पल्लू। सड़क नहीं तो कौन जाए उस गांव में। जी कड़ा कर अगर चले भी गए तो वाहन रेत के समंदर में ऐसा फंसेगा कि उसे निकालने में पसीने छूट जाए। यही वजह है कि इस गांव में जाने की हिम्मत इसी गांव के बाशिंदे करते हैं। यह उनकी मजबूरी भी है। शायद इसीलिए इस गांव के लोग आजादी के इतने सालों बाद भी पीड़ा के साथ कहते हैं हमारा गांव आधुनिक भारत के गांवों की सूची में नहीं है।  यह पीड़ा है नोहर विधानसभा क्षेत्र के गांव देवासर के ग्रामीणों की। तहसील मुख्यालय से 60 किलोमीटर और पंचायत समिति क्षेत्र के आखिरी छोर पर बसे इस गांव को जाने वाले रास्ते कच्चे हैं। धोरों से आच्छादित। सड़क उनके लिए सपना है। देवासर जाने के लिए वाहन चालक भी लाख मिन्नतें करने पर तैयार नहीं होते।  गांव के चारों ओर कच्चा रास्ता होने के कारण वाहन धोरों में धंस जाते हैं। अचानक कोई बीमार हो जाए तो उसे अस्पताल तक नहीं पहुंचाया जा सकता।

पिछड़ता गया गांव

सड़क सुविधा से वंचित होना गांव के लिये अभिशाप साबित हो रहा है। करीब पांच हजार की आबादी वाले गांव में पिछले साठ वर्षोंं में मात्र छह व्यक्ति ही सरकारी नौकरी में है। इनमें से चार की उम्र चालीस पार है जबकि युवाओं में सिर्फ दो हंै। सड़क सुविधा नहीं होने से युवा उच्च शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। आवागमन के साधन नहीं होने से वे आगे की पढ़ाई के लिए गांव से बाहर जा ही नहीं पाते। सरकारी नौकरी के उनके सपने रेतीले धोरों के बीच आबाद गांव में ही दफन हो जाते हैं।

मीठी गोली मिलती है

ऐसा नहीं है कि यह गांव हाल ही में बसा है। लगभग सात सौ साल पुराने इस गांव ने कई जमाने देखे हैं। आजादी के बाद कई सरकारें आई और चली गई। लेकिन गांव को सड़क नसीब नहीं हुई।  चुनाव के समय कोई वोट मांगने आता है तो ग्रामीण सड़क की ही मांग रखते हैं। इस पर उन्हें आश्वासन की मीठी गोली मिलती है। चुनाव के बाद इस गांव में कोई नहीं आता क्योंकि गांव तक जाने के लिए सड़क ही नहीं है।

इनकी पीड़ा जुदा

गांव में सड़क नहीं होने से सभी परेशान हैं। सड़क नहीं होने से  गांव शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ गया है। जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों को अवगत कराने के बाद भी कोई हल नहीं निकला। अगर  ढाणी लेघान व कल्लासर मार्ग पर सड़क बनती है तो नोहर से बीकानेर के लिये सीधा रास्ता बन जायेगा। इससे यहां पर बसों व अन्य साधनों की आवाजाही शुरू हो जाएगी। अब तो हालात यह है कि पल्लू जाने के लिये दुपहिया वाहन होने के बाद भी सौ बार सोचना पड़ता है।

 प्रदीप नायक, सरपंच ग्राम पंचायत

इस बारे में विधायक व सांसद को कई बार अवगत करवाया मगर उनसे हमेशा की तरह आश्वासन ही मिला है। ग्राम पंचायत मुख्यालय तक सड़क नहीं होने से  भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। अब पुन: विधायक के पास जाकर ग्रामीण सड़क की मांग करेंगे।

 मोहर सिंह, बीएड. शिक्षार्थी