मानवजाति इस पृथ्वी पर बहुत लम्बे समय से है और जीवविज्ञान इसकी उत्पत्ति के सिद्धांत भी उजागर करता है लेकिन हम जहाँ रहतें हैं उसके अतिरिक्त भी कई गृह और आकाशगंगाएं हैं जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के अलग-अलग आयाम हैं; तो सबसे महतवपूर्ण प्रश्न है की इन सबकी और ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का जवाब कौनसा व किस क्षेत्र का सिद्धांत देता है ? तो इसका उत्तर हमें मिलता है “भौतिक-विज्ञान” से । आज अगर देखें तो हमारे पास इस प्रश्न के विभिन्न व्याख्यान है लेकिन जो सबसे अधिक प्रचलित रहा और आज भी है, जो इस रहस्य्मयी सवाल को सबसे सटीक रूप से व सर्वाधिक सफलतापूर्वक बताता है, उस सिद्धांत का नाम है – “बिग – बैंग थ्योरी”। हालाँकि मूल रूप से इस सिद्धांत की अवधारणा इसके रूपात्मक सरंचना में आने से कई सदियों पहले हो चुकी थी। शुरुआत की महान दार्शनिक एरिस्टोटल (अरस्तु) ने, जब उन्होंने बताया की ब्रह्माण्ड सिमित (Finite) एवं प्रतिसम (Spherical) है और फिर वर्ष 1225 में, अद्वितीय धर्मशास्त्री रोबर्ट ग्रोसेटेस्टे ने अपने प्रतिपादित “ऑन लाइट” (De Luce/On light) प्रकरण द्वारा बताया की ब्रह्माण्ड एक विस्फोट में उत्पन्न हुआ जिसके कारण पृथ्वी के इर्द-गिर्द पदार्थ ने स्थिरता प्राप्त की जो विभिन्न गृह और तारों के रूप में बन गए। इस प्रतिपादन के लगभग 400 साल बाद भौतिकशास्त्री जोहान्स केप्लर ने भी ब्रह्माण्ड के सिमित होने का सिद्धांत रखा लेकिन इसके तक़रीबन 77 वर्षों बाद महान वैज्ञानिक आइजैक न्यूटन ने ब्रह्माण्ड में गति होने के सिद्धांत को सामने रखा। अब जैसे-जैसे समय बीतता गया वैसे-वैसे कई बुद्धिमान व्यक्तत्वों ने इन सिद्धांतों से सहमति जताई और कई अलग-अलग क्षेत्रों के विद्वानों ने इसी बात को अपने-अपने अंदाज़ में, या थोड़ा अलग तरीके से भी कहा जिनमें एडगर एलन पोए जैसे महान कवि व लेखक, इमानुएल कांट जैसे अपूर्व दार्शनिक जो एरिस्टोटल के सिद्धांत से सहमति रखते थे वो भी शामिल रहे ।

विभिन्न सिद्धांतों को प्रतिपादित करने का क्रम यूं ही चलता रहा लेकिन जैसे ही आधुनिक दर्शन का युग आया तब इस प्रश्न का सबसे संतोषजनक जवाब मिला; सन् 1912 में खगोल-विज्ञानी वेस्टो मेल्विन स्लिपर ने अपने अवलोकन से नीहारिकाओं (नेबुलाए) के संवेग का आंकलन करके महसूस किया की वे पृथ्वी से दूर हो रही हैं और फिर कुछ ऐसा ही आकलन खगोल-विज्ञानी कार्ल विल्हेम विर्ट्ज़ ने किया; हालाँकि इन दोनों ने उस वक़्त ये नहीं सोचा था की जिनका वे आकलन कर रहे हैं वे वास्तविकता में आकाशगंगाएं हैं। फिर साल 1916 में आया वो सिद्धांत जिसने इतिहास को बिल्कुल एकतरफा अपने नाम लिखवा दिया, और ये सिद्धांत उस हस्ती की खोज थी जिनका नाम स्वयं “जीनियस” का पर्याय बना, जिनका नाम ही महान होने का प्रतिबिम्ब है । एल्बर्ट आइंस्टाइन ने 1916 में गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को पुनः परिभाषित किया जो ब्रह्माण्ड के गहरे से गहरे रहस्यों के लिए एक आइना बन गया जिसे “थ्योरी ऑफ़ जनरल रिलेटिविटी” से सम्बोधित किया जाता है । रूस के विद्वान् गणितज्ञ अलेक्जेंडर फ्रीडमैन ने आइंस्टाइन के गणितीय समीकरणों के कई सोलूशन्स खोजे जो ये बताते थे कि ब्रह्माण्ड स्थायी नहीं है या तो लगातार इसका विस्तार हो रहा है और या ये सिकुड़ता जा रहा है वैसे आइंस्टाइन की समीकरणें ब्रह्माण्ड की हर परिस्थति में बिल्कुल सटीक काम करती है तो अब ब्रह्माण्ड की हर स्थति का गणितीय प्रमाण मिल चुका था और बाकी रह गयी थी उस अंतिम सिद्धांत की खोज जिसके ऊपर उन गणितीय पहलुओं में से किसी एक को अलंकृत करना था I प्रायोगिक तरीके से अमेरिकी खगोल-विज्ञानी एडविन हबल ने सन् 1929 में सिद्ध किया की कैसे और वेग के किस दर से आकाशगंगाएं एक दूसरे से दूर जा रहीं हैं; इसमें उन्होनें 100-इंच हूकर टेलिस्कोप को मुख्य रूप से प्रयोग में लिया जो अमेरिका की माउंट विल्सन ऑब्जर्वेटरी में स्थित है, इस प्रयोग में उनके साथी मिल्टन हुमासन ने भी अपना योगदान दिया जिसके बाद खुद आइंस्टाइन भी हबल से काफी प्रभावित हुए ।

