मी टू एक ऐसा अभियान है, जिसके ज़रिये महिलाएं अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के अनुभवों को सार्वजनिक रूप से साझा कर रही हैं। लव मैटर्स इंडिया बता रहा है कि दुनिया में व्यापक रूप से उपयोग की गई हैशटैग मी टू की भारत में क्या प्रासंगिकता है।

 

यह एक अभियान है जिसके ज़रिये महिलाएं अपने करियर के दौरान हुई यौन शोषण की घटनाओं को सोशल मीडिया पर #MeToo लिखकर साझा कर रही हैं। इस आंदोलन की शुरूआत अमेरिका में हुई थी, जिसमें हॉलीवुड के जाने माने निर्माता हार्वे वाइंस्टीन का नाम सामने आया था। हार्वी पर दस महिलाओं के साथ यौन शोषण करने का आरोप लगा था।

भारत में मी टू प्रमुखता से तब सामने आया जब पिछले दिनों बॉलीवुड अभिनेत्री तनुश्री दत्ता ने अभिनेता नाना पाटेकर पर दस साल पहले एक फिल्म की शूटिंग के दौरान यौन शोषण किये जाने का आरोप लगाया। इसके बाद कई महिलाओं, ज्यादातर मीडियाकर्मी महिलाओं ने अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न को सार्वजनिक रूप से साझा किया।

यौन उत्पीड़न क्या है?

किसी महिला की सहमति के बिना उसके साथ जबरदस्ती करना यौन उत्पीड़न कहलाता है। किसी महिला के साथ अंतरंग बातचीत, एकतरफा चुंबन, उसे अनुचित रूप से छूना, शारीरिक उत्पीड़न और बलात्कार जैसी यौन हिंसा या फिर कामुक तस्वीरें साझा करना भी यौन उत्पीड़न के अंतर्गत आता है।

सहमति क्या है?

किसी को गले लगाने, किस करने, सेक्स से जुड़ी बातें करने है सेक्स करने से पहले हर बार उस व्यक्ति की सहमति ज़रुरी है और यह हर किसी पर लागू होता है।

सहमति का सामान्य अर्थ ‘हां’ है। जो कुछ भी आपके साथ हो रहा हो, स्पष्ट रूप से वह आपकी सहमति से हो रहा हो। ‘हां’ कहने का मतलब हां है लेकिन जब आप ना कहती हैं तो इसका भी अर्थ उतना ही महत्वपूर्ण है मतलब ‘ना’। सहमति ना देने के लिए पूरी शक्ति और सामर्थ्य से ‘ना’ कहा जा सकता है। अक्सर महिलाएं एक अजीब तरह के डर और जटिल भावनाओं के कारण सीधे ‘ना’ कहने में खुद को असमर्थ पाती हैं। उन्हें इस बात का डर होता है कि कहीं उनकी नौकरी न चली जाए, कहीं वो मुझे मारने ना लगे आदि। इसी कारण वे अपने साथ हो रहे उत्पीड़न को भी बिना कुछ बोले सहन करती रहती हैं।

यह महिलाएं इतने सालों बाद क्यों सामने आई हैं?

यौन उत्पीड़न के बारे में बात करना आसान नहीं है। इसके लिए हिम्मत और दूसरों के सहयोग की जरूरत पड़ती है, जो कि हमारे समाज में महिलाओं को आसानी से नहीं मिलता है। समाज में यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं के प्रति लोगों का नज़रिया ठीक नहीं है और यह माना जाता है कि महिला ने अपनी इज्जत लुटा दी, चाहे भले ही ऐसा महिला को मजबूर करके किया गया हो। इसी शर्म के कारण महिलाएं यौन उत्पीड़न पर बात करने से बचती हैं। इसके अलावा बात बिगड़ने के डर से भी वह चुप्पी साधे रहती है।

आप कैसे मदद कर सकते हैं?

आमतौर पर हर महिला कभी ना कभी यौन उत्पीड़न की शिकार हुई है। सबसे पहले उसे यह स्वीकार करना चाहिए और फिर इसके बारे में बात करना चाहिए। महिलाओं को अपने इस अनुभवों के बारे में बात करने से जो चीज़ रोकती है वह है लोगों के सहयोग की कमी।

महिलाओं को ये बातें अक्सर सुननी पड़ती है :

उसने अपने फ़ायदे के लिए ऐसा किया होगा

वह अब क्यों बोल रही है, तभी क्यों नहीं कहा

इस तरह के कपड़े पहनेगी तो ऐसा होगा ही

खैर, कोई भी चीज़ यौन उत्पीड़न को न्यायसंगत नहीं ठहरा सकती है। ये सभी बातें ही महिलाओं को अपने साथ हुए उत्पीड़न को साझा करने से रोकती हैं।

यदि हम यह स्वीकार करें कि हां महिलाएं रोज यौन उत्पीड़न का शिकार होती हैं। अपने दोस्तों, परिवार और पार्टनर से बात करें, रोजमर्रा की जिंदगी में इन बातों को शामिल करें और यह देखें कि कौन महिलाएं यौन उत्पीड़न की शिकार हो रही हैं तो ज़्यादातर महिलाएं अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के अनुभवों को बता सकती हैं।

साथ ही मी टू अभियान के ज़रिये ऐसे कृत्यों को लोगों के सामने लाने का एक ही मकसद है कि इससे भविष्य में महिलाओं का यौन उत्पीड़न रूकेगा, क्योंकि महज आश्वासन से यौन उत्पीड़न को नहीं रोका जा सकता है। इस मुद्दे पर जितनी बातें होंगी, महिलाएं उतना ही खुलकर सामने आएंगी और लोग उन्हें सुनेंगे। इससे आने वाली पीढ़ी को यौन उत्पीड़न पर बात करने के लिए मी टू जैसे आंदोलनो की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। लेकिन अभी बहुत लंबा सफ़र तय करना बाकी है।