हस्तक्षेप

– हरीश बी. शर्मा

सचिन पायलट को फिर से राजस्थान की कमान थमाने की अटकलों के बीच अशोक गहलोत ने एक बार फिर से गांधी परिवार को रिझाने का प्रयास शुरू कर दिया है, लेकिन इस बार कांग्रेस और खासतौर से राहुल गांधी से अशोक गहलोत को ज्यादा तवज्जो मिलती नजर नहीं आ रही है। अशोक गहलोत ने ईडी द्वारा गांधी परिवार को निशाने बनाए जाने के मसले पर अपने बयान में कहा है कि सरकार गलत तरीके से गांधी-नेहरू परिवार को निशाना बना रही है। शिमला में उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में इस पूरे मसल पर अपनी बात कही है और यह साबित करने का प्रयास किया है कि वे इस घड़ी में राहुल गांधी के साथ खड़े हैं।
आने वाले तीन दिन राहुल गांधी और सोनिया गांधी के लिए काफी महत्वपूर्ण होंगे, क्योंकि उन्हें नेशनल हैराल्ड मामले में जमानत लेने के लिए कोर्ट में खुद को उपस्थित होना पड़ेगा। इस मामले में कांग्रेस ने दबाव बनाने के लिए पहले से ही देशभर में आंदोलन शुरू करवा दिया है।

राजस्थान में भी यह आंदोलन चल रही रहा है, लेकिन जो अशोक गहलोत इस मामले पर बयान जारी कर रहे हैं, वे पिछले दिनों कांग्रेस के जिलाध्यक्षों के सम्मेलनों में दिखाई नहीं दिए जबकि सचिन पायलट पहली पंक्ति में बैठे नजर आए थे।
राजनीतिक गलियारों में सचिन पायलट को इतनी तवज्जो मिलती देखकर हलचल तेज हो गई है कि क्या सचिन पायलट को फिर से कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष बनाया जाएगा। कांग्रेस का एक गुट यह मानता है कि राजस्थान अगर सचिन पायलट को नहीं दिया गया तो अगले चुनाव में हालात और मुश्किल हो जाएंगे।
गोविंद डोटासरा बतौर प्रदेशाध्यक्ष पूरी तरह से फैलियर साबित हुए हैं और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली भी ज्यादा असर नहीं दिखा पाएं हैं। उनके पास ज्ञानदेव आहूजा द्वारा मंदिर को शुद्ध करवाने वाली घटना के बाद सहानुभूति लेने का बड़ा अवसर था, लेकिन उन्हें राहुल गांधी का साथ मिलने के बाद भी मुद्दे को भुना नहीं पाए। ऐसे में अशोक गहलोत के माने जाने वाले इन दोनों नेताओं ने भी निराश ही किया है जबकि कांग्रेस के जिलाध्यक्षों के सम्मेलन से आए कार्यकर्ता जोश में भरे हुए हैं।
जोश में भरे हुए कार्यकर्ताओं को सक्रिय रखने के लिए सचिन पायलट को राजस्थान की कमान देने पर विचार चल रहा है। इस सुगबुगाहट को सुनने के बाद अशोक गहलोत ने एक बार फिर से कमान संभाल ली है और वे चाहते हैं कि अगर कांग्रेस में परिवर्तन करना भी है तो उनकी पसंद के व्यक्ति को प्रदेशाध्यक्ष बनाया जाए।

इसलिए अब वे सक्रियता बढ़ा रहे हैं। लंबे समय से वे बयानों से दूर थे, लेकिन अब वे बयान भी दे रहे हैं और खुद को सक्रिय भी दिखा रहे हैं। सचिन पायलट के लिए तो अच्छा यही रहेगा कि उन्हें राजस्थान फिर से नहीं मिले, क्योंकि उन्हें यहां नये सिरे से मेहनत करनी होगी, लेकिन अशोक गहलोत के लिए यह अच्छा नहीं रहेगा कि सचिन पायलट को राजस्थान मिल जाएगा। अगर ऐसा हो गया तो कांग्रेस न सिर्फ यह जतायेगी कि सचिन पायलट के मामले में फैसले गलत थे बल्कि यह भी साबित हो जाएगा कि अशोक गहलोत गलत थे।

‘लॉयन एक्सप्रेस’ के संपादक हरीश बी.शर्मा के नियमित कॉलम ‘हस्तक्षेप’ के संबंध में आपके सुझाव आमंत्रित हैं। आप 9672912603 नंबर पर वाट्स अप कर सकते हैं।