शशांक शेखर जोशी

फ्लेबेटोमिस्ट्स (जांच के लिए रक्त के नमूने लेने वाला) और लैब टेक्नीशियन से लेकर हाउसकीपिंग तथा स्वास्थ्य इमरजेंसी कॉल सेंटर के कर्मचारियों तक एलाइड हेल्थकेयर वर्कफोर्स (सम्बद्ध स्वास्थ्य सेवा कार्यबल) हेल्थकेयर सर्विसेज की गाड़ी का एक महत्वपूर्ण पहिया है। कोविड जैसी महामारी ने ऐसे वर्कर्स की महत्ता को बढ़ा दिया है। भारत में आज भी 23 लाख के करीब एलाइड हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स (सम्बद्ध स्वास्थ्य पेशेवरों) की जरूरत है। परंतु हकीकत में इनकी संख्या जरूरत के मुताबिक आधे से भी कम है।

भारत जैसे विशाल देश में विनाशकारी कोविड की दूसरी लहर के दौरान सबसे बड़ी समस्या के रूप में यह देखने को मिला की एलाइड हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स की संख्या जरूरत के मुकाबले वाकई बेहद कम है। हालांकि पूरे देश में जहां प्रशिक्षित चिकित्सकों और नर्सिंग स्टाफ की भी कमी है वहीं एलाइड हेल्थ केयर प्रोफेशनल्स का होना भी नितांत आवश्यक है, अतः इस चुनौती से निपटने के लिए देशभर में एलाइड हेल्थ केयर वर्कफोर्स को बढ़ाने के क्रम में लोगों को गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण देकर तैयार करना जरूरी है। इनके कार्यों में हाउसकीपिंग, खाद्य सेवा और सुरक्षा से लेकर दिन-प्रतिदिन के कार्यों में समन्वय, स्वास्थ्य केंद्र की 24 घंटे हेल्पलाइन सुविधा और डिजिटल डाटा प्रविष्टि जैसे कार्यों का संपादन शामिल है। 2012 में राष्ट्रीय कौशल विकास निगम ने 23 लाख एलाइड हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स की बाजार मांग का अनुमान लगाया था। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार एलाइड हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स की वर्तमान संख्या 7 से 8 लाख तक होने का अनुमान है। हालांकि एलाइड हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स में फ्लेबेटोमिस्ट्स, लैब टेक्नीशियन और घरेलू स्वास्थ्य सहयोगियों की मांग कोरोना काल के समय में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। किंतु ऐसे प्रोफेशनल्स की कमी के चलते इनके वेतन में भी मांग के अनुसार दो से तीन गुना तक की वृद्धि भी हुई।

ऐसा नहीं है कि इस तरह की कमी भारत में केवल निजी चिकित्सा क्षेत्र में ही देखने को मिली। मार्च में भारत सरकार ने एलाइड हेल्थ केयर प्रोफेशनल अधिनियम के लिए राष्ट्रीय आयोग पारित किया। पहली बार सरकार ने देखभाल प्रदान करने में 53 तरह की विशिष्ट गैर चिकित्सा व्यवसाओं की भूमिका को परिभाषित और विनियमित किया। सरकार ने इस तरह के एलाइड हेल्थ प्रोफेशनल की वर्कफोर्स को मजबूत करने के लिए कम से कम 2 वर्षों में 2000 घंटे का प्रशिक्षण अनिवार्य किया है। यह अधिनियम एलाइड हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स की भूमिका को वैध बनाने के क्रम में एक महत्वपूर्ण कदम है। वास्तव में जमीनी स्तर पर इसका लाभ मिलने में अभी कुछ समय और लगेगा। हालांकि सरकार ने अभी तक इसके लिए किसी भी तरह के आयोग का गठन नहीं किया है, जो इस गैर चिकित्सा वर्कफोर्स की गुणवत्ता को नियंत्रित कर सके।

