कोटा.।  भारतीय न्यायालयों में न्यायाधीशों  की संख्या में भारी कमी है। इससे  लंबित मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसके लिए विशेष उपाय किए जाएं तो लोगों को राहत मिल सकती है। इसमें अदालतों को दो शिफ्ट में चलाया जा सकता है। इसके साथ ही सेवानिवृत्त होने वाले न्यायाधीशों को दो साल तक और सेवा में रखा जा सकता है। भारतीय न्याय को तेज और सर्व सुलभ बनाने का यह तरीका सुझाया अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश दलवीर सिंह भण्डारी ने। वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय से डीलिट की मानद उपाधि लेने के बाद वह संवाददाताओं से बातचीत कर रहे थे।जस्टिस भंडारी ने कहा कि सेवानिवृत्ति तक 35 से 40 साल सेवाएं देने वाले अनुभवी व प्रतिष्ठित न्यायाधीश, नए न्यायाधीशों की अपेक्षा कम समय में मुकदमों का फैसला कर सकते हैं। अदालतों को दो शिफ्ट में चलाने के लिए वकीलों का भी सहयोग जरूरी है। फौजदारी मामलों  में सरकारी वकील जरुरी है, लेकिन इनकी संख्या काफी कम है, कोर्ट रूम नहीं है, इससे भी लंबित मुकदमों की संख्या बढ़ती है।

टकराव से नहीं बिगड़ेगी बात 

भंडारी ने कहा कि देश में 70 हजार जजों की जरूरत है, जबकि बीस हजार ही काम कर रहे हैं। ऐसे में सुविधाएं बढ़ाने के बजाय न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका आपस में टकराते रहे तो बात बिगड़ेगी। लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को मिलकर काम करना होगा, ताकि न्याय व्यवस्था ज्यादा चुस्त-दुरुस्त बन सके।

आपसी सहमति निपटाएं मुकदमे 
भण्डारी ने कहा कि अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट में पूरे साल में सिर्फ 80 मामले आते हैं। जबकि भारत में एक ही दिन में इतने मामलों का निस्तारण हो जाता है। न्यायालयों पर बेवजह के मुकदमों का भी बड़ा बोझ है। इसे खत्म करने के लिए छोटे-छोटे मुकदमे निचले स्तर पर ही आपसी सहमति से निपटाए जाने चाहिए। मिडियसन में निपटने वाले मामलों में समस्या का स्थाई समाधान हो जाता है। दिल्ली, महाराष्ट्र में मिडियसन से हजारों मुकदमों का निपटारा हो रहा है। इसके साथ ही लोक अदालतें नियमित होनी चाहिए। जहां जिस तरह के मुदकमें हो वहां उसी के आधार पर विशेष लोक अदालतें लगे।