दुनिया भर में दिलों को जोड़ रहा है डेनिम। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी भाता है। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा को भी पसंद है। चीन में भी बिकता है और जापान भी पहनता है। फिल्म स्टार पहनते हैं और सड़क पर सबसे पीछे चलने वाला आदमी भी। आखिर क्यों सबको पसंद आती है जींस, बता रहे हैं जे. अश्विनी।

हते हैं 1864 के आसपास पहली बार किसी ने पहनी होगी जींस। अमेरिका में या इटली में, इस पर आज भी बहस की गुंजाइश है, लेकिन इतना तय है कि इसे कामगार मजदूरों, नाविकों या फिर लकड़हारों के लिए बनाया गया था।

ऐसे कपड़े के बारे में कल्पना करना भी मुश्किल है, जिसे जींस जितना पहना या पसंद किया जाता हो। यूरोपीय और अमेरिकी लोगों की क्लासिक पोशाक आज पूरी दुनिया में पहनी जाती है। लेकिन क्यों? काउब्वॉयज ही नहीं, सुपरमॉडल, किसान, राष्ट्रपति और घरेलू महिलाएं भी जींस शौक से पहनते हैं।

अगर लोगों से पूछा जाए कि वे जींस क्यों पहनते हैं, तो उनसे भांति-भांति के जवाब मिलेंगे। कुछ लोगों को जींस पहनने में आसान, आरामदायक और ज्यादा चलने वाली पोशाक लगती है, वहीं कुछ को इसका लुक भाता है। अलग-अलग लोगों के लिए जींस के मायने अलग हैं। हुक्म देने वालों से लेकर हाथ फैलाने वालों तक जींस की एक अद्भुत दुनिया सजी हुई है।

अलग-अलग लोगों के लिए इसके मायने भी अलग हैं। ′ब्लू जींस′ नाम की किताब लिखने वाले मानव विज्ञानी डेनी मिलर कहते हैं- “जींस की व्यापक पसंद के कारणों पर अभी तक बहुत ज्यादा अध्ययन नहीं हुआ है।”

मिलर ने फिलीपीन्स, तुर्की, भारत और ब्राजील जैसे देशों की यात्रा की और पाया कि इन देशों की लगभग आधी आबादी जींस पहनती है। उनके अनुसार, दक्षिण एशिया और चीन के कुछ ग्रामीण अंचलों को छोड़कर सभी जगह जींस का चलन है।

मिलर अपनी किताब में बताते हैं कि जींस को फिटिंग और कम्फर्ट का दूसरा नाम माना जाता है और इसका चलन इतना ज्यादा बढ़ गया है कि अब यह आम आदमी का प्रतीक बन गया है।

भारतीय बाजार में जींस

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वैश्वीकरण के दौर में पश्चिमी देशों के तेजी से बढ़ते प्रभाव के कारण मल्टी-नेशनल कंपनियां युवाओं के लिए फैशन और स्टाइल लेकर आईं और उसी के साथ आई जींस। लेकिन तब भारत में ग्राहकों के लिए जींस की बहुत अच्छी क्वालिटी मौजूद नहीं थी। वास्तव में, जब भारत में जींस का उत्पादन शुरू हुआ, तो उसका ज्यादातर आयात पश्चिमी देशों से किया गया।

भारत में पहली ब्रांडेड जींस साल 1995 में अरविंद मिल्स ने लांच की। अरविंद मिल्स को देखकर कई और मल्टीनेशनल कंपनियों, जैसे, ’ली’ और ‘लिवाइस’ ने बाजार में अपनी जींस उतारीं।

‘कैलविन क्लेन’ और ‘जीएएस’ जैसे कई लग्जरी ब्रांड बाद में आए। आज यहां जींस का बाजार तकरीबन 6000 करोड़ रुपये का है। लंदन की मार्केट इंटेलीजेंट फर्म यूरोमॉनिटर के अनुसार, 2010-2015 के बीच सीएजीआर (कंपाउंड एन्युअल ग्रोथ रेट) ने जींस मार्केट में भारत में 11 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की है।

