कैसे जानें ईश्वरीय शक्ति के बारे में?

लॉयन न्यूज बीकानेर। दुनिया में कई लोग ऐसे हैं जो अपने जीवन को इस दिशा में ला चुके हैं और उसका आनंद भी ले रहे हैं। हो सकता है आप भी अंदर से आध्यात्मिक हों लेकिन उसका ज्ञान ना होने के कारण वैसा महसूस नहीं कर पा रहे हैं। आज मैं आपको कुछ ऐसे ज्योतिषी योग बताऊंगा जिससे आप जान सकेंगे कि आपके और उस परम शक्ति के बीच एक संपर्क स्थापित हो चुका है और यह संपर्क जल्द ही आपको जीवन के नए आयामों से परिचित करवाएगा।

क्या ऐसा आपके साथ हुआ है कि आपको मदद की जरूरत है और अचानक से आपके पास मदद पहुंच जाए? दुनिया के कई लोगों ने अपने इस तरह के अनुभव शेयर किए हैं जहां वो बुरी तरह किसी मुसीबत में फंसे हैं और एक अप्रत्याशित मदद उनके लिए हाजिर हो गई। ये मदद वो ऊर्जा है जो आपको उस अपार शक्ति से जुड़ने पर ही प्राप्त होती है। आध्यात्मिक तौर पर मजबूत व्यक्ति के साथ अक्सर होता है क्योंकि उनके आसपास की ऊर्जा उनके व्यक्तित्व से बदल जाती है। किसी के लिए यह जादू है तो किसी के लिए उनके कर्म लेकिन कई लोग इसे परम शक्ति की कृपा मानते हैं जो बहुत कम लोगों को ही प्राप्त होती है।
ज्योतिष शास्त्र में भगवत्कृपा
ज्योतिष शास्त्र ही सनातन वेद का नेत्र है। अतः ज्योतिष और भगवत् कृपा पर कुछ लिखने के पूर्व मन में सहसा यह तर्क उत्पन्न हुआ कि ग्रहयोग के कारण भगवत्कृपा की प्राप्ति होती है अथवा भगवत्कृपा से ग्रहयोग ही अनुकूल हो जाते हैं?

भगवान् की कृपा से ग्रहयोगों का अनुकूल होना आश्चर्यजनक नहीं। भगवान् श्रीराम के प्रकट होने के पूर्व

जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भए अनुकूल।।
चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल।

(रा०च०मा० १।११०)

योग, लग्न एवं ग्रह आदि की अनुकूलता या तदनुरूपता हो गयी। भगवान् जिन पर कृपा करते हैं, उनके लिये भी ग्रह-नक्षत्र की अनुकूलता आश्चर्य की बात नहीं। इस प्रसंग में ग्रहों के परस्पर सम्बन्ध, उनकी दृष्टि, दशा, अन्तर्दशा आदि के आधार पर कुछ लिखा जाना आवश्यक है। भगवत् कृपा से अर्थ, धर्म, मोक्षादि की प्राप्ति तो साधारण बात है। इसी के सहारे सन्त तुलसीदास जी जैसे परम भागवत महाकवि ने महान् संकट
झेलकर अगणित पातकियों का भवसागर से उद्धार करने के निमित्त श्रीरामचरितमानसरूप पावन सेतु का निर्माण किया।

ग्रहयोग और भगवत्कृपा के प्रसंग में जन्मांग के आधार पर विषय का प्रस्तुतीकरण इस प्रकार है-

जन्मांग में द्वादश भाव होते हैं। इन द्वादश भावों से संक्षेप में तन, धन, सहज, सुख, सुत, रोग, स्त्री, मृत्यु, धर्म, कर्म, आय और व्यय आदि का विचार किया जाता है।

गम्भीरतापूर्वक विचार करने पर भगवत्कृपा का प्रभाव द्वादश भावों पर भी पड़ता प्रतीत होता है। शारीरिक स्वस्थता, सात्त्विक धन की प्राप्ति, प्रेम का आचरण
करने वाले भाई, सुखी जीवन, आज्ञापालक पुत्र, नीरोगता, सती-साध्वी पत्नी, तीर्थस्थान में शरीर त्याग, धार्मिक
अनुकूलता, पुण्यकर्म, पवित्र आय और उत्तम कार्यों में धन का व्यय ये सभी मानव-जीवन की सर्वसम्पन्नता के
परिचायक हैं। जन्म के समय जो ग्रह पड़ जाते हैं, उन्हें दृष्टि में रखकर ही उपर्युक्त वर्णित द्वादश भावो पर विचार किया जाता है। जन्म के समय जो लग्न होता है, जन्मांग में उसका उल्लेख कर अग्रिम भावों में राशियों की स्थापना करके भावों का विचार होता है। प्रत्येक भाव के राशिका
स्वामी ही फिर तत्तद्भावोंका स्वामी माना जाता है और फिर तदनुकूल ही फल निर्दिष्ट होता है।

