– बुद्ध पूर्णिमा पर आयोजित देशज काव्य संध्या में वागड़ अंचल के लोक कवियों ने कविताओं में प्रस्तुत की देसी मिट्टी की महक

लाॅयन न्यूज, नेटवर्क। किसी भी देश और समाज का सम्पूर्ण विकास केवल भौतिक उन्नति पर ही आधारित नहीं होता है। किसी भी समाज, देश, परिवेश का सच्चा खाका और सर्वतोमुखी विकास उस क्षे़त्र की भाषा और बोली पर ही निर्भर होता है। भाषा एवं बोलियां केवल अभिव्यक्ति का माध्यम भर नहीं हैं अपितु इनमें सदियों के अनुभव, संस्कार, अपनी परम्पराएं, अपने लोक विश्वास का ऐसा वृहद् खजाना होता है जो न केवल आज भी प्रासंगिक है अपितु आने वाली पीढ़ियों को भी सच्ची राह दिखाने में सक्षम है। उक्त विचार केन्द्रीय साहित्य अकादमी नई दिल्ली में राजस्थानी भाषा के संयोजक मधु आचार्य ने बांसवाड़ा जिला मुख्यालय पर वागड़ साहित्य एवं लोक संस्थान द्वारा आयोजित देशज काव्य संध्या के अध्यक्षीय उद्बोधन में व्यक्त किये।
कार्यक्रम के पाटवी आचार्य ने ने जोर देकर आह्वान किया कि आज आवश्यकता केवल इस बात की है कि इन जनपदीय और देशी बोलियों में छिपे खजाने को न केवल संरक्षित किया जाए बल्कि इसे प्रासंगिक बनाते हुए भविष्य के लिए भी मार्गदर्शक रूप में तैयार किया जाए। आज राज्य के भाषाई और बोलियों के स्वरूप पर बोलते हुए आचार्य ने कहा कि वागडी बोली में ज्ञान, अनुभव और संस्कृति का अकूल भण्डार है। आवश्यता है केवल वागड़ी के लोक में व्याप्त अनुभवों, अभिव्यक्तियों और संस्कारों को सहेज कर लम्बे समय तक जीवित रखने के लिए इसके समुचित सरंक्षण की, लेखन की और अन्य साहित्यिक विधाओं में जीवित रखने और इसके अधिकाधिक प्रसार की।

वागड़ी और मेवाड़ी कवियों ने बिखेरी छटा लोक रंग की

देशज काव्य संध्या के आरम्भ में वागड़ साहित्य एवं लोक संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष डाॅ महिपाल सिंह राव ने कोरोना काल में आॅनलाईन काव्य गोष्ठी, वह भी देशज बोलियों में, के विषय का प्रतिपादन किया और संस्थान के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला और इस बात पर बल दिया कि देशी बोलियों में रचे बसे अनुभवों को विश्व पटल पर लाकर ही किसी भी भाषा और बोली को लम्बे समय तक संजो सकते हैं।
गोष्ठी के आरम्भ में कवि उत्सव जैन ने ‘‘होना नूं संकल वाला देश, हीरा मोती वेसवां वारू देश में आजे हूं थई ग्यू’’ रचना वर्तमान कोरोना संत्रास में देश की विषम स्थिति को उजागर किया। वागडी गीतकार महेश ‘‘देव’’ ने ‘‘मनख तारी काया हम्बार, माटी गरी जावा नी है, आणा जनम णा करी कौवारा, वानी रेवानि है’’ द्वारा इस क्षणभंगुर जीवन में कुछ सार्थक कर्म किये जाने का सन्देश दिया।
श्रीमति गोविन्द कुंवर झाला ने मेवाड़ी में सबसे पहले डूंगरपुर नगर की छटा पर मुक्तक प्रस्तुत करते हुए ‘‘थूं ई राणी, नी मूं ई राणी, कुण भरे परेंडे पाणी’’ द्वारा समसामयिक पर्यावरण चेतना और हमारे दायित्वों का बोध कराया। महेश पांचाल ‘माही’ ने ‘‘वतन अमारू, पवित्तर है धरती, आने नमन अमारू, आने खोरा ने मंय हैं उपवन अमारूं’’ द्वारा अपने देश के सर्व समृद्ध स्वरूप और उसके प्रति देश प्रेम और कृतज्ञ भाव रखने का आह्वान किया। छत्रपाल ‘शिवाजी’ ने वागड़ी में मनहरण घनाक्षरी छंद में ‘‘ हुंता हो तं जागी जो रे, मैदान में डाकी जो रे, काम माथे लागी, नाम थाई जाइएगा ‘‘ द्वारा प्रखर पुरूषार्थ द्वारा अपने को अमर बनाए रखने का सन्देश दिया। श्रीमति दीपिका दीक्षित ने ‘‘दीकरी जगत मय तारो मान है, भाई! माय दीकरी कुदरत नो वरदान है, उज्वारू नूं बीजू नाम है दीकरी’’ द्वारा समाज और देश में स्त्री, विशेष कर बेटी के मान और महत्ता का गुणगान किया। डाॅ. संजय आमेटा ‘सागर’ ने ‘‘मारू पियोर घणू वालू, मने लागे रूपारू’’ द्वारा स्त्री के पीहर और अपनी अतीत की मधुर स्मृतियों को सुन्दर बिम्बों में पेश किया। गीतकार एवं रंगकर्मी सतीश आचार्य ने ‘‘धरा नूं धाम केम खुटयू, हरा केम हुकी-हुकी है’’ द्वारा युगीन समााजिक, भौगोलिक संत्रास की ओर ध्यान आकर्षिक किया और ‘‘जार तक जल, जमी, जंगल, जनावर, जारवोगा’’ द्वारा आज की सबसे बड़ी समस्याओं के सबसे बड़े हल, जल जमीन और जंगल के सरंक्षण को सिद्ध किया। गोविन्द गुरू जनजातीय विश्वविद्यालय के कुलगीतकार और प्रयोगधर्मी कवि हरिश आचार्य ने ‘‘अभाव मांय अमें भाव भरनारा, अमने गावां नूं मन थाय’’ द्वारा सृजनधर्मियों की शक्तिमता और विसंगत समाज में एक प्रेरक रूप बनने को प्रस्तुत किया वहीं गीत ‘‘कुण है समंदर, डाबरकू है कुण’’ और वागड़ी में गजल विधा में ‘‘अमें वणजारा भाव नगर ना’’ द्वारा बोली के अनेक काव्य रूपों से भाव पक्ष की समृद्धि को रेखांकित किया।
काव्य गोष्ठी का संचालन सतीश आचार्य ने किया और कार्यक्रम संयोजन और आभार ज्ञापन आयोजन सचिव डाॅ मनोज पंड्या ने किया।