जींस का कारोबार तक आते-आते परिधान के रूप में जींस का चलन इटली के जेओना शहर में शुरू हो चुका था। तब यह मोटे सूती कपड़े के रूप में सामने आया था। कुछ फैशन इतिहासकारों का मानना है कि पहली बार अमेरिका में जींस पहनी गई, जिसे लेवी स्ट्रास ने तैयार किया था।

ऐसे बनी डेनिम जींस

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परिधान के रूप में जींस के प्रचलन की बात करें तो, इसका श्रेय लेवी स्ट्रास नाम के एक यहूदी युवा को जाता है, जो वर्ष 1851 में जर्मनी से अमेरिका आकर बस गए थे। लकड़हारों और खदानों में काम करने वाले मजदूरों के लिए पैंट बनाने के लिए मजबूत किस्म का मैटीरियल खोजते हुए स्ट्रास ने जींस का निर्माण किया।

बाद में जेकब डेविस नाम के एक दर्जी ने जींस की पैंट के कमजोर हिस्सों को मजबूती देने के लिए इसमें कुछ तांबे की कीलनुमा चीजें जोड़ीं। डेविस और स्ट्रास ने मिलकर इस मजबूत जींस के उत्पादन का यूएस से पेटेंट ले लिया। आज यही जींस फैशन की दुनिया में अपनी धमक बनाए हुए है।

उस समय मजूदरों के लिए जींस बनाने के पीछे का कारण इसकी लंबी आयु रही होगी। आज भी जींस बिना धोए कई दिनों तक पहनी जाती है, पर तब यह मजबूरी रही होगी। एक अन्य तथ्य के अनुसार 16 वीं शताब्दी के आसपास मोटे-सूती कपड़े को नीले रंग में रंगा कर मुंबई के डोंगरी किले के पास बेचा जाता था, जिसे नाविक अपनी पोशाक के लिए खरीदते थे। ऐसी ही एक कहानी जेनोवा की नौसेना की भी है।

16वीं शताब्दी के ही आसपास जेनोवा की नौसेना के नाविकों को ऐसी पैंट चाहिये थी, जिसे सूखा या गीला भी पहना जा सके और इसके पौचों को पोत के डेक की सफायी के समय ऊपर की तरफ मोड़ा जा सके।

इसके लिए भी वे लोग मोटे सूती कपड़े का प्रयोग करते थे। कुछ लोगों की राय है कि उन कपड़ों को जेनोवा के नाम पर जींस का नाम दिया गया।

डेनिम शब्द की उत्पत्ति ′डे नाइम्स′ नामक फ्रेंच शहर से हुई है। माना जाता है कि इस शहर से ही डेनिम का सफर शुरू हुआ। कुछ फैशन पंडितों का यह भी मानना है कि इटली के जेओना शहर में जींस का जो प्रचलन शुरू हुआ था, उसमें ′डे नाइम्स′ में बने डेनिम का इस्तेमाल हुआ था।

एक तथ्य यह भी है कि अमेरिकी जींस का निर्माण यूएस डेनिम से हुआ। अमेरिका के लेवी स्ट्रॉस और जेकब डेविस ने अपना नया डिजाइन 20 मई 1873 को पेटेंट कराया। इस तारीख को घोषित रूप से जींस के जन्मदिवस के तौर पर जाना जाता है।
डेनिम जींस बनाने के लिए दो तरह के धागों का इस्तेमाल होता है, एक धागा इंडिगो रंग में डाई होता है और एक धागा बिना डाई किया हुआ होता है।

इंडिगो डाई वाला रंग ज्यादातर जींस के बाहरी तरफ नजर आता है। इसमें रिवेट्स से स्टिचिंग कर दी जाती है। जींस रॉ डेनिम से तैयार की जाती हैं, लेकिन ज्यादातर डेनिम सेल से पहले ही धुली हुई होती है। समय के साथ इन पर से इंडिगो स्याही मिटने लगती है। जिससे एक खास किस्म का टैक्सचर कपड़े में दिखता है।

महिलाओं के बीच जींस या डेनिम परिधानों का प्रचलन कब हुआ, इसका कोई ठोस या लिखित इतिहास तो नहीं मिलता, लेकिन माना जाता है कि दूसरे वव‌िश्वयुद्ध के बाद अमेरिका में महिलाएं भी जींस पहनने लगी थीं।