भगवत्कृपा और भावेश

दशमेश यदि बुध हो और उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ती हो तो जातक के ऊपर भी श्रीभगवान् की कृपादृष्टि होती है। नवमेश यदि उच्चस्थ हो, उस पर शुभ ग्रह (चन्द्र, बुध, गुरु, शुक्र आदि) की दृष्टि हो तो ऐसे
जातक पर प्रभु की कृपा होती है। (चन्द्रमा शुभ ग्रहों के साथ शुभ फलदायक है। पूर्ण चन्द्रमा भी शुभद माना जाता है।) यदि नवमेश पूर्ण बली हो और उसपर गुरु की
दृष्टि हो तो ऐसे जातक के ऊपर परमपिता परमात्मा की कृपादृष्टि सम्भव है। लग्न के स्वामी अथवा लग्न पर ही नवमेश की दृष्टि होने से जातक प्रभुकृपा का पात्र बन जाता है। यदि नवमेश बृहस्पति के साथ हो और
षड्वर्गों में बली हो अथवा लग्नेश पर बृहस्पति की पूर्ण दृष्टि हो तो जातक प्रभु की कृपा से महायशस्वी होता है। नवमेश सिंह के अंश का हो और उस पर लग्नेश की अथवा दशमेश की दृष्टि हो तो जातकके ऊपर प्रभु की कृपा अवश्य होती है। ऐसा जातक विश्व में यश का अर्जन करता है। दशमेश केन्द्रस्थ (लग्न, चतुर्थ, सप्तम या
क दशम भावमें) हो, नवमेश भी चतुर्थ भाव में हो तो ऐसा जातक प्रभु की कृपा से अपने व्यक्तिगत क्रिया-कलापोंद्वारा
यशका भागी बनता है।

यह सर्वविदित है कि जिस पर प्रभु कृपा हो जाती है, वह असम्भव को भी सम्भव में परिवर्तित कर सकता है। प्रभु की कृपा से पंगु भी हिमालय की चोटी पर चढ़ सकता है, अन्धा भी सब कुछ देख सकता है,
बधिर को श्रवण-शक्ति मिल जाती है। यह रहस्य ग्रह भी स्पष्ट करते हैं। किसी के जन्मांग में लग्नेश उच्च हो, उस पर शुभ
ग्रहों की दृष्टि पड़ती हो तो ऐसे जातक पर भगवान की कृपा दृष्टि सम्भव समझी जाती है। द्वितीयाधिपति उच्च का हो और उच्च का ही गुरु हो तथा द्वितीयेश पर गुरु की पूर्ण दुष्टि भी हो तो ऐसा जातक भगवत्कृपा का पात्र बनता है। द्वितीयेश उच्च हो अथवा पंचम, नवम या एकादश स्थान में विराजमान हो, बली लग्नेश का साथ हो और द्वितीयेश जिस स्थान में विराजमान हो, उस स्थान का स्वामी केन्द्रवर्ती हो तो जातक के ऊपर प्रभु की कृपा सम्भव है।

ग्रहयोग और ईश्वर-प्रेम

जन्मांग के पंचम स्थान से ईश्वर के प्रति प्रेम, श्रद्धा, भक्ति आदि का विचार किया जाता है। नवम भाव से धर्म का विचार होता है। नवम भाव और पंचम भाव- दोनों भावों को मिलाकर मानव की ईश्वरीय भक्ति का पूर्ण विचार होता है और इस प्रकार भगवान् की कृपा का भी पंचम स्थान में यदि कोई परुष ग्रह (सुर्य, मंगल एवं गुरु) बैठा हो या उसकी दष्टि पडती हो तो जातक पर प्रभु की कृपादृष्टि होती है। यदि पंचम भाव
सम राशि का हो, उस पर चन्द्रमा या शुक्र की दृष्टि पड़ती हो अथवा उसमें चन्द्रमा या शुक्र विराजमान हो तो मानव के ऊपर लक्ष्मी की कृपा होती है।

ग्रहयोग और आध्यात्मिक जीवन

वर्तमान समय में मानव विलासिता की ओर अग्रसरहो रहा है। विलास-सामग्री को प्राप्त करना ही उसका एकमात्र लक्ष्य बन रहा है, पर अब अमेरिका के धनपति भी विलासिता से ऊबकर आध्यात्मिक जीवनकी ओर ललचायी आँखों से देखने लगे हैं, वेषभूषा की नवीनता और
तामसी-राजसी भोजन भी अब उन्हें उतना रुचिकर नहीं प्रतीत होता। अमेरिका आदि देशों के बहुत-से लोग भारतीय आश्रमों में आध्यात्मिक जीवन बिताने के लिये
आने लगे हैं। ज्योतिष शास्त्र में आध्यात्मिक जीवन में सफलता के योग भी बताये गये हैं।

यदि दशम भाव में मीन राशि हो और उसमें बुध या मंगल बैठा हो तो ऐसा जातक प्रभु की कपासे पवित्र जीवन व्यतीत करता है। दशमाधि पति नवम में हो और बली नवमेश बृहस्पति और शुक्र ग्रह से दृष्ट या युत हो
तो जातक प्रभ की कृपा प्राप्त करने के लिये अग्रसर होता है। यदि नवमाधिपति बली शुभ ग्रह हो, उस पर गुरु या
शुक्र की दृष्टि अथवा गुरु या शुक्र का साथ हो तो ऐसा जातक प्रभुकी कृपाका पात्र बन जाता है। यदि लग्नेश दशम स्थान में और दशमेश नवम स्थान में हो, पुनश्च
दशमेश पापग्रह की दृष्टि से वंचित हो तो जातक शुभ-ग्रहों की शुभ दृष्टि के प्रभाव से भगवत्कृपा का अधिकारी बन जाता है। जन्मांग में चन्द्रमा और बृहस्पति के अन्तर्गत अन्य समस्त ग्रह स्थित हों तो ऐसा मानव निर्विघ्न भगवानकी शरणमें पहुँच पाता है। जन्मांग में शनि और मंगल के अन्तर्गत सभी ग्रह हों तो ऐसा मानव
भगवान् की कृपा का पात्र बनकर विश्व में ख्याति भी अर्जित करता है।