हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा
कांग्रेस में शुरू हुई हलचल बीकानेर तक देखने को मिल रही है,लेकिन कांग्रेस में बदलाव की कोशिश करने वालों को यह मानना होगा कि अब कांंग्रेस का सत्ता की रेस में शामिल होने के लिए मजबूत इच्छाशक्ति से काम करना होगा। खासतौर से अवसरवादियों और भगौड़ों से दूर रहने की एक चाक-चौबंद रणनीति बनानी होगी। कांग्रेस को सबसे अधिक खराब करने वाले लोग अवसरवादी ही रहें हैं, जिनकी वजह से कांग्रेस को सत्ता दिलाने वाले कार्यकर्ता सरकार में खुद को उपेक्षित महसूस करते हैं। हालांकि, यह सत्ता का गुण है कि सामान्य कार्यकर्ता भी अगर नेता या जनप्रतिनिधि बन जाता है तो वह सबसे पहले खुद की साधारण अवस्था को छोड़कर खुद को असाधारण साबित करता है, कांग्रेस की नहीं भाजपा में बल्कि क्षेत्रीय राजनीतिक दलों में भी ऐसा हुआ है, लेकिन कांग्रेस ने देश पर लंबे समय तक शासन किया और इस दौरान कार्यकर्ता बार-बार उपेक्षित हुआ। न सिर्फ अवसरवादी नेताओं को इसमें लाभ मिला बल्कि नीचे तक वंशवाद और भाई-भतीजावाद का ऐसा प्रवाह बना कि वह कार्यकर्ता, जिसकी कोई पृष्ठभूमि नहीं है, उसे आगे आने ही नहीं दिया गया।

अगर किसी सामान्य कार्यकर्ता को आगे आने का अवसर मिला तो यह बड़े नेताओं की कूटनीति थी, क्योंकि उन्हें ‘यस-मैनÓ चाहिए थे। आज भी इस तरह अध्यक्ष बने लोगों को मलाल है कि अपने ‘आकाओंÓ के निर्देशों के दबाव में अपनी पसंद की कार्यकारिणी भी नहीं बना पाए। यहां तक कि आम चुनाव तो बहुत बड़ी बात है, वार्ड के चुनावों में भी किसी को टिकट देने जितनी ताकत नहीं रख पाए।
यह तो भला हो संविधान में प्रदत्त समानता के अधिकार का कि चुनाव लडऩे के लिए सभी को अवसर देने के लिए नीति तय की गई वरना अनेक पिछड़े-वर्ग के कार्यकर्ता तो कभी चुनाव जीतने का सपना भी नहीं संजो पाते। नई उभर रही कांग्रेस भी अगर सभी को समान अवसर देने में चूक कर गई तो फिर रेस में पिछड़ जाएगी।

जब तक कांग्रेस अपने प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं को आगे लाने और उन्हें शक्ति-संपन्न बनाने की नीति तय नहीं करेगी, मजबूती संभव नहीं है। स्थानीय इकाइयों को मजबूत करने के लिए एक प्रस्ताव इकाइयों को आर्थिक रूप से मजबूत करने का भी है। कांग्रेस के नेता अजय माकन का कहना है कि इकाइयां आर्थिक रूप से मजबूत होनी चाहिए, लेकिन कांग्रेस के सामने अर्थ का संकट नहीं है। संकट है उपेक्षित पड़े नेताओं में प्राण-वायु संचार करने का। कांग्रेस के बड़े नेताओं को चाहिए कि वे स्थानीय नेताओं से मिले, बात करें और उन्हें सुने। हालांकि, यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, लेकिन इसमें अभी पार्टी के स्थानीय पदाधिकारियों को ही बुलाया जा रहा है। वस्तुत: ये पदाधिकारी ही कांग्रेस की हार के कारण हैं, जिनकी वजह से कांग्रेस लगातार हारती गई और ये अपनी भूमिका का विश्लेषण ही नहीं कर पाए।

सबसे पहले जरूरत इस बात की है कि जिन लोगों के पास पद हैं, उनसे सवाल किया जाए कि कांग्रेस के वोट-बैंक को सुरक्षित रखने में उन्होंने क्या किया। सिर्फ पदों पर काबिज होने की लालसा रखने वालों को जब तक पद-मुक्त करके बेहतर काम करने की टास्क नहीं दी जाएगी और अब तक उपेक्षित लेकिन प्रतिबद्ध रहे कार्यकर्ताओं को आगे आने का मौका नहीं दिया जाएगा, कांग्रेस की हलचल से कोई बड़ा हासिल नहीं होना है।

 

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