नेशनल हुक
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आजादी के बाद शायद गोवा में ये पहला विधान सभा चुनाव है जिस पर दलबदल का गहरा असर दिख रहा है। कई नेताओं के पाला बदलने और कुछ के बगावत करने का संकेत राजनीति को अस्पष्ट कर रहा है। पहले यहां क्षेत्रीय पार्टी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होता था और तस्वीर धुंधली नहीं रहती थी। मगर इस बार तो राजनीति पर पूरी तरह धुंध छाई हुई है, जिसके कारण राजनीति के जानकार टिप्पणी करने से बच रहे हैं।
पिछले विधान सभा चुनाव परिणामों में कांग्रेस को बहुमत तो नहीं मिला मगर बड़ी पार्टी वही थी। इसके बावजूद सरकार केंद्र के दखल के बाद भाजपा की बनी। दलबदल का जोर रहा और क्षेत्रीय दल भी बिखर गया। गोवा में सर्वमान्य नेता के रूप में मनोहर पन्निकर उभरे और उनका साथ देने को सब तैयार हुए। उन्हें केंद्र का रक्षा मंत्री का पद छोड़कर भाजपा के लिए मुख्यमंत्री बनना पड़ा। इस बार उन्हीं के पुत्र के पार्टी के सामने बगावती तेवर मुखरित हुए हैं। ये चकित करने वाली राजनीतिक घटना है। पन्निकर की साफ सुथरी राजनीति की पूरे देश में चर्चा थी, मगर पुत्र की बगावत गोवा की राजनीति में अलग तरह के बदलाव का संकेत दे रही है।

सरकार बनाने के बाद से ही ये छोटा राज्य भी भाजपा की प्राथमिकता में आ गया। वो इस बार भी यहां पूरा दम लगा रही है, मगर आधार दूसरे दलों से आये नेता है।
कांग्रेस अपनी पुरानी छवि के अनुसार इस बार के चुनाव में पूरा दम लगा रही है। उसे पिछली बार राज न बनाने का मलाल है, इस बार वो कोई अवसर नहीं छोड़ना चाहती। बड़े नेताओं को यहां लगाया है मगर दलबदल कांग्रेस को परेशान किये हुए है। कांग्रेस से टूटकर कुछ नेताओं ने टीएमसी का दामन थामा है और अब टीएमसी भी यहां अपनी मजबूत उपस्थिति देने का प्रयास कर रही है।
पिछले चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने गोवा को निशाने पर लिया था और आम आदमी पार्टी के लिए कड़ी मेहनत की थी, मगर वांछित सफलता नहीं मिली। पर राजनीतिक जमीन तैयार हो गई और केजरीवाल इस बार यहां राजनीतिक फसल काटने को जी तोड़ प्रयास कर रहे हैं। उनके दल पर भी दलबदल का साया है।

गोवा चूंकि महाराष्ट्र के नजदीक है इसलिए शिव सेना और एनसीपी भी यहां अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है। इस बार दोनों दलों की महत्त्वकांक्षा ज्यादा है। शिव सेना यहां 15 उम्मीदवार लड़ाने की घोषणा कर चुकी है। संजय राउत ने ये ऐलान भी कर दिया। उससे जाहिर है कि उनका एनसीपी से तालमेल नहीं बैठा, जबकि महाराष्ट्र में ये दोनों दल और कांग्रेस मिलकर सरकार चला रहे हैं। गोवा में ये तीनों दल आमने सामने है। जिसके कारण भी राजनीतिक कयास लगाने में परेशानी हो रही है।
गोवा में अब तक दलबदल और बगावत जारी है इसलिए स्पष्टता नहीं हो रही। लगता है सभी दल अपनी क्षमता के अनुसार सफल होंगे और अंततः गठजोड़, दलबदल और बगावत से ही यहां सरकार बन पायेगी। गोवा में पहली बार दलबदल, बगावत इतनी बड़ी भूमिका में सामने आई है, जिसके कारण ही इस छोटे राज्य की राजनीतिक तस्वीर स्पष्ट नहीं हो रही।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार