्रत की शुरुआत करती हैं और शाम को चंद्रमा के उदय होने पर उनकी पूजा करने के बाद ही व्रत को पूरा करती हैं।

महिलाएं अपने पति के हाथ से पानी पीकर ही इस व्रत को तोड़ती हैं। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं जो एक तरह से उनकी परीक्षा है कि वे पति व परिवार के लिए त्याग करने को हमेशा तैयार हैं। चतुर्थी पर चांद अक्सर देर से दिखाई देता है। बादल भी घिर जाते हैं और चंद्रमा के दर्शन नहीं हो पाते। ऐसे यह स्त्रियों की परीक्षा का व्रत है।

कुंवारी लड़कियां रख सकती हैं

व्रत मान्यता अनुसार, देश में कुछ जगहों पर कुंवारी लड़कियां भी करवाचौथ व्रत को करती हैं। वे मनवांछित वर की कामना से या सगाई हो जाने पर भावी पति की कुशलता के लिए व्रत करती हैं। अविवाहित लड़कियों अगर व्रत करती हैं तो उन्हें करवा माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है। कुंवारी लड़कियां अपना व्रत चांद को देखकर नहीं बल्कि तारों को अर्घ्य देकर तोड़ती हैं।

इस दिन देर तक कदापि न सोएं

करवाचौथ के दिन स्त्रियों को प्रातः जल्दी उठकर घर को निर्मल करने के बाद जल्दी दिनचर्या के काम पूरे कर लेना चाहिए। इस दिन स्त्रियों को देर तक नहीं सोना चाहिए और प्रयास करके सूर्योदय से पूर्व उठना चाहिए।

सरगी के अलावा और कुछ न खाएं

व्रत शुरू होने से पहले सास अपनी बहू को कुछ मिठाइयां, कपड़े और श्रृंगार का सामान देती हैं। इसी सरगी का भोजन करें और भगवान की पूजा करके व्रत का संकल्प लें।

काले रंग के कपड़े न पहनें

करवाचौथ की पूजा में काले और उससे मिलते-जुलते रंगों के परिधानों को शुभ नहीं माना जाता है। इस दिन उजले रंग पहनने चाहिए। पीला रंग या लाल रंग इस दिन के अनुसार उपयुक्त माना जाता है।