चूरू.।  देशभर में चल रहे असहिष्णुता के दौर में मंदिर-मस्जिद भी सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल बन कर देशवासियों को  आपसी भाईचारे का पैगाम दे रहे हैं।ऐसे ही दो धार्मिक स्थल चूरू के वार्ड 28 में स्थित है। एक बाबा मही पीर की दरगाह तो दूसरा बाबा अड़मा नाथ का मंदिर है। दोनों एक ही छत के नीचे बने हुए हैं।दरगाह और बाबा के मंदिर में हिन्दू -मुस्लिम जन समान भाव से आस्था रखते हैं। सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां पीर की इबादत और बाबा की पूजा-अर्चना एक साथ होती है।वर्ष में एक बार होने वाले उर्स में दिन में आस-पास के क्षेत्रों से आने वाले कलाकार कव्वाली के जरिए पीर की महिमा का बखान करते हैं। वहीं जागरण में कलाकार भजनों की प्रस्तुतियां देते हैं। पीर की दरगाह पर मन्नत मांगने वाले भी समय-समय पर गुरुवार को यहां कव्वाली के आयोजन करवाते हैं।

15 वर्ष पहले हुई स्थापना

पीर की मजार और बाबा के स्थान की  देखरेख व इबादत-पूजा केशरदेव आर्य व उनकी पत्नी लक्ष्मीदेवी करते हैं। मजार की स्थापना 15 वर्ष पहले 14 दिसंबर 2001 को की गई थी। मूलत: दिल्ली क्षेत्र निवासी आर्य ने बताया, मही पीर बाबा दिल्ली के निजामुद्दीन ओलिया के शिष्य थे। सैकड़ों वर्ष पहले उनके पूर्वज दिल्ली से झुंझुनूं जिले के दुड़ाना गांव में आकर बस गए थे।वहां मही पीर की मजार स्थापित की जो आज भी मौजूद है। गांव में अड़मा नाथ भी रहते थे। उनके परिवार की दोनों में आस्था थी। बाद में वर्ष2001 में चूरू में मही पीर की मजार स्थापित की गई। साथ में बाबा का छोटा मंदिर भी बनाया गया। तब से आज तक ये शहरवासियों की आस्था का केंद्र है।