बीकानेर को देश की राजनीति में इतनी प्रतिष्ठा भी दिलाने वाले अकेले सांसद हैं अर्जुन मेघवाल



हस्तक्षेप
– हरीश बी. शर्मा
बीकानेर से चौथी बार सांसद बनने वाले अर्जुनराम मेघवाल इस बार भी स्वतंत्र-प्रभार के रूप में राज्यमंत्री के रूप में मंत्रिमंडल में शामिल हुए हैं। जल्द ही विभाग का वितरण भी हो जाएगा। राजस्थान से पांच चेहरों को शामिल किया है, बहुत अधिक संभावनाओं के बाद भी दुष्यंतसिंह मंत्रिमंडल में नहीं हैं, जिसके लिए बहुत सारी चर्चाएं हैं। दुष्यंतसिंह भले ही अपने-आप में कोई बहुत बड़ा चेहरा नहीं हो, लेकिन वसुंधराराजे की वजह से राजस्थान की राजनीति में वे विराट हो जाते हैं। बावजूद इसके वे पहली सूची में शामिल नहीं हैं। बावजूद इसके कि राजस्थान में भाजपा को जो धक्का लगा है, उसकी एक वजह वसुंधराराजे को किनारे करना मानी जा रही है, भाजपा ने दुष्यंत को मंत्रिमंडल नहीं रखा तो इसका सीधा संकेत है कि भले ही भाजपा में वसुंधराराजे के लिए कुछ सुरक्षित हो, लेकिन दुष्यंत के लिए संभावनाएं क्षीण हो चुकी हैं।
इसी संदर्भ में हम जब अर्जुन मेघवाल को देखते हैं तो पाते हैं कि वे नई संभावना के साथ भाजपा के पहले मंत्रिमंडल में अपना स्थान बनाने में सफल हुए हैं। भले ही उन्हें इस बार केबिनेट नहीं मिली, लेकिन वे पहले वाले स्थान पर फिर से आसीन हैं। एक ऐसा समय जब बीकानेर की जनता ने उन्हें कोई खास वोट नहीं दिए। ढाई लाख वोटों से जीतने वाले अर्जुन राम मेघवाल पचास हजार के फासले से ही जीत पाते हैं तो इसे मेघवाल का माइनस बताकर बेदखल भी किया जा सकता था, लेकिन वह क्या है, जिसकी वजह से अर्जुन मेघवाल अंतिम समय में अपने आपको न सिर्फ बचाने में कामयाब हो जाते हैं बल्कि उपलब्धियों के साथ खड़े मिलते हैं, यह जानना बहुत जरूरी है।
यहां सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि बीते बीस सालों में आखिर अर्जुन मेघवाल के हाथ में ऐसा क्या है, जिसकी वजह से वे सत्ता के शक्तिशाली लोगों की मूंछ के बाल बने रहे हैं। यहां तक कि वे भी ऐसी स्थिति में रहे हैं कि बहुत सारे लोग यह समझ चुके हैं कि अर्जुन मेघवाल से बनाकर रखी जाने में ही सार है। यह सार देर-सबेर ही सही लोगों को समझ आ चुका है, जो इस बात का परिचायक है कि अर्जुन मेघवाल भाजपा की राजनीति में एक ऐसे चेहरे हो चुके हैं जिन्हें टाला जाना संभव नहीं है।
राजनीति को समझने वाले जानते हैं कि इसके लिए सिर्फ मेहनती और विद्वान होना जरूरी नहीं है। ब्यूरोक्रेट या दलित होना ही जरूरी नहीं है। हर टास्क के लिए तैयार रहने वाला बने रहने पर भी संभव नहीं है कि आपको पुरस्कार भी मिले, फिर वह क्या है जो यह सवाल खड़े करता है कि क्या वजह है कि मेघवाल को टाला जाना संभव नहीं है।
खासतौर से यह सवाल कौतुहल की तरह सामने आ रहा है कि क्या वाकई अर्जुन मेघवाल लॉबिंग में सिद्धहस्त हो चुके हैं? बीकानेर का यह दुर्भाग्य रहा है कि यहां का कोई भी राजनेता दिल्ली की नब्ज को पहचानने में नाकामयाब रहा। अर्जुन मेघवाल इस दिशा में कुछ कर पाए तो इसे इस रूप में स्वीकारा जाना चाहिए कि इसी को राजनीति कहते हैं। वरना, उठापटक के इस दौर में जब साथ चलने वाला ही गिराने की फिराक में रहता हो, किस का भरोसा करे। वैसे भी किसी व्यक्ति का अजातशत्रु होना मृगतृष्णा है, राजनीति में तो अजातशत्रु की सोच ही बेमानी है। बीस सालों में अर्जुन मेघवाल ने भले ही खूब सारे दोस्त बनाए, दुश्मनों को भी खूब अवसर दिए। ज्यादा दूर नहीं जाएं तो इसी चुनाव की बात कर लें। टिकट की घोषणा से पहले यह माहौल बनाया गया कि उनका टिकट कट रहा है, पहली सूची में टिकट ले आए तो यह कहा गया कि हारेंगे। हारते-हारते बचे तो यह कहा गया कि उन्हें मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलेगी और जब मंत्रिमंडल में जगह मिल गई तो यह कहा जा रहा है कि केबिनेट से वंचित रख दिया गया।
संभव है कि ऐसा हुआ हो। कुछ लोग अपने किरदार से बड़े हो जाते हैं। अर्जुनराम मेघवाल अपेक्षाएं जगाते हैं, लेकिन हमें यहां जमीन पर रहकर देखना चाहिए कि जहां से उन्होंने सफर शुरू किया था, उस लिहाज से देखा जाए तो मेघवाल एकमात्र ऐसे नेता हैं, जिन्होंने बीकानेर को देश की राजनीति में वह स्थान बल्कि यह कहना समीचीन रहेगा कि प्रतिष्ठा दिलाई, जो अब तक नहीं मिली थी।
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