चिकित्सा क्षेत्र में फ्लेबेटोमिस्ट्स का काम बहुत महत्वपूर्ण है और कोविड काल के दौरान संभवतः सबसे अधिक मांग वाला भी, किंतु इस नए अधिनियम में इसे मान्यता प्राप्त नहीं हुई है। इसी तरह मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा सहयोगिनी) जिन्हें समुदाय के भीतर स्वास्थ्य सेवा को प्रमोट करने के तौर पर प्रशिक्षित किया जाता है, तक को अधिनियम में मान्यता नहीं दी गई है। ऐसा इसलिए है क्योंकि स्वास्थ्य मंत्रालय ने उन नौकरियों को विनियमित करने पर विचार नहीं किया जिनके लिए लोगों ने 2 साल से कम समय का प्रशिक्षण लिया हो। वास्तव में सरकार यह मानती है कि कई राज्यों में कम प्रशिक्षित अथवा अप्रशिक्षित वर्कफोर्स अवसरवादियों की वजह से टीकाकरण जैसी जरूरी पहल में स्वास्थ्य कर्मियों के रूप में अग्रिम पंक्ति तक अपनी पहुंच बना सकती है। इसके बजाय ऐसी भूमिकाओं की मांग को पूरा करने की जिम्मेदारी हेल्थकेयर सेक्टर स्किल काउंसिल (HSSC) पर आ गई है, जो कौशल विकास मंत्रालय के अंतर्गत आती है।

इस तरह के प्रोफेशनल्स की बढ़ती हुई मांग और उनकी उपलब्धता के विषय पर एलाइड हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स को तैयार करने वाले प्रशिक्षकों, नीति निर्माताओं, डॉक्टरों, नर्सों और अस्पताल प्रबंधकों सहित कई विशेषज्ञों से जब जानकारी ली गई तब वे सभी इस बात से सहमत थे कि भारत में डॉक्टरों और नर्सों की कमी एक ऐसी समस्या है जो दशकों से बनी है और इसे हल करने में अभी दशकों लगेंगे। लेकिन एलाइड हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स की कमी एक ऐसी समस्या है जिसे तेजी से हल किया जा सकता है। अगर इसका जल्दी ही कोई हल निकाल लिया जाए तो भारत जैसे विशाल देश में कोविड टीकाकरण प्रयासों को तेजी से मुकम्मल करने और वायरस कि अपरिहार्य अगली लहर के लिए पहले से तैयार रहने जैसी जरूरतों को पूरा किया जा सकता है। वैसे भी जो प्रोफेशनल्स अभी उपलब्ध हैं वे गुणवत्तापूर्ण तरीके से प्रशिक्षित नहीं हैं अतः भारत के हेल्थकेयर सेक्टर में मरीजों की देखभाल में चुनौती बनी रहती है। इस समस्या का समाधान करने के लिए आदर्श उम्मीदवारों का चयन कर उन्हें पुनः प्रशिक्षित कर आने वाले जोखिम को कम किया जा सकता है। उदाहरण के लिए क्षेत्रीय भाषा में वीडियो और अन्य प्रशिक्षण विधियों के संयोजन के माध्यम से अलाइड हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स को उनकी भूमिकाओं के लिए प्रशिक्षित किया जाए तथा प्रत्येक भूमिका निभाने वाले व्यक्ति की सर्विसेज अथवा उसके ऊपर आने वाले कार्य के भार को कम भी किया जाए ताकि एलाइड हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स अधिक से अधिक दक्षता के साथ मरीजों की सेवा में काम आ सके।

