लॉयन न्यूज, बीकानेर। इस बार के करवा चौथ पर 70 साल बाद बड़ा ही शुभ संयोग बन रहा है। इस साल रोहिणी नक्षत्र व मंगल का योग इस दिन को मंगलकारी बना रहे हैं। सत्यभामा और मार्कण्डेय योग का संयोग भी इस बार इस त्योहार को फलदायी बनाएगा। करवा चौथ व्रत का इंतजार में कुछ ही घंटे शेष हैं, इसलिए खरीदारी को लेकर बाजार की रौनक बढ़ गई है। दुकानों पर महिलाओं की भीड़ लगने लगी है। बाजार में सूट, डिजाइनर साडिय़ों, हल्के लहंगे की खासी मांग है। सिल्क का दौर भी वापस आ चुका है। महिलाएं सिल्क पर जरी के काम वाली साड़ी व सूट खरीदने में दिलचस्पी दिखा रही हैं।

बाजारों में रंगीन और चमकीली साडिय़ों की डिमांड कुछ अधिक है। बाजारों में चारों ओर की दुकानें गुलजार हैं। महिलाएं करवा चौथ की रात अपनी पसंद की ही साड़ी पहनें, इस बात का कपड़ा बाजार ने खासा ख्याल रखा है। हालांकि ग्राहकों की पसंद और पहुंच को ध्यान देते हुए दुकानों पर कम से कम और ऊंचे दामों की साडिय़ां उपलब्ध हैं। इसके अलावा डिजाइनर और साधारण काम वाले सूट और साडिय़ां भी मौजूद हैं। कपड़ों की खरीदारी में बेंगलुरु सिल्क, बनारसी सिल्क और कांजीवरम की धूम मची हुई है।

ग्राहक त्योहार के लिए खरीदारी कर रहे हैं। वे हैवी साडिय़ों की डिमांड नहीं करते, उन्हें दो से पांच हजार तक की कीमत दर अधिक भा रही है। वह ग्राहकों की मांग के हिसाब से डिजाइनर और पार्टी वियर कपड़ों का स्टॉक भी उपलब्ध हैं, लेकिन ग्राहकों को सिल्क की साडिय़ों में बादलपुरी, प्योर शिल्क, कांजीवरम, लाइट वर्क के साथ ड्रेप साड़ीज ज्यादा पसंद की जा रही हैं। उन्होंने बताया कि अमूमन महिलाएं शरीर को आराम देने वाले फैब्रिक को ज्यादा पसंद कर रही हैं।
ग्राहक दाम में कम और फैशन में हिट, ऐसे उत्पादों की ओर अधिक खींच रहा है। महिलाएं भड़कीली डिजाइन और सादे पैटर्न को ज्यादा पसंद कर रही हैं। सभी ग्राहकों की पसंद का ध्यान रखा जा रहा है और हर रेंज की साडिय़ां उपलब्ध हैं।

करवा चौथ पूजा की पूजन सामग्री –
करवा, सीकें-6, रोली, सिंदूर, हल्दी, चावल, पुष्प, मिष्ठान, कपूर, अगरबत्ती, शुद्ध घी का दीपक, कलावा, दूर्वा, शुद्ध जल से भरा कलश, घर में बने पकवान आदि से पूजा की जाती है। पूजा के बाद सुहागिन महिलाएं छलनी से चंद्रमा दर्शन के साथ पति के दर्शन करती हैं। पति के हाथों से ही जल और फल ग्रहण होते ही व्रत का परायण होगा।

क्यों कहते हैं करवा चौथ –

करवा चौथ दो शब्दों से मिलकर बना है, ‘करवा’ यानि कि मिट्टी का बर्तन व ‘चौथ’ यानि गणेशजी की प्रिय तिथि चतुर्थी। प्रेम, त्याग व विश्वास के इस अनोखे महापर्व पर मिट्टी के बर्तन यानि करवे की पूजा का विशेष महत्व है,जिससे रात्रि में चंद्रदेव को जल अर्पण किया जाता है ।

धर्म ग्रंथों में मिलता है वर्णन-

रामचरितमानस के लंका काण्ड के अनुसार इस व्रत का एक पक्ष यह भी है कि जो पति-पत्नी किसी कारणवश एक दूसरे से बिछुड़ जाते हैं, चंद्रमा की किरणें उन्हें अधिक कष्ट पहुंचती हैं। इसलिए करवा चौथ के दिन चंद्रदेव की पूजा कर महिलाएं यह कामना करती हैं कि किसी भी कारण से उन्हें अपने प्रियतम का वियोग न सहना पड़े। महाभारत में भी एक प्रसंग है जिसके अनुसार पांडवों पर आए संकट को दूर करने के लिए भगवान श्री कृष्ण के सुझाव से द्रौपदी ने भी करवाचौथ का पावन व्रत किया था। इसके बाद ही पांडव युद्ध में विजयी रहे।’