भरतपुर। यहां महिला पुलिस थाने पर महिला सुरक्षा एवं सलाह केन्द्र बंद होने से पारिवारिक मामलों का आपसी बातचीत से समाधान नहीं हो रहा। थाने का स्टाफ समझाइश का प्रयास करता है, लेकिन विभिन्न प्रकरण व काम के दबाव के चलते वह ज्यादा समय नहीं दे पाते और नतीजा थाने में एक और मुकदमे के रूप में सामने आता है।

महिला बाल विकास विभाग की ओर से सलाह केन्द्र शुरू करने की विज्ञप्ति जारी किए काफी समय गुजर गया,  स्थानीय स्तर पर गठित जिला महिला सहायता समिति की ओर से स्वयंसेवी संस्थाओं के पैनल के नाम तय नहीं होने से मामला अधर में है।

दो दफा लौट चुकी है फाइल

महिला सुरक्षा एवं सलाह केन्द्र पर निर्णय जिला प्रमुख की अध्यक्षता में गठित जिला महिला सहायता समिति का निर्णय लेना है। सूत्रों के अनुसार समिति की ओर से सलाह केन्द्र के लिए दो बार एक स्वयंसेवी संस्था का नाम महिला एवं बाल विकास विभाग को भेजा गया था, लेकिन उन्होंने एक ही संस्था का नाम होने पर उसे खारिज कर दिया गया। विभाग ने पैनल का चुनाव कर फाइल भेजने के निर्देश दिए है, लेकिन उसके बाद अभी तक पैनल तय नहीं हो सका है। उधर, विभाग की ओर से मामले में पुलिस प्रशासन से भी मामले में जिले में कार्यरत संस्थाओं के नाम मांगे थे, जिस पर उन्होंने भी रिपोर्ट भेजी है।

नहीं मिल रही काउंसलर की मदद

महिला सलाह केन्द्र नहीं होने से यहां पुलिस थाने पर महिला उत्पीडऩ मामलों में काउंसलर की मदद नहीं मिल पा रही है। थाने पर कई ऐसे पारिवारिक मामले में हैं, जो काउंसलर की समझाइश से निपटाए जा सकते हैं। काउंसलर नहीं होने से थाने का स्टॉफ इन मामलों में ज्यादा ध्यान नहीं दे पाता है। नतीजन दोनों पक्ष अपनी-अपनी बातों पर अड़े रहते हैं और आखिर में पुलिस को मुकदमा दर्ज करना पड़ता है।

मिलता है 3.50 लाख बजट

महिला सुरक्षा एवं सलाह केन्द्र चलाने के लिए सरकार द्वारा 3.50 लाख रुपए का बजट मिलता है। संबंधित स्वयं सेवी संगठन (एनजीओ) थाने पर दो काउंसलर नियुक्त करती है, जो महिला उत्पीडऩ मामलों में समझाइश और पीडि़त महिला की सहायता का काम करती है। जिले में इस वर्ष महिला उत्पीडऩ संबंधी अप्रेल तक कुल 328 मामले दर्ज हुए हैं, जिसमें गत वर्ष की अपेक्षा 3.8 की कमी आई है। वर्ष 2015 में पहले चार माह में कुल 341 और वर्ष 14 में 405 मामले सामने आए थे।

ओमप्रकाश थाना प्रभारी महिला पुलिस थाना ने बताया कि महिला सुरक्षा एवं सलाह केन्द्र नहीं होने से थाने का स्टॉफ ज्यादा समय नहीं दे पाता है। हालांकि, ज्यादातर मामलों में आपसी समझाइश से राजीनामा कराने का प्रयास रहता है। काउंसलर होने से ज्यादा मदद मिल सकती है।