आसान नहीं होगा स्क्रीन से फिर स्कूल लौटना : पुनीत सर
चुनौतियाँ अभी बाकी है….
24मार्च 2020 से भारत में 21 दिन के सम्पूर्ण लोक डाउन का ऐलान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना महामारी की आशंका के चलते किया था। हालांकि भारत मे कोरोना महामारी की दस्तक इसके जनकदेश चीन (वुहान) में फैलने के छह माह बाद दी। इस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए ऐहतियात के तौर पर देश को अगले 3 महीने तक बंद रखा गया।
जिसका प्रभाव हर क्षेत्र में दिखने को मिला परन्तु सबसे ज्यादा त्रासदी शिक्षा जगत को झेलनी पड़ी। समय के साथ अर्थव्यवस्था तो पटरी पर आ गई लेकिन जो नुकसान विद्यार्थीयो को हुआ है उसकी भरपाई कैसे हो सकेगी यह सवाल उठना लाजमी है। 2020 मार्च के पहले सप्ताह से ही विद्यालयों को बंद कर दिया गया था, पर तब तक यही अनुमान था कि यह सब कुछ समय में सामान्य हो जाएगा। परन्तु स्थितियों को देखते हुए सरकार ने मंशा साफ कर दी कि ‘किसी भी हालत में बच्चों के जीवन से समझौता नही किया जा सकता’ लिहाजा सरकार ने online study का विकल्प खोलकर शिक्षा को घर-घर तक पंहुचाने का कार्य किया।
समय के साथ नई सोच थी, पर कसौटी पर खरी ना उतर सकी। तकनीकी व्यवस्था थी तो जाहिर सी बात है कि इसमें इंटरनेट, मोबाइल, कंप्यूटर जैसे उपकरणों के बिना इसकी सार्थकता पूरी नहीं हो सकी। बच्चों के साथ साथ अभिभावक वर्ग की भी उदासीनता रही, एक घर मे यहां चार बच्चे थे तो उतने मोबाइल, लेपटॉप नही होना स्वाभाविक था। दूसरी समस्या NET DATA की रही, वीडियो कॉल में डाटा जल्द खत्म होने से बच्चे सारी कक्षाओं को नही ले पाते थे। 21वीं सदी का दम्भ भरने वाले भारत जैसे देश में ब्रॉडबैंड जैसी इंटरनेट व्यवस्था शहरों में भी लचर साबित हुई। खैर यह सब कुछ कारण रहे होंगे जिससे online education को classroom study से तुलनात्मक रूप से सही नहीं माना जा सकता। स्वाभाविक है कि अव्यवस्था के परिणाम सकारात्मक नही हो सकते, इसका सीधा-सीधा प्रभाव बच्चों के सीखने के विकास को अवरुद्ध करता दिखा। Online study का सर्वे करने से पता चलता है कि सिर्फ 60 प्रतिशत बच्चे ही मीडिया एक्टिव थे, पर महज 18 से 20 प्रतिशत पढ़ने में बाकी के लिए मोबाइल का मतलब गेमिंग ओर चेटिंग ही रहा। जो बच्चे नियमित अध्ययन से जुड़े थे, उनके कांसेप्ट क्लियर नही हो पाए, जिससे वे मेधावी से औसतन विद्यार्थियो की श्रेणी में आ गए।
औसतन या कमजोर विद्यार्थियों की स्थिति और भी विकट हो गई है लम्बे समय तक कक्षाओं से दूर रहने से उनमें पढ़ने की प्रवृत्ति नही समान रह गई है। यंहा तक कि बहुत से बच्चे अपने स्तर से नीचे की विषय वस्तु ( Basic ) ही भूल चुके है, ऐसे में जो दो सालों में घर बैठे कर्मोनत की प्रकिया घातक साबित हुई है। 2022 में अगर स्कूलें नियमित खुल जाती है तो ऐसे विद्यार्थी उच्च कक्षाओं में कैसे पढ़ पाएंगे?
जिस प्रकार सरकार ने कोरोना काल मे पाठ्यक्रम को संकुचित कर और वैकल्पिक प्रश्रोत्तर के माध्यम से विधार्थियों का शिक्षणभार कम किया वैसी ही शिक्षा-नीति अगले कुछ सालों तक लागू करनी होगी अन्यथा स्कूलों के पूर्ण खुलने पर पढ़ाई के बोझ और डर से बच्चे तनाव में आ सकते है या हो सकता है कि स्कूल जाने से कतराएंगे।
सरकार को कुछ ऐसे प्रोजेक्ट, नीतियां अपनानी होगी जिससे कि पिछले दो सालों में बच्चों के शिक्षण ह्यास की पूर्ति जो सके, विद्यार्थियों के पिछली दो सालों की कक्षाओं विषयगत त्रुटियों सुधारते हुए बौद्धिक विकास को जारी रखा जा सके।
– लेखक अध्यापक एंव स्वतंत्र विचारक है।