नेशनल हुक
पहले हरियाणा, फिर महाराष्ट्र व उप चुनावों में हार के बाद इंडिया गठबंधन में नेतृत्त्व को लेकर नई तकरार आरम्भ हो गई है। सहयोगी दल कांग्रेस को लेकर कई सवाल खड़े करने लग गए हैं। इस विवाद को ममता बनर्जी के बयान ने और हवा दे दी। ममता ने सार्वजनिक रूप से कह दिया कि यदि उनको गठबंधन का नेतृत्त्व दिया जाता है तो वे इसके लिए तैयार है।
ममता के इस बयान के बाद तकरार को हवा मिल गई। पहले उनका समर्थन सपा व राजद ने किया। मगर बाद में उन्होंने सुर बदला और कहा कि अभी ये सवाल वाजिब ही नहीं है। नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला ने तकरार को टालने के लिए कहा कि अभी इंडिया गठबंधन की बैठक ही लोकसभा चुनाव के बाद नहीं हुई, तब नेतृत्त्व की बात ही उचित नहीं। कांग्रेस ने संयमित बयान देते हुए कहा कि अति महत्वकांक्षा नुकसान पहुंचाती है।
कांग्रेस व ममता के रिश्ते अच्छे नहीं है। ये तो लोकसभा चुनाव के समय ही स्पष्ट हो गया था। कांग्रेस ने बंगाल में सीट समझौते के खूब प्रयास किये पर ममता ने उनको तव्वजो नहीं दी। 2 सीट तक की बात आ गई मगर ममता तैयार नहीं हुई। अभी संसद में अडाणी के मुद्दे पर भी टीएमसी ने कांग्रेस का साथ नहीं दिया। जबकि राज्यसभा सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव में वो साथ है।
अंदरखाने ममता ने गठबंधन का नेतृत्त्व लेने के लिए गोलबंदी भी आरम्भ कर दी है। उसी के परिणाम स्वरूप राजद सुप्रीमो जो कल तक कांग्रेस के पक्ष में बोलते रहे हैं उन्होंने भी कह दिया कि ममता को नेतृत्त्व दिया जाये, तो इसमें कोई बुराई नहीं है। लालू के इस बयान के बाद इंडिया गठबंधन के दूसरे दलों में भी हलचल शुरू हो गई है। टीएमसी के नेता भी इसमें सक्रिय हैं और अन्य विपक्षी दलों से सम्पर्क कर रहे हैं। ममता और अखिलेश की नजदीकियों है, ये सभी जानते हैं। सपा के अखिलेश यादव इस मसले पर अभी चुप हैं, केवल रामगोपाल यादव बोले। अखिलेश की चुप्पी के कई अर्थ है। ठीक इसी तरह शिव सेना उद्धव भी काफी हद तक चुप रहकर भी ममता की तरफ झुकाव दिखा रही है। एनसीपी शरद पंवार की सुप्रिया सुले ने तो सार्वजनिक रूप से ममता के पक्ष में बयान दे दिया है।
इससे ये तो पता चलता ही है कि विपक्ष के गठबंधन का नेतृत्त्व ममता बनर्जी को देने के लिए गोलबंदी हो रही है। जबकि द्रमुक, जेएमएम अभी भी मजबूती के साथ कांग्रेस के पक्ष में है। कांग्रेस भी इस गोलबंदी से अंजान नहीं है, वो भी अपनी रणनीति पर काम कर रही है। ममता के नेतृत्व को कांग्रेस आसानी से स्वीकार तो नहीं करेगी। क्यूंकि बंगाल में अपमानित होने का घूंट कांग्रेस पी चुकी है। तभी तो ममता के कट्टर विरोधी अधीर रंजन चौधरी को कांग्रेस नेतृत्त्व वापस निकट लाया है।
कुल मिलाकर इंडिया गठबंधन पर हरियाणा व महाराष्ट्र की हार का बड़ा असर पड़ा है और नेतृत्त्व को लेकर नई तकरार शुरू हुई है। ममता इसकी अगुवाई कर रही है, जिसे कांग्रेस के लिए स्वीकारना मुश्किल है। गठबंधन की रार आने वाले समय में बढ़ेगी, ये तो तय है।
— मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