हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा
पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट द्वारा जगह-जगह पेपर-लीक प्रकरण पर बोलने की वजह से सरकार दबाव में है। हालात यह है कि पेपर-लीक प्रकरण में जिस तरह से सचिन पायलट ने सरकार को घेरा है, उस तरह से प्रमुख विपक्षी दल भाजपा भी घेरने में असफल रही है। परिणाम-स्वरूप सरकार ने  ‘डैमेज-कंट्रोलÓ शुरू करते हुए कोचिंग पर नकेल कसने की तैयारी कर ली है।  अगर सब कुछ सही रहा और कोचिंग-माफियाओं के दबाव के आगे सरकार नहीं झुकी तो जिस तरह का मसौदा तैयार हुआ है, वह कारगर साबित होगा। हालांकि, देखने सुनने में यह अजीब लगता है कि कोई विद्यार्थी अपनी मर्जी से कोचिंग ले और जब मन नहीं हो तो छोड़ दे। इतना ही नहीं। उसने जो फीस जमा करवाई है, उसकी वापसी का अधिकार भी सरकार दे। लेकिन, जो ढर्रा है, उसमें इस प्रावधान को लागू किया गया है। इससे पेपर-लीक करने वालों का तो पता नहीं, लेकिन कोचिंग-संस्थाएं प्रभावित होंगी।
जिस देश में शिक्षा का अधिकार हो, वहां कोचिंग संस्थाओं में मोटी फीस देकर पढऩे की मजबूरी बहस का विषय हो सकता है। लेकिन शिक्षा का बाजारीकरण हो गया है और यहां भी क्वालिटी, गारंटी, सक्सैस जैसे शब्द प्रचलित हो चले हैं तो फिर इस बात से किसी को क्या गुरेज हो सकता है कि जैसे किसी प्रा्रइवेट अस्पताल में इलाज के मनमांगे पैसे मिलते हों, वैसे ही शिक्षण संस्थाएं भी अपनी ‘सेवाओंÓ के बदले में मनमांगी राशि वसूल करे। फिर यह भी तो है कि सरकारों ने तो कभी नहीं कहा कि बच्चों को कोचिंग भेजो, बल्कि सरकारों को तो सलीके से यह भी कहते हुए नहीं सुना होगा कि बच्चों को शिक्षित करो। अच्छी शिक्षा दिलाओ। अच्छे कैरियर के लिए प्रोत्साहित करो।
यह तो अभिभावकों ने रास्ते निकाले। किसी जरूरतमंद गुरुजन को स्कूल समय के बाद के समय में ट्यूशन पर रखा होगा। द्रोणाचार्य का आदि उदाहरण मिलता है, जो सिर्फ कुरुवंश के बालकों को ही शिक्षा-दीक्षा देने के लिए ही हायर किया गया था। राम-लक्ष्मण और यहां तक कि कृष्ण को भी हम गुरु के आश्रम में पढ़ते हुए जाते देखते हैं। गुरु को हायर करने की इस कुरु-वंश की व्यवस्था का बड़ा रूप घरों में जाकर शिक्षकों का ट्यूशन पढ़ाना। फिर शिक्षकों द्वारा अपने घरों में ही समूहों को पढ़ाना और इस तरह कोचिंग सेंटर खुलना और फिर इन्हीं कोचिंग सेंटर्स से निकले लोगों का नये कोचिंग सेंटर खोल लेना और इन कोचिंग सेंटर्स की ब्रांडिंग के लिए पहुंचे हुओं से संपर्क करके परीक्षा परिणाम सुधारने कर अपने विज्ञापन करना सहित बहुत सारी बातें हम सभी जानते हैं।
पेपर-लीक होना भी नई बात नहीं है। पेपर-लीक का पुराना स्वरूप ‘महत्वपूर्ण प्रश्नÓ में है, जिसके लिए परीक्षा के अंतिम दिनों में परीक्षार्थियों को अनुनय-विनय करते देखा जाता था। कहने का अर्थ यह है कि यह सब आज की बात नहीं है, लेकिन आज जो हो रहा है-वह इसका संगठित गिरोह के रूप में सक्रिय होना है।
अगर इसे संगठित गिरोह कहा जाए तो इस संगठित गिरोह में सिर्फ कोचिंग के संचालन तो होने से रहे, सरकार के नुमाइंदे और उच्च अधिकारी भी होने हैं। सवाल यह है कि उन पर नकेल कसने के लिए क्या किया जा रहा है। क्या सरकार उन लोगों की भी जवाबदेही तय करेगी, जो इस प्रक्रिया में शामिल थे।  अगर ऐसा नहीं हो सकता है तो फिर यह वैसा ही होगा सरकार ने ‘चोर की मां को मारनेÓ वाली उक्ति से सबक नहीं लिया है।
कोचिंग सहित ऐसे सभी लोग जो इस व्यापार में हैं, उन्हें क्लीन-चिट नहीं दी जा सकती, लेकिन वे इसे ‘प्रोफेशनलीÓ कर रहे हैं, इस बात से भी इंकार नहीं होना चाहिए। सरकार को यह सोचना जरूरी है कि इस ‘प्राफेशनलीÓ करने के तर्क के पीछे जो भ्रष्टाचार पनप रहा है, उसे रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं।  

‘लॉयन एक्सप्रेसÓ के संपादक हरीश बी.शर्मा के नियमित कॉलम ‘हस्तक्षेपÓ के संबंध में आपके सुझाव आमंत्रित हैं। आप 9672912603 नंबर पर वाट्स अप कर सकते हैं।