• मनोज रतन व्यास

दो दिवस पूर्व ही इस जग को सदा के लिए अलविदा कहने वाले दिलीप कुमार और गुरुदत्त की विचार प्रक्रिया में गजब की समानता थी। दिलीप कुमार ने जीवन के 98 बसंत देखे थे। आज गुरुदत्त जीवित होते तो अपना 96वां जन्मदिवस मना रहे होते, जी..आज हुनर की पराकाष्ठा वाले कलाकार गुरुदत्त का जन्मदिन है। गुरुदत्त और दिलीप कुमार का थॉट प्रोसेस कमोबेश एक सा ही था। दिलीप कुमार फिल्मी दुनिया में करीब पांच दशकों तक सक्रिय रहे और करीब 60 फिल्मों में अभिनय किया। गुरुदत्त भी बॉलीवुड में बालिग होने की उम्र जितने ही एक्टिव रहे और डेढ़ दर्जन फिल्मों का ही हिस्सा रहे। हिसाब लगाए तो दोनों महान फ़नकारों ने औसतन एक साल में एक ही प्रोजेक्ट पर काम किया, सनद रहे गुरुदत्त अभिनेता के साथ निर्देशक, निर्माता और कोरियोग्राफर भी थे।

अस्सी और नब्बे के दशक में तो फ़िल्म स्टार्स 30-40 फिल्में साइन कर बिना कोई क्वालिटी कंट्रोल के बस धनाधन फिल्मी प्रोडक्ट का उत्पादन करते थे। आज भी अक्षय कुमार की एक दर्जन से ज्यादा फिल्में फ़िल्म निर्माण की अलग अलग स्टेज पर है। 30-40 फिल्में साइन कर काम करने पर गोविंदा, चंकी पांडे, जैकी श्राफ आज कहाँ है, बताने की जरूरत नही है। इन अभिनेताओं किस फ़िल्म को कालजयी कृति माना गया,ये भी स्मृति में नही आता है। अक्षय कुमार की फिल्में प्यासा, कागज के फूल, चौहदवीं का चाँद, देवदास, मुग़ल-ए-आजम की क्लास के कितने समीप है, ये कोई आम सिनेप्रेमी भी फर्क कर बता सकता है।

ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार और निष्णात अदाकार गुरुदत्त की वर्किंग स्टाइल को आज की नव पीढ़ी को अनुकरण करना चाहिए। दोनो सिनेमा साधकों ने करियर के शुरुआती दिनों में ही ये तय कर लिया था कि स्वयं को किस हद तक खर्च करना है। खुद को अतिरेक में एक्सपोज करने के हैंगओवर से दोनो बड़े कलाकारों ने अपने आप को दशकों तक बचाए रखा। दोयम दर्जे का काम करना दोनो स्टार्स को रत्ती भर भी मंजूर नही था। इतना चूजी होने के बाद भी दिलीप कुमार पचास और साठ के दशक में हाइएस्ट पेड एक्टर थे। गुरुदत्त भी फ़िल्म की गुणवत्ता से समझौता किए बगैर लेविस बजट की फिल्में बनाया करते थे। काम की कद्र, क्राफ्ट पर पकड़ और निज अनुशासन हो तो धन बाय प्रोडक्ट की तरह स्वतः ही आता ही रहता है।

एक कलाकार की असली वसीयत उसकी लेगेसी होती है। लेगेसी को ही युवा वर्ग फॉलो करता है। दिलीप कुमार की अभिनय शैली को खुल्लम खुला कॉपी कर जाने कितने एक्टर सुपरस्टार बन गए। दिलीप कुमार की सही मायनों में यही रियल नेट वर्थ है। गुरुदत्त के क्लोज-अप शॉट, सॉन्ग फिल्मांकन एंगल, रंगों का अद्धभुत प्रयोग करना अनगिनत फ़िल्म निर्देशकों का सिनेमाई स्कूल है। निज हुनर को धीरे धीरे पॉलिश कर किसी बेतुकी अंधी दौड़ में शामिल न होकर अपनी राह बनाकर सफलता के अनदेखे नव मील के पत्थरों को छूना ही एक सच्चे कलाकार का ध्येय होना चाहिए।