पाली।   जिले में अर्जुन-एकलव्य जैसा बनने के लिए काफी युवा तैयार है लेकिन इसकी तैयारियों के लिए पर्याप्त संसाधन तक नहीं हैं। हालात ये हैं कि जिले के कई युवा राज्य-राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं लेकिन स्थानीय स्तर इनको प्रोत्साहन देने के लिए संसाधन तक उपलब्ध नहीं हैं।  जिले के युवाओं में एक तरफ युवाओं का रुझान तीरंदाजी जैसे रोमांचक खेल के प्रति बढ़  रहा है, वहीं खेल सामग्री पर्याप्त न होने से बहुतों को मन भी मसोसना पड़ता है। जिले में तीरंदाजी खेल की प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है। खासकर यहां के गा्रमीण व आदीवासी इलाकों में  एक से बढ़कर एक अचूक निशाने वाले अर्जुन-एकलव्य हैं, लेकिन आधुनिक धनुष की कमी के कारण इन्हें प्रशिक्षण नहीं मिल पाता। इसके कारण बड़े स्तर की प्रतियोगिताओं में इन खिलाडि़यों का परफार्मेंस तो खराब हो जाता है। लकड़ी के धनुष भी अपर्याप्त- जिले में लकड़ी के बने पारंपरिक धनुष (इंडियन आर्चरी) की संख्या भी अपर्याप्त है। तीरंदाजी का प्रशिक्षण लेने वाले खिलाडि़यों की संख्या जहां सैकड़ों में है, वहीं पारंपरिक धनुष महज जिले के कुछ एक यानि 2 से 3 स्कूल व कॉलेज के पास हैं। इसकी कुल संख्या भी  मिला लें तो यह लगभग 5 सेट से ज्यादा नहीं है।

जिले में सिर्फ एक फाइबर ग्लास धनुष

तीरंदाजी संघ के पदाधिकारियों की मानें तो जिले में सिर्फ एक फाइबर ग्लास धनुष (रिकर्व आर्चरी) मौजूद है। यह  धनुष भी लंबे समय तक चली मांग के बाद लगभग एक साल पहले तीरंदाजी संघ को मिली। एक पदाधिकारी बताते हैं कि लगभग दो साल के प्रयास के बाद मारवाड़ जंक्शन के विधायक केसाराम चौधरी ने विधायक कोटे से यह धनुष उपलब्ध कराई। इसके बाद से हेमावास में प्रशिक्षण लेकर जिले के कुछ युवा रिकर्व आर्चरी वर्ग में राष्ट्रीय स्तर पर जिले का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।तीरंदाजी जिले का पारंपरिक खेल होने के बावजूद इसे बढ़ावा देने का कोई प्रयास न होना शर्मनाक है। संघ युवाओं को एकजुट कर प्रशिक्षण दिलाने व प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करता है लेकिन, जिले में एकमात्र रिकर्व आर्चरी व कुछ एक सेट इंडियन आर्चरी हैं। जनप्रतिनिधियों को आगे आना चाहिए।