भगवानसिंह मेड़तिया जैसे नेताओं की सख्त जरूरत है बीकानेर को


हस्तक्षेप
– हरीश बी. शर्मा
बीकानेर के युवा नेता भगवानसिंह मेड़तिया ने सार्वजनिक रूप से पुलिस वालों को आड़े हाथों लेते हुए जिस तरह से सवाल किये हैं और पुलिस वालों को जवाब नहीं सूझे, वह न सिर्फ काबिले-गौर है बल्कि नेताओं के लिए सबक भी है कि क्या वे भी मेड़तिया की तरह लोक-सेवकों से जवाबदेही की मांग रखेंगे या अपने-अपने हित साधने की चक्कर में ‘संबंध’ निभाते रहेंगे? आखिर यह कब तक चलेगा?
‘लॉयन एक्सप्रेस’ में जैसे ही यह वीडियो वायरल हुआ, जनता की तीखी प्रतिक्रिया हुई। हो सकता है कि कुछ जले-भुने नेता इसे भगवानसिंह मेड़तिया की राजनीतिक चमकाने का उपक्रम मानें, लेकिन अगर यह सही भी है तो कोई और भी तो ऐसी पहल करे। जो बात मेड़तिया ने उठाई है, उसे किसे इंकार हो सकता है। यहां तक कि वीडियो में जो पुलिस अधिकारी हैं, उनकी भी बॉडी-लेंग्वेज से यह लगता है कि वे मेड़तिया की बातों से सहमत हैं, बल्कि जवाब भी दे रहे हैं, लेकिन जवाब तो तब मिलेंगे जब सवाल उठाए जाएंगे।
इस बात से किसी को भी इंकार नहीं होगा कि पुलिस की हेलमेट जांच, गलत जगह पार्किंग होने वाली बाइकों को जब्त और सीज करना जैसे कार्यों में पुलिस की वह ऊर्जा जाया हो रही है, जिस ऊर्जा से वे सही अर्थों में ‘अपराधियों में भय और आम जन में विश्वास’ कायम कर सकते हैं, लेकिन शहर में मर्डर हो जाते हैं। छीना-झपटी-मारपीट, चोरी-डकैती और महिलाओं के प्रति अपराध के साथ-साथ जानवरों से भी कुकर्म की घटनाएं हो जाती है, लेकिन पुलिस के हाथ कुछ नहीं आता। पुलिस आत्मावलोक क्यों नहीं करती कि आखिर उसका काम है क्या। फिर अगर कोई चालान काटने का वसूली करने का आरोप लगाता है कि बीकानेर के मुख्य बाजारों में ऐसी दुकानें बता देता है, जहां उगाही की राशि जमा करवाई जाती है। या भगवानसिंह मेड़तिया सीधे तौर पर चुनौती देते दिखाई देते हैं कि मेरे साथ बाइक पर चलें मैं बताता हूं कहां-कहां मादक पदार्थों का कारोबार चल रहा है तो बोलती बंद क्यों हो जाती है। मतलब साफ है कि दाल में कुछ काला तो है।
बीकानेर में संभागीय आयुक्त रहे नीरज के.पवन में यातायात सुधार के लिए कुछ काम किये। उनके जाते ही फड़बाजार जाने वाले रास्ते के पिलर उखाड़ दिए गए। कोटगेट पर जो यातायात की व्यवस्था की गई, धज्जियां उड़ा दी गईं। यह काम नीरज के. पवन का था या व्यवस्था संभालने वालों का था। क्या एक अधिकारी के जाते ही किसी शहर की मशीरनी इतनी लापरवाह और गैर-जवाबदेह हो सकती है।
हो भी जाए तो क्या उस शहर के नेताओं को यह शोभा देता है कि वे यह सबकुछ मूक-दर्शक की तरह देखते रहें। नेताओं को चाहिए कि वे अपनी पार्टी के निर्देशों का इंतजार नहीं करे कि ऊपर से आदेश आएगा तो धरने लगाएंगे, पुतले जलाएंगे और ज्ञापन देंगे। नेता सिर्फ जनता के प्रति जवाबदेह होता है। अगर कोई अच्छा नेता है तो पार्टी को उसकी जरूरत होगी और अगर अवसरवादी है तो ऐसे नेताओं को पार्टी भी अपने साथ कहां तक रखेगी, यह विचार का विषय है। नेता लोग विचार करें कि जिस पथ का उन्होंने चयन किया है, उसके साथ न्याय कर रहे हैं? बहरहाल, भगवानसिंह मेड़तिया जैसे नेताओं की बीकानेर को सख्त जरूरत है।
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