लॉयन न्यूज नेटवर्क। स्मार्टफोन आज हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गया है। प्रोफेशनल्स के साथ-साथ ही ये डिवाइस स्टूडेंट्स और घरेलू महिलाओं तक के लिए रोजाना के कामों के लिए अपरिहार्य सा ही हो गया है। आज हम स्मार्टफोन पर इतने निर्भर हो गये हैं कि एक मिनट के लिए इससे दूर नहीं हो सकते है। स्मार्टफोन ने निश्चित ही हमारे लिए बहुत से कामों को आसान कर दिया है लेकिन इससे होने वाले नुकसानों की फेहरिस्त भी काफी लम्बी होती जा रही है। ऐसा ही एक नुकसान है जिसे मनोविज्ञान की भाषा में कहा जाता है ‘नोमोफोबिया’। इस शब्द को कैम्ब्रिज युनिवर्सिटी द्वारा वर्ष 2018 में वर्ड ऑफ द ईयर भी चुना गया है। इसका मतलब है नो मोबाइल फोबिया।

ये एक किस्म की मानसिक बीमारी है जिसमें हमें लगता है के हम मोबाइल के बिना एक मिनट भी नहीं रह पायेंगे। कुछ देर के लिए भी मोबाइल से दूर होने पर बैचेनी होने लगती है। हर थोड़ी देर में मोबाइल को देखना, नोटिफिकेशन चैक करना। बेवजह एप्स खोलना बंद करना। इसके प्रारंभिक लक्षण है। ऐसे लोग मोबाइल में कोई भी तकनीकी कमी आ जाने पर भी पेनिक करने लगते हैं।

क्या कहती है रिसर्च

हंबारे, रुगिंबाना और झोवा (2012) ने दावा किया कि सेल फोन संभवत 21वीं सदी की सबसे बड़ी गैर-नशीली लत है, और कॉलेज के छात्र हर दिन अपने फोन पर नौ घंटे तक बिता सकते हैं, जिससे इस पर निर्भरता बढ़ सकती है।

सिक्योरएनवोय द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि युवा वयस्कों और किशोरों में नोमोफोबिया होने की अधिक संभावना है। इसी सर्वेक्षण में बताया गया है कि 77 प्रतिशत किशोरों ने अपने मोबाइल फोन के बिना होने पर बैचेनी व चिंता होने की सूचना दी। इसके साथ ही 25-34 आयु वर्ग और 55 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों ने भी इसी प्रकार की चिंता व्यक्त की।

क्या है लक्षण
फोन को बार-बार चेक करना
कई-कई घंटे फोन में ही लगे रहना
फोन के बिना असहाय महसूस करना
फोन को बिस्तर पर इस्तेमाल करने के साथ-साथ नहाने और यहां तक बाथरूम में भी ले जाना
फोन में बार-बार बिना काम नोटिफिकेशन चैक करना, बिना वजह एप्स को खोलना-बंद करना।

क्या-क्या हो सकते हैं नुकसान

कंप्यूटर विजन सिंड्रोम
अमेरिका की विजन काउंसिल के सर्वे में पाया गया कि 70 फीसदी लोग मोबाइल स्क्रीन को देखते समय आंखें सिकोड़ते हैं। यह लक्षण आगे चलकर कंप्यूटर विजन सिंड्रोम बीमारी में तब्दील हो सकता है। जिसमें पीडि़त को आंखें सूखने और धुंधला दिखने की समस्या हो जाती है।

रीढ़ की हड्डी पर असर
युनाइटेड कायरोप्रेक्टिक एसोसिएशन के मुताबिक लगातार फोन का उपयोग करने पर कंधे और गर्दन झुके रहते हैं। झुके गर्दन की वजह से रीढ़ की हड्डी प्रभावित होने लगती है।

फेफड़ों पर असर
झुकी गर्दन की वजह से शरीर को पूरी या गहरी सांस लेने में समस्या होती है। इसका सीधा असर फेफड़ों पर पड़ता है।

