लालू यादव पर कांग्रेस की दबाव की राजनीति शुरू


हस्तक्षेप
– हरीश बी. शर्मा
कांग्रेस ने तय कर लिया है कि बिहार में वह लालू प्रसाद यादव के बगैर चुनाव लड़ेगी। यह भी साफ है कि पश्चिम बंगाल में भी कांग्रेस अपना झंडा अलग उठाकर चलेगी। हालांकि, पश्चिम बंगाल का फैसला तो उसी वक्त हो गया था कि जब ममता बनर्जी ने इंडिया ब्लॉक का प्रतिनिधित्व करने की बात सरकाई थी, लेकिन सोमवार को बिहार में लालू प्रसाद यादव की इफ्तार पार्टी से जिस तरह कांग्रेस ने दूरी बनाई, उसके बाद यह साफ हो गया है कि राहुल गांधी यहां भी इंडिया ब्लॉक की धज्जियां बिखेरने का मन बना चुके थे।
दिल्ली में चुनाव परिणाम को बदलने का आरोप अपने सिर पर हंसते हुए लेने वाली कांग्रेस इस बात से बिल्कुल भी अपराध-बोध में नहीं है कि उसने इंडिया ब्लॉक की शर्तों का उल्लंघन किया है। अव्वल तो ऐसा आरोप लगेगा ही नहीं। अगर ऐसा हुआ भी तो सबसे पहले अरविंद केजरीवाल निशाने पर होंगे, जिन्होंने वक्त से काफी पहले ही दिल्ली विधानसभा के लिए प्रत्याशियों की घोषणा करके इंडिया ब्लॉक की शर्तों को धक्का पहुचाया था।
बरहाल, सोमवार को जो कुछ हुआ उससे यह जाहिर है कि बिहार में कांग्रेस कन्हैयाकुमार के कंधों पर बड़ा भार सौंपने की तैयारी में हैं। वहां कन्हैया कुमार ने यात्रा भी शुरू कर दी है और जैसा कि कांग्रेस की इन दिनों नीति है कि युवाओं को आगे लाया जाए। राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में अशोक गहलोत को दरकिनार करते हुए अपेक्षाकृत नया नाम टीकाराम जूली को आगे लाने के पीछे भी यही नीति थी, जो कामयाब भी हैं। इसी तरह बिहार में भी कांग्रेस ने कन्हैया कुमार को आगे रखा है।
कन्हैयाकुमार के लोग ही प्रकारांतर से इन दिनों कांग्रेस को चला रहे हैं। ऐसे में उन्हें पूरा बिहार भी नेतृत्व करने के लिए मिल जाए तो कोई बड़ी बात नहीं है। चुनाव तो कन्हैयाकुमार के नेतृत्त्व में लड़े जा ही सकते हैं, क्योंकि कन्हैया कुमार अच्छे वक्ता हैं और लीडरशिप स्किल से भी भरपूर हैं। अगर कोई चमत्कार हो जाता है तो अच्छी बात है, वरना राजस्थान की तरह नेता प्रतिपक्ष के रूप में नाम को आगे किया जा सकता है। जिसकी मोहर अभी से लगा दी गई है।
लालू यादव की इफ्तार पार्टी में ऐसा नहीं कि कांग्रेस के नेताओं को नहीं बुलाया गया, यह इसलिए कहा जा सकता है कि कांग्रेस की एक विधायक वहां पहुंची थी, लेकिन बाकी के नहीं। हो सकता है कि सभी एकराय थे और महिला विधायक तक यह जानकारी नहीं हो, लेकिन कांग्रेस का नहीं होना लालू प्रसाद यादव के लिए अलार्मिंग हैं। बिहार में दिल्ली जैसे हालात नहीं हैं। अरविंद केजरीवाल से कहीं ज्यादा बुरी स्थिति लालू यादव की है, जिन्हें कांग्रेस से समझौता करना ही होगा और अगर समझौता कर लिया कांग्रेस अपर-हैंड रहेगी और जाहिर है कि लालू यादव इसे स्वीकार नहीं करेंगे।
कांगे्रस की शर्तों को लालू यादव ने मान लिया तो फिर भी पटरी बैठ सकती है, लेकिन ऐसा नहीं होने पर दिल्ली जैसी तस्वीर सामने होगी। देखना यह होगा कि यहां नितीश और भाजपा के बीच का संबंध कितना निभता है। बिहार की राजनीति में अभी बहुत कुछ अस्पष्ट है, जिसे इफ्तार पार्टी के संदर्भ में देखते हुए यही कहा जा सकता है कि लालू यादव आने वाले दिनों में कांग्रेस के दबाव में रहने वाले हैं।
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