धरियावद।  कभी जो हाथ कलम लेकर बच्चों को ज्ञान बांटने के लिए उठा करते थे अब वे ही हाथ अपने परिवार के पालन पोषण के फावड़ा और तगारी उठा रहे है। हालांंकि शुरू में इन्हें मजदूरी के इस काम में शर्म आई लेकिन सामने बूढी मां एवं बच्चों की जिम्मेदारी ने उन्हें इसको स्वीकार ने पर मजबूर कर दिया। यह नजारा  धरियावद उपखण्ड के खूंता टांडा तालाब से मेन नाला तक  मनरेगा के तहत चल रहे कार्य के दौरान देखने को मिला।यहां पर ब्लॉक की खुंता ग्राम पंचायत के निवासी  अनिल, अवराज एवं हेमराज नामक ये तीनों युवक संविदा पर विद्यार्थी मित्र का काम कर रहे थे। अब पिछले 24 माह से बेरोजगारी के कारण यहां पर मजदूरी कर रहे हैं। उपखण्ड के कई बेरोजगार विद्यार्थीमित्रों का कमोबेश यही हाल है।

लेकिन फिर भी हिम्मत नहीं हारी 

अनिल, हेमराज एवं अवराज तीनों संविदा विद्यार्थीमित्रों ने बताया कि जब वो शुरू में मनरेगा में मजदूरी करनें गए तो उनका कई लोगों ने मजाक उठाया लेकिन घर परिवार की जिम्मेदारी के आगे उन्होंने हिम्मत नहीं हारी मजदूरी करना ही उचित समझा।

बूढ़ी दादी की जिम्मेदारी

 सात वर्षो से संविदा विद्यार्थी मित्र में कार्य कर चुका हेमराज लबाना के पिता गौतमलाल का देहांत 15 वर्ष पूर्व ही हो गया था। पिता के बाद घर में 75 वर्षीय वृद्ध माता फूलीबाई सहित अन्य लोगों की जिम्मेदारी भी हेमराज पर आ गई। पूर्व में विद्यार्थी मित्र के सहारें धर खर्च चल जाता था, लेकिन अब  मजदूरी ही घर चलाने का एकमात्र जरिया  हैं।

यह था मामला

वर्ष 2008   में विद्यार्थीमित्रों के नाम से राजकीय विद्यालयों में शिक्षकों के रिक्त पदों पर संविदा विद्यार्थीमित्र के नाम से योजना शुरू कर तत्त्कालीन सरकार ने लगाया था लेकिन दो साल पूर्व कानूनी अडचनों एवं अन्य कारणों का हवाला देते हुए  सरकार ने प्रदेश में कार्यरत 24 हजार संविदा विद्यार्थीमित्रों की 24 माह पूर्व सेवा समाप्त कर दी थी। तभी से ये सभी बेरोजगार हैं।