दिल्ली जहाँ भारत के महानगरों में सबसे अधिक कोरोना मामलों की वृद्धि देखी गई वहां स्वास्थ्य कार्यकर्ता एक कीमती एसेट बन गए थे। उजाला सिग्नस श्रृंखला वाली अस्पताल के संस्थापक निदेशक शुचिन बजाज ने बताया कि उत्तरी दिल्ली में अप्रैल के अंतिम सप्ताह में उनके द्वारा हजार बिस्तरों वाला एक अस्थाई अस्पताल स्थापित किया गया। इस सुविधा को चलाने के लिए 500 लोगों को काम पर रखा गया था उनमें से आधे एलाइड हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स थे। बजाज ने कहा कि डॉक्टरों और नर्सों ने मांग के परिणाम स्वरूप अपने सामान्य वेतन को दोगुना कर दिया था। जहां नर्सों को लगभग 80 हजार रुपये प्रति माह तक का वेतन दिया जा रहा था, वहीं एलाइड हेल्थ केयर प्रोफेशनल का वेतन भी लगभग 2 गुना हो चुका था। हालांकि हजार बिस्तरों वाले अस्पताल को चलाने के लिए अधिक तकनीशियनों की आवश्यकता नहीं थी इसलिए एलाइड हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स का वेतन 25000 तक बढ़ गया। फिर भी कोरोना जैसी महामारी में यह एक बड़ा कदम था। जैसे-जैसे मामले बढ़ते गए वैसे-वैसे ही एलाइड हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स और अन्य हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स की मांग में वृद्धि भी होती रही। यह वृद्धि दैनिक आधार पर पाई गई। जैसे-जैसे मरीज बढ़ते गए वैसे-वैसे ही हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स द्वारा बढ़ते हुए वेतन की मांग भी की गई। यहां तक कहा जाने लगा कि अगर आप उनका वेतन नहीं बढ़ाते हैं तो वे अपना काम नहीं करेंगे। नए लोगों को काम पर रखना और नए तरीके से उन्हें प्रशिक्षण देना अपेक्षाकृत बहुत कठिन है। बजाज ने कहा कि उनके पास में इस तरह के हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स की मांगों को मानने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था। इसलिए कॉविड केयर में आने वाले जोखिमों को कम करने के लिए उन्होंने बढ़े हुए वेतन का भुगतान करना स्वीकार किया।

कमोबेश देश की हर बड़ी अस्पताल के प्रबंधन के सामने यह समस्या थी कि इस कोविड काल में एलाइड हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स को ढूंढने में समय लगाया जाए तथा उन्हें प्रशिक्षण देने में खर्च बढ़ाया जाए। क्योंकि इस काल में देश में उपलब्ध अधिकांश डॉक्टर और नर्स इस संकट से लड़ने के लिए पहले से ही तैयार थे। देशभर में फैली हर छोटी-बड़ी लैब्स को भी इस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा। उदाहरण के लिए डॉक्टर लाल पैथ लैब और एसआरएल डायग्नोस्टिक्स जैसी बड़ी राष्ट्रीय पैथोलॉजी लैब ने घर-घर से नमूनों का संग्रहण करने के लिए ₹200 प्रति संग्रहण तक अतिरिक्त भुगतान भी किया, क्योंकि देश में कोविड काल के दौरान परीक्षणों की मांग चरम पर थी। स्वाभाविक रूप से कुशल फ्लेबेटोमिस्ट्स कि देश में आज भी कमी है।

एक बड़ी लैब के संचालक ने बताया कि कोरोना की तीसरी लहर के लिए प्रशिक्षित एवं गुणवत्तापूर्ण एलाइड हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स की जरूरत कहीं अधिक बढ़ गई है अब ऐसे एलाइड हेल्थ केयर प्रोफेशनल की जरूरत है जो टीकाकरण, आपातकालीन चिकित्सा तकनीशियन और फ्लेबेटोमिस्ट्स का काम एक साथ कर सकें। भारत में एलाइड हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स की प्रतिभा के पूल को बढ़ाने और उन्हें कई अधिक भूमिकाओं को निभाने के लिए तैयार रहने जैसा प्रशिक्षण दिया जाना बहुत जरूरी है। आदर्श रूप में ऐसे लोगों की जरूरत है जो टीकाकरण, नमूने एकत्र करना, प्रयोगशाला में काम करना, एक्स-रे ले लेना, डाटा संग्रहण करना और मांग के आधार पर कॉल सेंटर में बैठकर कॉल ले लेना जैसे काम करने में निपुण हो।

