सारे कयास फेल, मोदी ने साबित किया कि यह पुरानी सरकार का ही विस्तार है…


हस्तक्षेप
– हरीश बी. शर्मा
अठारहवीं लोकसभा में फिर से प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी ने फिर से ओम बिरला को लोकसभा का स्पीकर बनाने में भी सफलता हासिल कर ली है। इससे पहले तमाम कयासों के बाद भी अमित शाह को गृहमंत्री बनाने वाले नरेंद्र मोदी की केबिनेट में देखा जाए तो ज्यादा कुछ नया नहीं है। हां, अमित शाह की भूमिका को रिजर्व करते हुए राजनाथसिंह की भूमिका को बढ़ा दिया गया है, जिसे लेकर कोई खास चर्चा नहीं है। मोटे तौर पर संदेश यही गया है कि नरेंद्र मोदी ने वही किया है, जैसा कि वे चाहते थे या इसे दो कदम आगे बढ़ते हुए इस तरह भी समझा जा सकता है कि भले ही जनादेश भाजपा के नाम नहीं हो, लेकिन एनडीए में आज भी भाजपा न सिर्फ अपर-हैंड है बल्कि अधिकांश फैसलों में भी भाजपा के लोग ही आगे रखे गए हैं। नरेंद्र मोदी ने नई सरकार नहीं बनाई है बल्कि सरकार का जैसे विस्तार किया है।
निश्चित रूप से यह बड़ा रिस्क है, क्योंकि भाजपा के पास पूर्ण बहुमत नहीं है और एनडीएम में शामिल चंद्रबाबू नायड़ू या नीतीश कुमार कभी भी पाला बदल सकते हैं। इसके अलावा भी बड़े संकट खड़े हो सकते हैं, लेकिन इन सभी को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार ने सधे हुए कदम के साथ बगैर समझौता किए आक्रामक रणनीति अपनाने के जो संकेत दिए हैं, जाहिर है विपक्ष की एकता पर असर होगा।
जिस तरह यह माना जा रहा है कि नीतीश या चंद्रबाबू नाराज हो सकते हैं तो इसके लिए प्लान-बी भाजपा ने पहले ही तैयार कर लिया है, जिसमें कईं निर्दलीय सांसदों से अमित शाह संपर्क में रहे। समय आने पर उन्हें तुरूप के पत्ते की तरह इस्तेमाल किया जाएगा। जैसी उम्मीद एनडीए गठबंधन के दलों से की जा रही है, वैसी संभावनाएं इंडिया गठबंधन में भी हो सकती है। सत्ता के लालच में दल टूटकर इधर भी आ सकते हैं, जिसके लिए मोदी सरकार ने दरवाजे बंद नहीं किए हैं।
दरवाजे बंद नहीं करने का एक बड़ा संदेश इस रूप में भी सामने आया है कि आपातकाल की सालगिरह पर देशभर में हुए आयोजनों में जहां कांग्रेस को कोसा गया है वहीं सदन में भी इसका असर दिखा। नवनिर्वाचित स्पीकर ओम बिरला ने अपने भाषण में आपातकाल का जिक्र किया है बल्कि इंदिरा गांधी की आलोचना करते हुए सदन में एक मिनट का मौन भी रखवाया है।
इससे यह जाहिर होता है कि मोदी का अगला कदम विपक्ष के नाम पर सिर्फ कांग्रेस को निशाने पर रखना होगा। इस रणनीति के दो फायदे होंगे। इससे कांग्रेस विरोध को हवा दी जाएगी, बचा हुआ विपक्ष अपने आपको अलग-थलग महसूस करेगा, जिसके परिणाम भाजपा के पक्ष में जाएंगे।
ऐसे में सबसे अधिक एक्सपोज राहुल गांधी होंगे, जिसके लिए मशहूर है कि वे स्क्रिप्ट से बाहर आकर इम्प्रोवाइजेशन करने लगते हैं और यही क्षण होता है जब वे गड़बड़ कर देते हैं। कांग्रेस या फिर उनकी दादी इंदिरा गांधी पर प्रहार को वे सहन भी कैसे कर पाएंगे। कांगे्रस की इस कमजोर नब्ज को भाजपा ने खूब भुनाया है। अब सदन में भी यही रणनीति अपनाई जाएगी। राहुल गांधी को यह तय करना है कि वे इस पूरे मामले में भाजपा को सफल होने देते हैं या दुनिया को बताते हैं कि अब जो राहुल गांधी है, वह पुराने वाला नहीं रहा है।
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