बाजार में फंसे लोन की उगाही सही समय पर न हो पाने के कारण आज सरकारी बैंकों की हालत खराब हो गई है। हाल ही में सरकारी बैंकों के वित्तीय नतीजे सामने आए हैं, उनसे साफ है कि बैंकों के हालत में अब भी कोई सुधार नहीं हो पाया है। बैंक ऑफ बड़ौदा, यूको बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, इलाहाबाद बैंक हो या फिर देना बैंक इन सभी बैंकों ने मार्च 2016 के समाप्त तिमाही में कुल 6751 करोड़ रुपए के घाटे की सूचना दी। आखिर इस घाटे की वजह क्या है? इसकी मूल वजह है, अक्सर बड़ी कंपनियां की ओर से बैंकों से करोड़ों कर्ज लेकर उसे वापस नहीं करना। इससे बैंकों के डूबते कर्ज यानी एनपीए आज चिंताजनक स्तर तक पहुंच चुका है। यदि इसकी वसूली सही समय पर हो जाए तो न केवल बैंकों की हालत सुधरेगी, बल्कि अर्थव्यवस्था को गति मिलने के साथ ही बेरोजगारों को भी रोजगार के अवसर मिल सकेंगे।
क्या है एनपीए

एनपीए (नॉन परफार्मिंग एसेट) जब कोई देनदार बैंक को ईएमआई देने में नाकाम रहता है, तब उसका लोन अकाउंट नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) कहलाता है। नियमों के अनुसार जब किसी लोन की ईएमआई, प्रिंसिपल या इंटरेस्ट ड्यू डेट के 90 दिन के भीतर नहीं आती है तो उसे एनपीए में डाल दिया जाता है। लोन पर डिफॉल्ट के चलते बैंकों पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़े, इसके लिए आरबीआई ने उसके लिए प्रोविजन करने का नियम बनाया है। बैंक को प्रोविजन के बराबर की रकम बिजनेस से अलग रखनी पड़ती है।

बैंकों के लिए बड़ी चुनौती

दरअसल, एनपीए के कारण बैंकों का मुनाफा लगातार कम हो रहा है व बैंक पूंजी के अभाव में ऋण वितरण का कार्य नहीं कर पा रहे हैं। इसके लिए बैंक एनपीए वसूली के लिए लगातार अभियान चला तो रहे हैं, लेकिन अपेक्षित परिणाम नहीं आ रहे। एनपीए पर नियंत्रण रखने के लिए अब बैंकों को ऋण बांटने में विशेष सतर्कता बरतनी पड़ रही है। जाहिर है कि चालू वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान सरकार को अपने खजाने से इन बैंकों को भारी भरकम राशि देनी होगी। वैसे इस काम के लिए बजट में 25 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। जानकारों की माने तो जरूरत इससे कहीं ज्यादा रकम की है। सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2016-17 में इन बैंकों को 25,000 करोड़ रुपए की मदद देने का प्रावधान किया है, जो सरकारी बैंकों की माली हालत को देखते हुए यह रकम नाकाफी साबित होगी।