लॉयन न्यूज,बीकानेर। आधुनिक शिक्षा के परिवेश में हम यह बात भूल रहे है कि बच्चे को आज सिर्फ़ स्कोर मेकर बनाने की होड़ लगी है। जबकि शिक्षा का समग्र स्वरूप देखा जाए तो उसने शिक्षा के साथ स्वास्थ्य, फ़िटनेस, सकारात्मक ऊर्जा, खेल को पाया जाता है या बच्चों की रुचि संगीत, चित्रकला, या कोई भी शिल्पकार्य भी जीवन को दिशा देने मे बड़ी भूमिका निभाते है। बहुत कम संभ्रांत वर्ग ही अपने बच्चों को अदर्स ऐक्टिविटीज़ से जोड़ के रखते है।

अब प्रश्न यह उठता है कि पढ़ाई के अलावा बाक़ी क्रियाओं का समय कहाँ चला जाता है?
अगर देखा जाए तो किताबों के बोझ से ही बच्चे ख़ुद को नहीं निकाल पा रहे है। हर निजी स्कूल ने अपने मन से अलग अलग पब्लिशर की बुक्स लगा रखी है जिनमे कक्षा के स्तर से ऊपर कार्यभार निहित होता है। नतीजन उनको समझना और याद करना और करवाना भी अभिभावकों के लिए कोई चुनौती से कम नही आंका जा सकता। सात घंटे स्कूल में और तीन घंटे कोचिंग में बिताने के बाद भी बच्चे से यह शिकायत रहती है कि यह पढ़ता नहीं।अब बच्चा त्रिकोणीय दबाव में है, स्कूल, कोचिंग और अभिभावक।तीनों तरफ़ से बच्चे को सिर्फ़ और सिर्फ़ उच्च प्राप्तांक का लक्ष्य दबाव बनाया जाता है। यही कारण है की कोटा हो या बेंगलुरु बच्चे अवसाद से ग्रसित होकर जीवन लीला समाप्त करते देखे जा सकते है। बच्चा भले ही मरने से पहले अभिभावकों को अपनी असफलता के लिए माफ़ी माँगता हुआ पत्र लिखकर दुनिया छोड़ दे पर वास्तविकता में उस मासूम के गुनाहगार अभिभावकों की स्वयं थोपी गई इच्छाएँ, आकांक्षाएँ है जो एक बच्चे को इस हद तक ले जाती है कि वो ख़ुद को अपराबोध से ग्रस्त मानने लगता है।

प्राचीन काल में गुरुकुलों की जीवनशैली में भी एक संतुलन होता था जिसमें व्यावहारिक शिक्षा के साथ साथ रोजगारमुखी, कला, शस्त्र प्रशिक्षण के साथ मनोरंजन को भी महत्व दिया जाता था।

कैसे समाधान निकालें?

– दूसरे विकल्प को यानी कोचिंग ज़रूरत नहीं हो तो बच्चे को ना भेजे, इस तरह से बच्चे का अतिरिक्त कार्यभार कम किया जा सकता है।

– सुबह जल्दी उठे बच्चों को घर आते ही ट्यूशन या होमवर्क के लिए दबाव ना बनाएँ बल्कि दिन में भी डेढ़ से दो घण्टे की नींद उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी है।

– कम से कम एक घण्टे बच्चों को आउट्डोर गेम अनिवार्य रूप से खेलने भेजा जाए तो उनकी याददाश्त भी बढ़ती है।

– शाम के तीन घंटों के समय में अभिभावक बच्चों को विषय समझाने याद करवाने में मदद कर सकते है ना कि बच्चों पर ही सब कुछ छोड़ दिया जाए।

– अगर बच्चे को समझ नहीं आए तो याद नहीं कर पाएगा। रटने की प्रवृत्ति से छुटकारा दिलवाया जाए।

– लाइफ से करें रिलेट
बच्चों को पढ़ाते समय सिर्फ किताबी ज्ञान देने से बच्चे बोर होने लगते हैं और टॉपिक को सही तरह से नहीं समझ पाते हैं।इसलिए पढ़ाते समय बच्चों को कुछ रियल लाइफ उदाहरण देना न भूलें।इससे बच्चों की विषय में दिलचस्पी बढ़ेगी और बच्चे जिंदगी से जुड़े उदाहरणों के जरिए चीजों को हमेशा याद रख सकेंगे।

– रिवीजन कराना न भूलें
बच्चों को कोई भी विषय पढ़ाना या समझाना ही काफी नहीं है।चीजों को लम्बे समय तक बच्चों के माइंड में स्टोर करने के लिए उन्हें हर पढ़ाई हुई चीज का रिवीजन करने की सलाह दें।साथ ही कोई भी नया चैप्टर शुरू करने से पहले पुरानी चीजों को जरूर रिवाइज करवा दें।इससे बच्चों को पढ़ी हुई चीज पूरी तरह से याद रहेगी।