लेकिन इस प्रयोग से 2 वर्ष पूर्व ही, सन् 1927 में एक पादरी ने जो एक भौतिकशास्त्री भी थे; आइंस्टाइन से प्रभावित हो स्वतंत्र रूप से फ्रीडमैन के द्वारा दी गयी गणितीय संरचना को विस्तार होते ब्रह्माण्ड (Expanding Universe) के लिए प्रारूप बनाया और इसके साथ ही उन्होंने उस सिद्धांत की परिकल्पना की जिसने ब्रह्माण्ड को देखने का नजरिया हमेशा के लिए तब्दील कर दिया; सन् 1931 में उन्हीं बेल्जियम में रहने वाले कैथोलिक पादरी “जॉर्जेस लेमेत्रे” ने “आदिम परमाणु की परिकल्पना” (hypothesis of the primeval atom / hypothèse de l’atome primitif) नामक परिकल्पना को प्रस्थापित किया जिसमें उन्होंने सफलतापूर्वक उस सिद्धांत की नींव स्थापित की जिसे आज “बिग-बैंग थ्योरी” के नाम से जाना जाता है। लेमेत्रे ने अपनी परिकल्पना में बताया की ब्रह्माण्ड मौलिक रूप से एक परमाणु के विस्फोट के साथ शुरू हुआ और फिर आगे बिग-बैंग थ्योरी बताती है की विस्फोट के समय उस तत्व का अनंत घनत्व और सामयिक गर्म तापमान था (Infinite density & Infinite temperature) और इस विस्फोट के बाद ही जैसे-जैसे तापमान गिरने लगा वैसे-वैसे स्पेस और टाइम (Space & Time) अपने अस्तित्व में आने लगे । लेकिन इस विचार को “बिग-बैंग” नाम इस प्राकल्पना पर एक तंज़ करते हुए खगोल-विज्ञानी “फ़्रेड हॉयल” ने वर्ष 1949 में कहा था जो इस सिद्धांत को बिलकुल नहीं मानते थे ।

आज भी ब्रह्माण्ड (Universe) के प्रारम्भ को लेकर कई अवधारणाएं हैं लेकिन वैज्ञानिक पृष्टभूमि से यह थ्योरी सबसे अधिक सफल रही हालाँकि कई वैज्ञानिकों ने ये भी माना है की ब्रह्माण्ड अनंत है या इसे भगवान ने बनाया है लेकिन प्रशिद्ध भौतिकशास्त्री स्टीफन हॉकिंग का कहना था कि ये भगवान ने नहीं बनाया क्योंकि बिग-बैंग से पहले टाइम (Time) का कोई अस्तित्व ही नहीं था तो ईश्वर के पास समय ही नहीं था की वो ब्रह्माण्ड बनाये । इन्हीं तर्कों को जन्म देते-देते आज हमारा ब्रह्माण्ड लगभग 14 अरब वर्षों का हो चुका है लेकिन सार्वभौमिक सत्य की खोज आज भी जारी है और यदि ब्रह्माण्ड अनंत है तो अनंत स्वयं एक सार्वभौमिक सत्य है ।