सावधान! बंद ए.सी कमरों के मोह से कम हो जाएगा विटामिन-डी



- डॉ. कविता शर्मा
अतिरोचक तथ्य है कि किसी फिल्म के जादूई किरदार की तरह ही, हमारी हड्डियों व नसों के लिए भी धूप अति आवश्यक है। सर्वविदित है कि भारत के पश्चिम क्षेत्र की जलवायु में धूप की सर्वाधिक पहुंच है । परंतु विडंबना यह है कि इस क्षेत्र में भी एक ऐसी स्वास्थ्य हनन की स्थिति उत्पन्न हो रही है जिसे तकनीकी रूप से तो कई नामों से जानते हैं जैसे ऑस्टियो मलैसिया, ऑस्टियोपोरोसिस, रिकेट्स, मल्टीपल स्क्लेरोसिस, एंजायटी पर मूल रूप से यह एक विटामिन की कमी है – वह है विटामिन डी।
वर्ल्ड हेल्थ रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर चार में से तीन व्यक्ति विटामिन डी की कमी से जूझ रहे हैं। सामान्य धारणा तो यह है कि 40 पार यानी प्रौढ़ उम्र के पुरुष व महिलाओं में ही विटामिन डी की कमी होती है। किंतु बदलती जीवन शैली, व खानपान के कारण हर उम्र और अवस्था में अब विटामिन डी की कमी के लक्षण दिखाई दे रहे हैं।
हड्डियों में दर्द, जोड़ों में दर्द, नसों व मांसपेशियों में खिंचावव ऐंठन, नसों में सूजन, जलन व घाव, मूड स्विंग, एंजायटी और डिप्रेशन ऐसे ही कुछ लक्षण है। इन लक्षणों को पहले केवल कैल्शियम की कमी से जोड़ा जाता था। किंतु अब रिसर्चेस में साबित हुआ है कि इनका मुख्य कारण विटामिन डी की कमी है।
आइए जाने विटामिन डी के बारे में
विटामिन डी एक वसा में घुलनशील विटामिन समूह है। इसे प्राकृतिक वरदान ही कहेंगे कि इस विटामिन का निर्माण हमारे शरीर में स्वत: ही हो जाता है । त्वचा की सतह के नीचे उपस्थित वसा की परत में यह विटामिन (1,25 डाईहाइड्रोक्सी कॉलेकैलशिफ्रोल) D3 के रूप में जमा रहता है। जो धूप के संपर्क में आकर सक्रिय हो जाता है।
इस विटामिन डी के शरीर में असंख्य कार्य है। किंतु कुछ मुख्य कार्यों की बात करें तो सर्वप्रथम यह हमारे रक्त में कैल्शियम के संतुलन को बनाए रखता है। गर्भावस्था, धात्री अवस्था, बाल्यावस्था या प्रौढावस्था कभी भी यदि कैल्शियम की कमी हो जाती है तो विटामिन डीपैराथाइरॉएड हॉरमोन के साथ मिलकर हमारे शरीर में किडनी, आंतों व हड्डियों से कैल्शियम खींचता है और रक्त को दे देता है। विटामिन डी के असंतुलन से हड्डियो से अनियंत्रित रूप में कैल्शियम बाहर आने लगता है जिससे हड्डियां गलने लगती है तथा खोखली हो जाती है। इसके अतिरिक्त हड्डियों के आसपास की मांसपेशियों व नसों में भी विकार आने लगता है।
विटामिन डी की कमी से शरीर में तंत्रिका तंत्र में न्यूरोट्रांसमीटर जैसे डोपामिन, सेरोटोनिन आदि का अनियमन हो जाता है जिससे मूड स्विंग्स, डिप्रेशन व एंजायटी भी होने लगती है।
फिर क्या उपाय है, विटामिन डी की कमी से बचनेका ?
धूप का सेवन करें। दोपहर से पूर्व की धूप का सेवन शरीर में विटामिन डी के निर्माण को बढ़ाता है। प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट धूप का सेवन करना चाहिए। तेज धूप त्वचा के रंग को गहरा कर देती है इससे त्वचा में मेलेनिन की मात्रा बढ़ती है, यह मेलानिन विटामिन डी के निर्माण को रोकता है। इसलिए तीखी धूप के सीधे सेवन से बचना चाहिए। सनस्क्रीन जैसे कॉस्मेटिक का उपयोग ना करें।
बंद कमरों व AC रूम का मोह त्यागे। निरंतर बंद कमरे में बैठे रहने कभी शरीर पर कुप्रभाव पड़ता है। प्राकृतिक हवा व धूप से भरपूर स्थान पर बैठने से भी शरीर में विटामिन डी का निर्माण नियमित रहता है।
आहार में सुधार करिए । उत्तम गुणवत्ता के वसा व प्रोटीन के स्रोतों (जैतून का तेल, नारियल का तेल, सूरजमुखी का तेल, तिल का तेल, शुद्ध घी, दूध व दूध से बने पदार्थ, मक्खन, बादाम, अखरोट, तिलहन, अंडा, मछली आदि) का समावेश करिए । उत्तम वसा ज़हां विटामिन डी निर्माण व संग्रहण में मदद करता है, वही उत्तम प्रोटीन इसे शरीर में मोबिलाइज करने में मदद करता है। (पूर्व प्रकाशित आर्टिकल्स में आपको उत्तम वर्ष व उत्तम प्रोटीन के स्रोतों पर विस्तृत जानकारी उपलब्ध है।)
शरीर में कैल्शियम की कमी न होने दे।दूध व दूध से बने पदार्थ, हरी सब्जियां, फल आदि का सेवन करें तथा शरीर में कैल्शियम का संतुलन बनाए रखें। रक्त में कैल्शियम की मात्रा संतुलित होने पर विटामिन डी की अधिक खपत नहीं होती।
इसके अतिरिक्त यदि भोजन से विटामिन डी की आवश्यकता पूर्ति न होती हो तो अपने चिकित्सक की सलाह से विटामिन डी के सप्लीमेंट्स का सेवन करना प्रारंभ करें।
सभी आवश्यक विटामिन व मिनरल्सबहुत ही सूक्ष्म मात्रा में हमारे शरीर में उपस्थित होते हैं।किंतु शरीर में होने वाली असंख्यचयापचय क्रियाओमें इनकी भूमिका अतुलनीय है।यह सभी विटामिन व मिनरल्स हमारे शरीर के रक्षक हैं। इन रक्षकों से दोस्ती बनाए रखिए और स्वस्थ रहिए।
- इस आलेख की लेखिका डाइट एवं न्यूट्रशियिन विशेषज्ञ है व वर्तमान में महारानी सुर्दशना कॉलेज बीकानेर में अतिथि सहायक आचार्य पद पर कार्यरत है।
