हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा
भाजपा एक बार फिर से कांग्रेस को अपने रास्तों की फिर से समीक्षा करवाने में कामयाबी हासिल कर ली है। जिस सरदार पटेल को कांग्रेस ने अपेक्षाकृत तरजीह नहीं दी, उसी पटेल की डेढ़ सौ वीं जयंती पर कांग्रेस गुजरात में बड़ा आयोजन करने जा रही है। हौसले को तो दाद देनी होगी कि कांग्रेस ने गुजरात के अहमदाबाद को चुना है। पिछले दिनों राहुल गांधी ने ऐसे संकेत भी दिए थे कि हम अगर अपना वोट प्रतिशत बढ़ाएं तो गुजरात भी जीत सकते हैं, लेकिन इसके लिए सरदार पटेल की जयंती का चुनाव किया जाएगा, यह कल्पनातीत था, क्योंकि पिछले दिनों सरदार बल्लभ भाई पटेल को लेकर भाजपा ने जिस तरह के कार्यक्रम किये, उसके बाद से यह लगने लगा था कि वाकई कांग्रेस ने उनके मूल्यांकन और यथोचित सम्मान देने में कोताही बरती।

ऐसे में अगर कांग्रेस एआइसीसी के अधिवेशन को सरदार पटेल की जयंती की पूर्व संध्या पर आयोजित कर रही है तो निश्चित रूप से यह संदेश जाएगा कि कांग्रेस पश्चाताप कर रही है और इस पश्चाताप के कारण कांग्रेस को भले ही कोई फायदा मिले या नहीं, भाजपा को यह बोलने का जरूर मौका मिल जाएगा कि उनकी वजह से सरदार पटेल की कांग्रेस को याद आई।

बहरहाल, सरदार पटेल की जयंती की पुण्य संध्या पर कांग्रेस का अधिवेशन एक संयोग भी हो सकता है, लेकिन इस बात में दो राय नहीं है कि कांग्रेस एक बार फिर से करवट लेने की मुद्रा में दिखाई दे रही है। आठ और नौ अप्रैल को अहमदाबाद में होने वाले अधिवेशन से पूर्व कांग्रेस ने देशभर से कांग्रेस पदाधिकारियों से मिलने का कार्यक्रम बनाया है, जिसमें शहर-जिला कांग्रेस कमेटियों के अध्यक्षों से मिलना भी तय है।

इससे पहले जिलाध्यक्षों के प्रति भी संगठन उदासीन ही था। सारा काम प्रदेश इकाइयों के भरोसे ही होगा बल्कि इसे यूं कहना चाहिए कि कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्त्व को इस बात का महत्व ही कभी समझ नहीं आया कि वे स्थानीय इकाइयों के पदाधिकारियों से मिले भी। पिछले डेढ़ दशक में इस तरह का कोई भी कार्यक्रम नहीं हुआ, जिसमें स्थानीय इकाई के अध्यक्ष का भी राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ एक बार भी आमना-सामना हुआ हो। बैठकों का यह सिलसिला अप्रैल पहले सप्ताह तक पूरा हो जाएगा और इसके बाद अधिवेशन की तैयारियां अहमदाबाद में होगी। इस बात की प्रबल संभावना है कि एक बार फिर से कुछ नया प्लान सामने आएगा, जिसे लीड राहुल गांधी ही करेंगे।

दरअसल, कांग्रेस के पास अब राहुल गांधी के अलावा कोई ऐसा नेता भी नहीं है, जिसे लेकर संभावनाएं जताई जा सके और यही वह नाम है, जहां आशंकाओं की भरमार है। राहुल गांधी ने कांग्रेस को लेकर जितने भी प्रयोग किये हैं, उन्हें जन-समर्थन जरूर मिला है, लेकिन वे खुद ही इन सभी फार्मूलों पर फिट नहीं बैठे हैं। सतत क्रियान्वयन नहीं कर पाने की वजह से उनकी सारी योजनाएं सफल होते-होते रह गई है। हां, यह जरूर हुआ है कि राहुल गांधी ने बहुत सारे ऐसे नेताओं को किनारे लगा दिया है, जो नई कांग्रेस में न सिर्फ मिसफिट थे बल्कि उनके आदेशों को तरजीह भी नहीं देते थे। राजस्थान से अशोक गहलोत भी इसी सूची में शामिल हैं। उनकी जगह सचिन पायलट को तरजीह मिलना और अशोक गहलोत का विधानसभा में जाने तक से मोहभंग होना, इस बात का द्योतक है कि राजस्थान कांग्रेस में भी बड़ा बदलाव होना है। इस बदलाव का पहला सूत्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में टीकाराम जूली का आविर्भाव है, जिनके किये से भले ही कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद डोटासरा नाराज हों, लेकिन जूली पर कोई फर्क नहीं नजर आ रहा है। बहरहाल, अप्रैल की नौ तारीख के बाद ही पता चलेगा कि परिवर्तन के एक और दौर से निकल रही कांग्रेस खुद को कितना परिवर्तित कर पाती है।

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