हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा

बीकानेर आ रहे प्रदेश के मुख्यमंत्री भजनलाल के लिए हालांकि बीकानेर नया नहीं है। विधानसभा चुनाव से पहले भी वे यहां आते रहे हैं, लेकिन तब बात और थी और अब स्थितियां बदल गईं हैं। उनसे अपेक्षाएं भी बढ़ती जा रही है, ऐसे में बुधवार का दिन इस दृष्टि से खास रहेगा कि मुख्यमंत्री बीकानेर के लिए क्या सोच रहे हैं। हालांकि, बीकानेर में उनका तीन घंटे का कार्यक्रम है, लेकिन बीकानेर उनसे अपेक्षाएं इसलिए भी ज्यादा कर रहा है क्योंकि इस जिले ने उन्हें छह विधायक दिये हैं। कांग्रेस का गढ़ माने जाते रहे इस जिले से यह परिणाम पाना भाजपा के लिए हैरत अंगेज रहा होगा, लेकिन अब तो यह साफ ही हो गया है कि बीकानेर से भाजपा को जो मिला, उसके अनुपात में न तो मंत्रिमंडल में हिस्सा मिला और न विकास में बीकानेर को सरकार के एक साल पूरे होने के बाद भी कुछ ऐसा मिला है, जिससे इस जिले को लग सके कि उसके लिए सोचा जा रहा है।

बजट की घोषणाओं की बात करें बीकानेर को कुछ खास मिला ही नहीं। मंत्रिमंडल में स्थान की बात करें तो सुमित गोदारा को जरूर केबिनेट दी गई, लेकिन बीकानेर को कम से कम एक और मंत्री मिलने की संभावना थी, जो अभी तक पूरी नहीं हुई। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। बीकानेर के राजनेता अपना ऐसा दबदबा कभी रख ही नहीं पाए कि वे अपनी तरफ ध्यानाकर्षित करवा सके। खासतौर से भाजपा की बात करें तो चार बार से बीकानेर का प्रतिनिधित्व कर रहीं सिद्धिकुमारी सवाल उठाने भी उचित नहीं समझती। पूर्व संसदीय मंत्री विश्वनाथ मेघवाल के भी यही हाल हैं। जबकि सिद्धि कुमारी ने अपने सामने किसी को भी अगर टिकने नहीं दिया है तो इसकी वजह बीकानेर विधानसभा पूर्व की जनता है, जिसे अपने क्षेत्र का न सिर्फ विकास चाहिए था बल्कि काम करने वाले विधायक की भी जरूरत थी। इसी तर्ज पर गोविंद राम मेघवाल जैसे कद्दावर नेता के सामने विश्वनाथ मेघवाल ने जीत दर्ज की तो खाजूवाला की जनता ने कुछ तो सोचा ही होगा। श्रीडूंगरगढ़ में सत्ता के साथ रहने की सोचते हुए ताराचंद सारस्वत को जिताया, लेकिन वहां ट्रोमा सेंटर का मुद्दा भी उलझा हुआ पड़ा है। कोलायत से अंशुमानसिंह भाटी और बीकानेर विधानसभा पश्चिम से जेठानंद व्यास जरूर विधानसभा में बोलते हुए नजर आते हैं, लेकिन पिछड़ेपन की बात करें तो इन दोनों विधानसभाओं का नाम सबसे पहले आता है, जहां जितना काम होना चाहिए था, हुआ ही नहीं।

बीकानेर विधानसभा पश्चिम को लेकर तो जैसे ब्यूरोक्रेसी उदासीन पड़ी है। अधिकांश पुराने शहर का यह क्षेत्र उखड़ी हुई सड़कों, टूटी हुई नालियों और खुूदी हुई सड़क के लिए कुख्यात होता जा रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे विषयों पर तो बात नहीं करें तो ही बेहतर। रेल फाटकों से लेकर सूरसागर तक के अनसुलझे मुद्दे और पीबीएम अस्पताल से लेकर जिला अस्पतालों की दुर्दशा का कोई धणीधोरी नहीं। पीबीएम अस्पताल में प्रशासक लगाने की मांग भी सिरे नहीं चढ़ रही है जबकि इस अस्पताल को कुशल प्रशासक और जवाबदेह अधिकारी चाहिए।

कहने को ये बहुत छोटी-छोटी समस्याएं हैं, लेकिन इनका समाधान करने के लिए न तो सरकार के पास समय है और न यहां के विधायकों में दबाव बनाने की क्षमता। ऐसे में बीकानेर की जनता भगवान भरोसे है। मुख्यमंत्री बीकानेर आ रहे हैं तो एक बार फिर आस जगी है, लेकिन इस तरह के दौरों से भला कौनसे क्षेत्रों का विकास हुआ है, जो बीकानेर का हो जाएगा।

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