लॉयन न्यूज़, बीकानेर। राजनीति में संभावना पर सारा खेल टिका होता है और इसी संभावना के चलते राजनीतिक उठापटक की गणित लगाई जाती रही है। कुछ ऐसा ही भाजपा ने आज बीकानेर में किया। लंबे समय से 36 के आंकड़े वालों को एक ऐसी जिम्मेदारी दी गई,जिसकी भाजपा को तो आवश्यकता । परन्तु जिम्मेदारी निभाने वालों को नहीं। जीं हां हम बात कर रहे है केन्द्रीय अर्जुनराम मेघवाल,पूर्व काबिना मंत्री देवीसिंह भाटी और संसदीय सचिव डॉ विश्वनाथ की। जिन्हें जुलाई में प्रस्तावित प्रधानमंत्री की जयपुर रैली को लेकर भीड़ जुटाने का जिम्मा सौंपा है। जिम्मेदारी देने वाले भी इस बात को जानते है कि जो क भी एक दूसरे को नीचा दिखाने में नहीं चूके उन्हें भाजपाईयों की फौज जयपुर ले जाने को कहा है। ये तो वहीं बात हुई दूध की रखवाली बिल्ली का सौंपना।

 

भाजपा के आंकायों के इस निर्णय ने राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं को गर्म कर दिया है। अब इन चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया है कि जिन्होंने एक साथ कभी मंच साझा नहीं किया। क्या वे प्रधानमंत्री की प्रस्तावित रैली को लेकर भीड़ जुटाने के इस जिम्मे को बखूबी निभा पायेंगे। मजे की बात तो ये है कि भाजपा के आलाकमान ने भी कितना अजीबो गरीब फैसला लिया है,जिसमें तीन में से दो तो एक पक्ष के ओर एक एकला चलों प्रवृति के समर्थक। ऐसे में एकजुटता की सीख देने वाली पार्टी के इस फैसले का हश्र क्या होगा ये तो वक्त बतायेगा। फिलहाल वर्तमान परिपेक्ष्य में भाजपा के इस फैसले ने एक नई चर्चा को जन्म जरूर दे दिया है।

आखिर भाटी की क्यों आई याद
लगातार पिछले लंबे समय से पार्टी के लिये उपेक्षित नजर आ रहे भाटी पर आखिर पार्टी ने इतना भरोसा क्यों जताया है। ये राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। राजनीतिक पंडि़तों की माने तो बीकानेर जिले की राजनीति में अगर भीड़ जुटाने की बात आये तो भाटी हमेशा ही पार्टी के लिये तारणहार की भूमिका में नजर आये है। इससे पूर्व में कई दफा भाटी लोकतंत्र में भीड़तंत्र की संज्ञा को चरितार्थ कर चुके है। जिसे देखते हुए लगता है पार्टी ने भाटी पर भरोसा जताकर जिले में अपनी लाज बचाने के लिये तुरूप का पता चला है।

भीड़ जुटाने के मामले में अर्जुन फेल
बताया जा रहा है कि अगर भीड़ जुटाने की बात आती है तो अर्जुनराम मेघवाल को ज्यादा सफल नहीं माना जाता है। ऐसे में अर्जुनराम मेघवाल को ये जिम्मेदारी देकर पार्टी ने सामाजिक समन्वय बैठाने का काम तो किया है। परन्तु भीड़ को लेकर कौन भारी पड़ेगा ये तो रैली तय करेगी।