हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा
गतांक से आगे
कल ‘पायलट के दबाव में कोचिंग पर नकेल, क्या इससे बंद हो जाएंगी पेपर-लीक की घटनाएंÓ शीर्षक से लिखे ‘हस्तक्षेपÓ के बाद कुछ प्रश्न भी आए और कुछ लोगों ने सम्मतियां भी जताई। जो प्रश्न आए, उसमें सरकार की कार्रवाई पर भी सवाल थे कि जिन किराए की इमारतों में कोचिंग चल रही है, उसे ढहाने से क्या नकल रुक जाएगी। इस तरह यह भी सामने आया कि क्यों न सरकार अपनी व्यवस्थाओं में सुधार करे कि प्राइवेट-कोचिंग वाले पनपे ही नहीं, लेकिन यह सुधार हो किस तरह। अगर यही प्रक्रिया चलती रही और  देश में युवाओं को नौकरी देने का एक ही फार्मूला रहा तो फिर उससे भ्रष्टाचार को कैसे निकाला जा सकेगा।
इस समस्या को जब समाधान की दृष्टि से देखा जाए तो इस बात को स्वीकार करने से किसी को गुरेज नहीं होना चाहिए कि यहां भी ‘मांग और आपूर्तिÓ का सिद्धांत लागू होता है। जिसे चाहिये, उसके लिए सारा बाजार तैयार है कि तर्ज पर यहां भी यही हुआ। इस रूप में समस्या की सबसे बड़ी जड़ तो वे लोग हैं, जिन्होंने ‘शॉर्ट-कटÓ तलाशने चाहे। इस तलाश में ‘जरूरतमंदोंÓ ने बड़ी भूमिका निभाई और इस तरह यह खेल बड़े स्तर पर पनपा, जिसमें सरकारी नौकरी पाना अभीष्ट था, इस अभीष्ट की सिद्धि में सरकारी-नौकरी का मूल ध्येय गौण हो गया कि यह भी किसी न किसी रूप में देश की सेवा है।
दिक्कत यह है कि हमने देश-सेवा या देश-भक्ति का अर्थ सिर्फ सैन्य-सेवाओं को ले लिया है जबकि देश का हर वह व्यक्ति, जो किसी न किसी रूप में नागरिक सेवाओं को करते हुए सीधे नागरिक से किसी तरह का शुल्क नहीं लेता है, उसे देशभक्ति कहा जाना चाहिए। इस तरह तमाम तरह की सरकारी-सेवाओं को इस देश-सेवा की श्रेणी में रखा जाना चाहिए, जिसे प्रकारांतर से नागरिक सेवा कहा जा सकता है। देश के लोकतंत्र को मजबूत करने वाले नागरिक की सेवा, देश की सेवा में कर देने वाले नागरिक की सुविधा के लिए बने हुए संस्थानों में कार्यरत लोक-सेवकों को इस रूप में देखा जा सकता है, लेकिन पहले ये लोक-सेवक ‘नौकर-शाहÓ बने और फिर ऐसा ताना-बाना बुना कि कड़ी-से-कड़ी जुड़ गई। हाल ही में अजमेर का दिव्या मित्तल केस ही क्यों, किसी भी रिश्वत के प्रकरण पर नजर डालें, एक ही बात सुनने को मिलती है कि हम अकेले नहीं खाते हैं, सभी को देना पड़ता है।
पेपर-लीक प्रकरण के बारे में भी यही कहा जा रहा है। सचिन पायलट के आरोप संगीन हैं। यह दीगर है कि उनकी बातों को हंसी में उड़ाया जा रहा है, लेकिन आज अगर अशोक गहलोत विपक्ष में होते तो उनकी स्क्रिप्ट भी यही होती, क्योंकि सच्चाई सभी जानते हैं कि किसी एक की हिम्मत नहीं होती कि वह पेपर-लीक कर दे। मतलब यह कि बहुत बड़ा नेटवर्क है, गिरोह है या के माफिया है।
सवाल यह है कि यह खत्म कैसे हो, तो इसका एक ही जवाब है कि इसके लिए नागरिकों को ही सख्त होना होगा। यह समझना बहुत अधिक जरूरी है कि सरकारी नौकरी निवेश नहीं, देश सेवा है। यह आजीविका-प्राप्ति का सबसे सरल साधन नहीं है, बल्कि यह भी नहीं है कि सरकार ने आपको मूलभूत अधिकारों के तहत इसे दिया है। या यह भी नहीं है कि पैसों की बल पर आप ने इसे हथियाया है, निवेश किया है। यह विशुद्ध रूप से देश की सेवा के लिए मिला हुआ अवसर है, आपको अपने देश की व्यवस्था को चलाने  के लिए बने हुए किसी प्रकल्प में काम करने का अवसर मिल रहा है, जिसकी एवज में सरकार आपको आजीविका की गारंटी देती है। सुविधाएं देती हैं, भत्ते देती है और सेवानिवृत्ति के बाद एक निर्धारित राशि भी देती है।    
क्रमश:    
   
‘लॉयन एक्सप्रेसÓ के संपादक हरीश बी.शर्मा के नियमित कॉलम ‘हस्तक्षेपÓ के संबंध में आपके सुझाव आमंत्रित हैं। आप 9672912603 नंबर पर वाट्स अप कर सकते हैं।