वर्तमान में भारतीय कानून इस तरह के दृष्टिकोण के लिए जरूर एक बाधा बना हुआ है। भारतीय नर्सिंग परिषद अधिनियम 1947 के तहत निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार केवल नर्सों और डॉक्टरों को इंजेक्शन लगाने की अनुमति है। हालांकि कई प्रयोगशाला संस्थापक अब भी यह मानते हैं कि इन नियमों में ढील देने की आवश्यकता है। कम से कम जब भारत जैसा बड़ा देश महामारी से लड़ रहा है। फ्लेबेटोमिस्ट्स जब इंजेक्शन के द्वारा आप की शिराओं से सैंपल के रूप में रक्त निकाल सकते हैं तो उन्हें इंजेक्शन लगाने की इजाजत क्यों नहीं। इस दौरान देश को एक ऐसी सेना तैयार करनी चाहिए जो महामारी तथा उसके विभिन्न चरणों के दौरान अलग-अलग तरह की भूमिकाएं निभा सके। आदर्श समाधान लोगों को कुशल बनाना है ताकि वे महामारी के दौरान और बाद में रोजगार योग्य भी बने रहें।

कुशल एलाइड हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स की इस कमी को दूर करने के लिए कई संस्थान काम कर रहे हैं। हेल्थकेयर एडटेक स्टार्टअप विरोहन जिसने मई में अपने एलाइड हेल्थकेयर प्रोफेशनल प्रशिक्षण कार्यक्रम का विस्तार करने के लिए बाजार से 30 लाख डॉलर जुटाए। 2015 में अपनी स्थापना के बाद से सिर्फ पचपन सौ से अधिक एलाइड हेल्थ केयर प्रोफेशनल को प्रशिक्षित करने के बाद अब इसका लक्ष्य 2025 तक 10 लाख से अधिक छात्रों को प्रशिक्षित कर एलाइड हेल्थ केयर प्रोफेशनल बनाना है। स्टार्टअप के सह-संस्थापक नलिन सलूजा और कुणाल डुडेजा ने बताया कि एलाइड हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स का भारतीय हेल्थकेयर उद्योग में 40 प्रतिशत तक हिस्सा होना चाहिए। अपोलो हेल्थकेयर जैसी बड़ी कम्पनी भी इस तरह के लोगों को प्रशिक्षित करने में जुट गई है और उनका इरादा उनमें से कम से कम एक तिहाई लोगों को अपनी अस्पताल, फार्मेसी और लैब में रोजगार देना है।

इस तरह के प्रशिक्षण हेतु पाठ्यक्रम विकसित करना मुश्किल काम नहीं है, मुश्किल है छात्रों को इन पाठ्यक्रमों में दाखिला दिलवाना। एलाइड हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स की भूमिका के बारे में कम जागरूकता ही सबसे बड़ी बाधा है। आज भी स्वास्थ्य पेशवरों के तौर पर डॉक्टर और नर्स ही जाने जाते हैं जबकि क्लेरिकल काम से लेकर हाउसकीपिंग, फार्मासिस्ट और अस्पताल में काम करने वाले सभी अन्य प्रकार के कर्मचारी भी इसी श्रेणी में आते हैं।

बड़ी अस्पतालों ने इस महामारी के दौरान हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स की बढ़ती मांग को देखते हुए अधिक वेतन देने का जोखिम अवश्य उठाया किंतु उसका भार आम आदमी की जेब पर ही पड़ा। हमारे देश में जनसंख्या घनत्व, लोगों की खर्च करने की शक्ति और नियोक्ताओं की उपस्थिति यह सब कुछ असंतुलित है। अतः ऐसे प्रोफेशनल की उपलब्धता को बनाए रखना थोड़ा सा मुश्किल भी है। धीरे-धीरे भारत जैसा देश कोरोना जैसी महामारी से अनुभव लेने के बाद एलाइड हेल्थ केयर प्रोफेशनल वर्कफोर्स को बढ़ावा देने की महती जरूरत के प्रति सजग अवश्य हो रहा है किंतु हमारा मिशन वहां तक पहुंचना होगा जहां तक आम आदमी को स्वास्थ्य सेवाओं के लिए इनकी जरूरत है।