सरस्वती देवी (जिया बाई)

 

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लॉयन न्यूज़, बीकानेर। सनातन धर्म में स्त्री को पूजनीय माना गया है इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है, स्त्री में अपनों के लिए त्याग और समर्पण की भावना का होना है। वह अपने से पहले अपने परिवार की रक्षा करने के लिए हमेशा तैयार रहती है। कभी अपने पिता, कभी अपने पुत्र और कभी अपने पति की दीर्घायु के लिए हमेशा कुछ न कुछ व्रत, नियम, अनुष्ठान करती ही रहती है।
कार्तिक माह की कृष्णपक्ष की चतुर्थी का भी इस सन्दर्भ में विशेष महत्व है, क्योंकि इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने सुहाग की रक्षा के लिए दिनभर भूखी- प्यासी रह कर भगवान से अपने पति के लिए लम्बी आयु का वरदान मांगती हैं।
हर त्योंहार के पीछे एक पौराणिक कथा होती है जो उस त्योंहार की परम्परा का बोध करवाती है।

करवा चौथ का व्रत क्यों किया जाता है इसके लिए भी एक कथा है, जिसके कारण चौथ माता को सुहाग की रक्षा का प्रतीक माना जाता रहा है।

साले की होली में रहने वाली 81 वर्षीय सरस्वती देवी उर्फ जिया बाई जो कि लगातार प्रत्येक त्योंहार पर अगली पीढ़ी की महिलाओं को कहानी-कथाओं के माध्यम से इन सब के बारे में बताती रहती हैं, उन्होंने ‘लॉयन एक्सप्रेस’ को भी विस्तार से इस व्रत का महत्व बताया।

करवा चौथ की कथा के बारे में बताते हुए सरस्वती देवी ने ‘लॉयन एक्सप्रेस’ को बताया कि किसी जमाने मे एक सेठ था उसके सात पुत्र व एक पुत्री थी। पुत्री सबसे छोटी होने के कारण सभी की लाडली थी, परन्तु सातो भाइयोंं को वह विशेष प्रिय थी। वे सभी अपनी बहन का बड़े ही लाड-प्यार से लालन-पालन करते थे। बहन बड़ी हुई तो बहन की शादी कर दी गई। शादी के बाद करवा चौथ आई तो उसकी मां व भाभियों ने उसको करवा चौथ का व्रत करने को कहा। बड़ो की बात मान कर उसने व्रत रखा। चूंकि वह सभी भाइयों की लाडली थी तो सुबह भाइयों ने उससे खाने के लिए पूछा तो उसने व्रत का कहकर मना कर दिया, दोपहर को भी मना कर दिया, शाम हो गई तब भाइयों ने जोर देकर खाने के लिए कहा तो भी उसने चन्द्रमा के दर्शन के बाद व्रत खोलने की बात कह कर खाने से मना कर दिया।

भाइयों से उसकी दशा देखी नहीं जा रही थी, तो एक भाई ने कहा कि मै दूर जगह पर कुछ जला कर रखता हूं तुम उसको कहना की चन्द्रमा उदय हो गये हैं और अब तुम दर्शन कर व्रत खोल सकती हो। ऐसा ही किया गया, बहन ने भाइयों पर विश्वास कर उसी को चन्द्रमा मान लिया और उनको अर्ध्य देकर भोजन करना आरम्भ कर दिया, जब उसने पहला कौर लिया तो उसमें सिर का बाल आया, दूसरे में छोटा कीट आया, तीसरे में उसके हाथ से निवाला ही गिर गया।

ऐसे करते कुछ न कुछ अनिष्ट होता रहा और सातवें कौर तक तो उसके ससुराल से संदेशा आया कि उसका पति मर गया है। तब उसकी मां ने उससे बात पूछी कि चन्द्रमां तो अब उदय हुआ है, तुमने पहले ही कैसे भोजन कर लिया? तो उसने कहा कि मुझे तो भाइयों ने चन्द्रमा के दर्शन करवा दिये तब मैने भोजन प्रारम्भ कर दिया। इसके बाद उसकी मां ने कहा तुम्हे इसी समय अपने ससुराल जाना है और वहां जाकर सबके चरण छूने है। वहां एक छोटी बच्ची भी होगी जो कि अभी पालने में है उसके भी चरण छूना। वो जो तुम्हे कहे तुम केवल उसका ही पालन करना। वह तुरन्त अपने ससुराल चली गई, वहां रूदन चल रहा था। पर उसने सबके पैर छूए और मां के कहे अनुसार उस छोटी बच्ची के भी चरण छुए तो उसने उसको आशीर्वाद देते हुए कहा कि तूं चिन्ता मत कर सब ठीक होगा। सब कोई उसके मृत पति के शरीर को जलाने के लिए ले जाने लगे तो उसने मना कर दिया और कहा कि आप इन्हें जलाओ मत। शहर के बाहर मेरे लिए एक झोंपड़ी बना दो वहां पर ही मैं अपने पति के साथ रहूंगी। उसके ज्यादा आग्रह पर सभी ने ऐसा ही किया। एक साल बीत गया फिर सेे करवा चौथ आई तो उसकी मां ने अपनी बहुओं को उसके पास भेजा और उससे करवा बंटाने की बात कही। सभी उसके पास गई और कहने लगी ‘कळे काटणी करवो ले, भाइयों री बेनड़ करवो ले। सभी ने मिलकर माता की स्तुति करी तो मां को दया आ गई बाद में वह प्रसन्न हो गई और और उसके मृत पति को जीवनदान दिया।

तभी से यह परम्परा बन गई है कि कम से कम दो महिलाएं मिल कर आपस में करवे को बांटती है और चौथ माता की पूजा करती है। करवा चौथ में पूजन के लिए एक मिट्टी का करवा होता है उसके साथ मैदे की पूडिया जिसे खाजे कहते है वे 10 होने चाहिए साथ में काचर, बोर और मोठड़ी आदि से मां करवा चौथ की पूजा की जाती है।

‘लॉयन एक्सप्रेस’ को सरस्वती देवी बताती है कि इस रात को चन्द्रमा के दर्शन सीधे नहीं करने चाहिए। इससे घर में संकट आता हैं इसीलिए चन्द्र दर्शन करने के लिए महिलाएं चलनी बीच में रखती है और प्रतीक स्वरूप उसमें दिया भी रखती है। जिस प्रकार उसने मां में पूरी आस्था रख कर विश्वास के साथ अपने पति के जीवन की रक्षा करी उसी परम्परा का निर्वहन आज की महिलाएं दिन भर भूखी-प्यासी रहकर रात को चन्द्रमा के दर्शन करने के पश्चात ही अपने पति का चेहरा देख कर ही भोजन करती है, कई महिलाएं तो दिन भर बिना जल के भी इस व्रत को करती हैं।
सरस्वती देवी कहती है कि आस्था होनी चाहिए क्योंकि आस्था में तर्क नहीं होता और जहां तर्क होता है वहां आस्था नहीं होती।