इतिहास की किताबों में अब नेहरु का नाम नहीं
जयपुर। स्कूली पाठ्यक्रम में पहले इतिहास विषय की हर पुस्तक में प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरु के योगदान का खूब उल्लेख हुआ करता था लेकिन नई छपी किताबों में नेहरु का नाम तक नहीं है। कक्षा आठ तक के लिए तैयार नए पाठ्यक्रम में छठी से आठवीं तक की इतिहास की सभी किताबों से नेहरु का नाम गायब है।
नई पुस्तकों में असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा, दांडी सत्याग्रह, भारत छोड़ो आंदोलन में महात्मा गांधी के नेतृत्व का जिक्र है। चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव, राजगुरु, पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल, चापेकर बंधु, वीर सावरकर, नेताजी सुभाषचंद्र बोस के योगदान पर विशेष सामग्री दी गई है। प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का सचित्र उल्लेख है लेकिन नेहरु का कहीं भी जिक्र नहीं है।
यहां तक कि कक्षा 6 की इतिहास की पुस्तक में ‘स्थानीय स्वशासनÓ शीर्षक वाले पाठ में नागौर में 2 अक्टूबर 1959 को पंचायती राज की शुरुआत का उल्लेख है लेकिन यहां भी नेहरु का नाम नहीं है। पहले हर जगह पढऩे को मिलता था कि इसकी शुरुआत नेहरु ने की थी। गौरतलब है कि राज्य में सत्र 2015-16 तक एनसीईआरटी की पुस्तकें प्रचलित थी। तब आठवीं की इतिहास की पुस्तक में स्वतंत्रता आंदोलन और आजादी के बाद के भारत विषयक शीर्षकों में नेहरु का कई जगह उल्लेख था।
यहां तक कि एक ही पाठ में नेहरु के कई चित्र थे। बम्बई में कांग्रेस अधिवेशन में महात्मा गांधी के साथ बात करते हुए, संविधान सभा में भाषण देते हुए सहित तीन से अधिक फोटो थे। एक दर्जन से अधिक जगह विभिन्न संदर्भों में स्वतंत्रता आंदोलन में नेहरु की भूमिका का उल्लेख था। इतना ही नहीं बल्कि जवाहरलाल नेहरु के साथ मोतीलाल नेहरु और कमला नेहरु का जिक्र भी पुरानी प्रकाशित किताबों में कई जगह पढऩे को मिलता था।
पटेल पर विशेष जोर
पाठ्यक्रम में सरदार वल्लभ भाई पटेल के योगदान का विशेष उल्लेख किया गया है। आठवीं की इतिहास की पुस्तक में तो पटेल के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान पर सचित्र जानकारी दी गई है। रियासतों के एकीकरण के प्रयास में पटेल के योगदान पर अलग से सामग्री है। पांचवीं की हिंदी की पुस्तक में ‘दृढ़ निश्चयी सरदारÓ शीर्षक से सोलहवां पाठ दिया गया है।