टेक्स्ट नेक
मोबाइल स्क्रीन पर नजरें गड़ाए रखनेवाले लोगों को गर्दन के दर्द की शिकायत आम हो चली है। इसे ‘टेक्स्ट नेक’ का नाम दे दिया गया है। यह समस्या लगातार टेक्स्ट मैसेज भेजने वालों और वेब ब्राउजिंग करने वालों में ज्यादा पाई जाती है।

किडनी फेल हो सकते हैं
75 फीसदी लोग अपने सेलफोन को बाथरूम में ले जाते हैं, जिससे हर 6 में से 1 फोन पर ई-कोलाई बैक्टीरिया के पाए जाने की आशंका बढ़ जाती है। इस बैक्टीरिया की वजह से डायरिया और किडनी फेल होने की आशंका होती है।

मोबाइल ने छीनी नींद
दो घंटे तक चेहरे पर लगातार मोबाइल की रौशनी पडऩे से 22 फीसदी तक मेलाटोनिन कम हो जाता है। इससे नींद आने में मुश्किल होती है। यानी ज्यादा देर तक मोबाइल देखने से नींद नहीं आने की समस्या हो सकती है। सर्वे में 12 फीसदी लोगों ने कहा कि स्मार्टफोन का ज्यादा उपयोग करने से उनके निजी संबंधों पर सीधा असर पड़ा है।

आत्मविश्वास घटा रहा स्मार्टफोन
सर्वे मे 41 फीसदी लोग ने माना कि किसी के सामने मूर्ख लगने से बचने के लिए वे मोबाइल में उलझे होने की नौटंकी करते हैं। ऐसा करने से उनका आत्मविश्वास घटता है।

स्मार्टफोन से बढ़ाई चिंता
एक सर्वे में 45 फीसदी स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ताओं ने स्वीकार किया कि उन्हें यह चिंता सताती रहती है कि कहीं उनका फोन खो नहीं जाए।

परेशान करने वाले आंकड़ें
– 37 फीसदी एडलट्स और 60 फीसदी टीनएजर्स ने माना कि उन्हें अपने स्मार्टफोन की लत है।

– 50 फीसदी स्मार्टफोन यूजर्स फिल्म देखने के दौरान फेसबुक चेक करते हैं।

– 20 फीसदी लोगों ने माना कि वे हर 10 मिनट में अपना फोन देखते हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि मोबाइल का जरुरत से ज्यादा उपयोग परिवार और दोस्तों से दूरी बढ़ाता है। इससे सामाजिक छवि भी बिगड़ती है। मोबाइल फोन के ज्यादा इस्तेमाल करने के खतरों के प्रति जागरूकता की जरूरत है।

 

कैसे करें बचाव
जैसा कि हमने ऊपर बताया कि नोमोफ़ोबिया एक मनोवैज्ञानिक स्थिति है और ये एक प्रकार का फोबिया है. इसके लिए निन्मलिखित नोमोफोबिया का इलाज डॉक्टर कर सकते हैं :

1. Cognitive behavioral therapy: ये दिमागी थेरेपी उन नकारात्मक विचारों से उबरने में मदद करेगी, जो तब आते हैं जब आप ये सोचते हैं कि फोन पास में नहीं होगा, तो क्या होगा।

2. Exposure therapy : थेरेपी की मदद से डर का सामना करने में मदद मिलेगी.

3. दवाइयां : डॉक्टर नोमोफोबिया के लक्षणों को कम करने के लिए दवाइयां दे सकते है। ये दवाइंया सिर्फ लक्षणों को कम कर सकती हैं, नोमोफोबिया को नहीं।

4. ख़ुद का ध्यान रखना : व्यक्ति ख़ुद भी नोमोफोबिया से लडऩे की हिम्मत कर सकता ह। इसके लिए वो निन्मलिखित कदम उठा सकता है :

सोने से पहले फ़ोन को बंद कर दें । अलार्म अगर फ़ोन में लगाना है, तो लगाकर ख़ुद से फ़ोन को दूर रख दें। पूरे दिन में कोशिश करें कि बिना के बिना वक्त गजारें। मोबाइल फ़ोन, लैपटॉप या टेलिविजन जैसी तककीनों के बिना थोड़ा वक़्त गुज़ारें। आप बाहर खेल सकते हैं, किताब पढ़ सकते हैं या फिर कुछ लिख सकते हैं।